उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने कहा है कि स्वतंत्र प्रेस और अभिव्यक्ति (Freedom Of Speech) की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस लोकुर ने सोमवार को एक व्याख्यान में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने का सबसे बुरा तरीका व्यक्ति पर राजद्रोह (Sedition) का आरोप लगा देना है.
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जस्टिस लोकुर राजद्रोह कानून, निषेधाज्ञा के दुरुपयोग और इंटरनेट पर पूरी तरह रोक लगाने के आलोचक रहे हैं. उन्होंने कहा कि बोलने का साहस करने वालों की स्वतंत्रता को बुरी तरह प्रभावित करने के लिए ‘‘कानून के उपयोग और दुरुपयोग के घातक कॉकटेल'' का इस्तेमाल किया जा रहा है. जस्टिस लोकुर ने 2020 बी जी वर्गीज स्मृति व्याख्यान में ‘हमारे मौलिक अधिकारों के रक्षण एवं संरक्षण-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रदर्शन के अधिकार' विषय पर अपने संबोधन के दौरान यह टिप्पणी की.
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इस अवसर पर मीडिया फाउंडेशन ने उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए महिलाओं को 2019 का चमेली देवी जैन पुरस्कार दिया. यह पुरस्कार ‘द वायर' की आरफा खानम शेरवानी और बेंगलुरू की स्वतंत्र पत्रकार रोहिणी मोहन को मिला.वह उच्चतम न्यायालय के उन चार वरिष्ठ न्यायाधीशों में शामिल थे, जिन्होंने 12 जनवरी 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ संवाददाता सम्मेलन कर विवाद पैदा कर दिया था.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं