प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
लोकसभा में मंगलवार को विभिन्न दलों के सदस्यों ने रेलवे को व्यावसायिक संस्थान नहीं मानते हुए उसे अधिक आजादी देने की वकालत की और साथ ही रेलवे के लिए अलग राष्ट्रीय नीति बनाने की भी मांग की. पूर्व रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के सदस्य दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि सालों से रेलवे विभिन्न कठिनाइयों से जूझ रही है.
उन्होंने कहा, ‘‘बुनियादी समस्या रेलवे की परिभाषा में है जिसमें इसके लिए ‘कमर्शियल’ (व्यावसायिक) शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यह ब्रिटिश शासनकाल की उपनिवेशवादी सोच को दर्शाता है.’’ रेलवे की एक कन्वेंशन (अभिसमय) समिति द्वारा लाभांश के संबंध में दी गयी रिपोर्ट पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा 29 जुलाई को सदन में प्रस्तुत सरकारी संकल्प पर अधूरी रही चर्चा को आगे बढ़ाते हुए त्रिवेदी ने कन्वेंशन समिति के अस्तित्व पर ही सवाल उठाया.
उन्होंने कहा कि आखिर हम रेलवे से क्या चाहते हैं. एक तरफ हम रेलवे को आजादी नहीं देते. उसके हाथ बांध रखे हैं. दूसरी तरफ पूरा देश रेल मंत्री से जादूगर की तरह काम करने की अपेक्षा करता है.
त्रिवेदी ने कहा कि रक्षा और विदेश मामलों की राष्ट्रीय नीति की तरह भारतीय रेलवे पर राष्ट्रीय नीति बनाने पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय रेलवे को व्यावसायिक इकाई की तरह नहीं देखा जा सकता. दुनिया में कोई रेलवे लाभ में नहीं चलता. सरकार को उसे पूरा बुनियादी ढांचा देना पड़ेगा. त्रिवेदी ने कहा कि रेलवे केवल परिवहन का साधन नहीं है बल्कि देश की जीडीपी में भी योगदान देने की क्षमता रखती है.
बीजद के बलभद्र मांझी ने कहा कि रेलवे के बिना विकास और औद्योगिकीकरण संभव नहीं है. रेलवे को कई तरह का बोझ उठाना पड़ता है. उन्होंने समिति की सिफारिशों के संबंध में कहा कि लाभांश पर बहुत सारे पक्षों को देखने की जरूरत है. एक निश्चित समय होना चाहिए, जिसके बाद लाभांश नहीं दिया जाना चाहिए.
रेल बजट में पश्चिम बंगाल की उपेक्षा करने के त्रिवेदी के आरोपों से इंकार करते हुए रेल राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कि पश्चिम बंगाल रेल परियोजनाओं के मामले में शीर्ष प्राथमिकता पर है. शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि कन्वेंशन के ढांचे पर ही हमला करने की जरूरत है. रेलवे को व्यावसायिक संस्था मानने की वजह से उसे सरकार को लाभांश देना होता है.
उन्होंने कहा, ‘‘पहले रेलवे के राजस्व को बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए. बुनियादी सुविधाओं, सेवाओं को दुरस्त करने की जरूरत है.’’ सावंत ने कहा कि रेलवे के बड़ा पास बड़ी भूमि परिसंपत्ति है जिसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को रेलवे की सहायता करनी चाहिए.
माकपा के पी. करुणाकरण ने कहा कि रेलवे को अपना राजस्व अर्जित करना होगा. उसका प्रशासनिक ढांचा अब भी ब्रिटिश शासनकाल की तर्ज पर है जिस पर विचार होना चाहिए.
भाजपा के शरद त्रिपाठी ने कहा कि रेलवे केवल व्यापारिक संसाधन नहीं बल्कि परिवहन का सामाजिक दायित्व भी निभाता है. वाईएसआर कांग्रेस के भैरव प्रसाद राव ने कहा कि रेलवे को पेशेवर तथा कमर्शियल तरीके से चलाया जाना चाहिए.
शिरोमणि अकाली दल के सदस्य शेरसिंह गुबाया ने पंजाब के फिरोजपुर से दिल्ली के बीच सीधी ट्रेन सेवा शुरू करने की मांग की. भाजपा के नाना पटोले ने रेलवे के कुछ नए जोन बनाए जाने और इंडियन नेशनल लोकदल के दुष्यंत चौटाला ने लाभांश की राशि को रेलवे के ढांचागत सुधार पर खर्च किए जाने की मांग की. अन्नाद्रमुक की सत्यभामा ने तमिलनाडु के इरोड, तंजावुर, तुतिकोरिन रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण तथा तिरूपुर रेलवे स्टेशन पर सभी ट्रेनों का पांच मिनट का ठहराव सुनिश्चित करने की मांग की.
कांग्रेस के राजीव सातव ने कहा कि अच्छे दिनों का वादा करके सत्ता में आयी सरकार ने आते ही रेलवे में सभी मदों का किराया बढ़ा दिया. उन्होंने नांदेड़ को सिकंदराबाद के बजाय सेंट्रल रेलवे से संबद्ध करने की मांग की.
सपा के धर्मेन्द्र यादव ने इटावा से मैनपुरी, इटावा से ग्वालियर और इटावा से आगरा के बीच रेल लाइन शुरू करने की मांग की और साथ ही उत्तर प्रदेश के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया. भाजपा की संतोष शर्मा ने अपने क्षेत्र से दिल्ली के बीच चलने वाली ट्रेन की समय सारिणी में बदलाव और इसे सप्ताह के सातों दिन चलाए जाने की मांग की.
