कोरोना संकट और लॉकडाउन की वजह से अप्रैल से जून के बीच 2.5 करोड़ से 3 करोड़ मज़दूरों का रोज़गार छिन गया. छोटे और लघु उद्योग संघ और स्कॉच ग्रुप के सर्वे में ये बात सामने आई है. सर्वे में ये अंदेशा जताया गया है कि आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने की वजह से अगस्त के अंत तक 1 से 1.5 करोड़ और वर्करों की नौकरी जा सकती है.
कोरोना संकट और लॉकडाउन ने छोटे-लघु और माध्यम उद्योगों की कमर तोड़ दी है. छोटे और लघु उद्योगों के संघ और स्कॉच ग्रुप ने एक राष्ट्रीय सर्वे में कहा है - हमारा अनुमान है कि लघु उद्योग संकट में MSME सेक्टर में अप्रैल से जून के बीच 2.5 करोड़ से 3 करोड़ मज़दूरों का रोज़गार छिन गया. अगस्त के अंत तक 1 करोड़ से 1.5 करोड़ और नौकरियां जा सकती हैं. इन 3 महीने में 74 % छोटे-लघु उद्योगों ने नए कर्मचारियों को नौकरी नहीं दी. यानी जिनकी रोज़गार चीन उन्हें दोबारा मिलने के संभावना इन 3 महीनो में काफी कम रही.
छोटे और लघु उद्योग मंत्रालय के मुताबिक देश में करीब 6.33 करोड़ MSMEs हैं जिनमे 11.10 करोड़ वर्कर काम करते हैं. 2.5 करोड़ से 3 करोड़ का रोज़गार छिनने का मतलब है की करीब 25% वर्क फाॅर्स MSME सेक्टर में बेरोज़गार हो गया. MSME सर्वे में ये बात भी सामने आयी है की छोटे-लघु उद्योगों के नॉन-परफार्मिंग एसेट्स बढ़ने का खतरा काफी बढ़ गया है.
राजीव अरोरा, महासचिव, इंडस्ट्रियल एरिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन, बुलंदशहर रोड, ग़ाज़ियाबाद ने NDTV से कहा- "लिक्विडिटी का प्रॉब्लम है. .. सप्लाई और डिमांड चैन की भी समस्या है. लॉकडाउन का असर ऑर्डर्स पर पड़ रहा है, इसकी वजह से हम सही तरीके से प्रोडक्शन नहीं कर पा रहे हैं 40% से 60% क्षमता पर ही इंडस्ट्री चल पा रही है. सामान के ट्रांसपोर्टेशन में भी दिक्कत आ रही है."
साफ़ है, संकट बड़ा है और सरकार को इस सेक्टर की मदद करने के लिए और बड़े स्तर पर हस्तक्षेप करना पड़ेगा.
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