राष्ट्रीय जनता दल के जयप्रकाश नारायण यादव ने कहा कि पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद के कार्यकाल में रेलवे ने 90 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा दिया था. उन्होंने रेलवे में सुरक्षा, बेहतर खानपान, सुविधाओं और समय सारिणी पर ध्यान देने की मांग की.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उन्होंने कहा, ‘‘बुनियादी समस्या रेलवे की परिभाषा में है जिसमें इसके लिए ‘कमर्शियल’ (व्यावसायिक) शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यह ब्रिटिश शासनकाल की उपनिवेशवादी सोच को दर्शाता है.’’ रेलवे की एक कन्वेंशन (अभिसमय) समिति द्वारा लाभांश के संबंध में दी गयी रिपोर्ट पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा 29 जुलाई को सदन में प्रस्तुत सरकारी संकल्प पर अधूरी रही चर्चा को आगे बढ़ाते हुए त्रिवेदी ने कन्वेंशन समिति के अस्तित्व पर ही सवाल उठाया.
उन्होंने कहा कि आखिर हम रेलवे से क्या चाहते हैं. एक तरफ हम रेलवे को आजादी नहीं देते. उसके हाथ बांध रखे हैं. दूसरी तरफ पूरा देश रेल मंत्री से जादूगर की तरह काम करने की अपेक्षा करता है.
त्रिवेदी ने कहा कि रक्षा और विदेश मामलों की राष्ट्रीय नीति की तरह भारतीय रेलवे पर राष्ट्रीय नीति बनाने पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय रेलवे को व्यावसायिक इकाई की तरह नहीं देखा जा सकता. दुनिया में कोई रेलवे लाभ में नहीं चलता. सरकार को उसे पूरा बुनियादी ढांचा देना पड़ेगा. त्रिवेदी ने कहा कि रेलवे केवल परिवहन का साधन नहीं है बल्कि देश की जीडीपी में भी योगदान देने की क्षमता रखती है.
बीजद के बलभद्र मांझी ने कहा कि रेलवे के बिना विकास और औद्योगिकीकरण संभव नहीं है. रेलवे को कई तरह का बोझ उठाना पड़ता है. उन्होंने समिति की सिफारिशों के संबंध में कहा कि लाभांश पर बहुत सारे पक्षों को देखने की जरूरत है. एक निश्चित समय होना चाहिए, जिसके बाद लाभांश नहीं दिया जाना चाहिए.
रेल बजट में पश्चिम बंगाल की उपेक्षा करने के त्रिवेदी के आरोपों से इंकार करते हुए रेल राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कि पश्चिम बंगाल रेल परियोजनाओं के मामले में शीर्ष प्राथमिकता पर है. शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि कन्वेंशन के ढांचे पर ही हमला करने की जरूरत है. रेलवे को व्यावसायिक संस्था मानने की वजह से उसे सरकार को लाभांश देना होता है.
उन्होंने कहा, ‘‘पहले रेलवे के राजस्व को बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए. बुनियादी सुविधाओं, सेवाओं को दुरस्त करने की जरूरत है.’’ सावंत ने कहा कि रेलवे के बड़ा पास बड़ी भूमि परिसंपत्ति है जिसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को रेलवे की सहायता करनी चाहिए.
माकपा के पी. करुणाकरण ने कहा कि रेलवे को अपना राजस्व अर्जित करना होगा. उसका प्रशासनिक ढांचा अब भी ब्रिटिश शासनकाल की तर्ज पर है जिस पर विचार होना चाहिए.
भाजपा के शरद त्रिपाठी ने कहा कि रेलवे केवल व्यापारिक संसाधन नहीं बल्कि परिवहन का सामाजिक दायित्व भी निभाता है. वाईएसआर कांग्रेस के भैरव प्रसाद राव ने कहा कि रेलवे को पेशेवर तथा कमर्शियल तरीके से चलाया जाना चाहिए.
शिरोमणि अकाली दल के सदस्य शेरसिंह गुबाया ने पंजाब के फिरोजपुर से दिल्ली के बीच सीधी ट्रेन सेवा शुरू करने की मांग की. भाजपा के नाना पटोले ने रेलवे के कुछ नए जोन बनाए जाने और इंडियन नेशनल लोकदल के दुष्यंत चौटाला ने लाभांश की राशि को रेलवे के ढांचागत सुधार पर खर्च किए जाने की मांग की. अन्नाद्रमुक की सत्यभामा ने तमिलनाडु के इरोड, तंजावुर, तुतिकोरिन रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण तथा तिरूपुर रेलवे स्टेशन पर सभी ट्रेनों का पांच मिनट का ठहराव सुनिश्चित करने की मांग की.
कांग्रेस के राजीव सातव ने कहा कि अच्छे दिनों का वादा करके सत्ता में आयी सरकार ने आते ही रेलवे में सभी मदों का किराया बढ़ा दिया. उन्होंने नांदेड़ को सिकंदराबाद के बजाय सेंट्रल रेलवे से संबद्ध करने की मांग की.
सपा के धर्मेन्द्र यादव ने इटावा से मैनपुरी, इटावा से ग्वालियर और इटावा से आगरा के बीच रेल लाइन शुरू करने की मांग की और साथ ही उत्तर प्रदेश के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया. भाजपा की संतोष शर्मा ने अपने क्षेत्र से दिल्ली के बीच चलने वाली ट्रेन की समय सारिणी में बदलाव और इसे सप्ताह के सातों दिन चलाए जाने की मांग की.
राष्ट्रीय जनता दल के जयप्रकाश नारायण यादव ने कहा कि पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद के कार्यकाल में रेलवे ने 90 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा दिया था. उन्होंने रेलवे में सुरक्षा, बेहतर खानपान, सुविधाओं और समय सारिणी पर ध्यान देने की मांग की.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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