दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के अधिकारियों ने किस तरह लियाकत शाह उर्फ लियाकत बुखारी को आतंकवादी करार दिया और उसके खिलाफ देशद्रोह का झूठा मामला दर्ज किया, इसकी पोल एनआईए अधिकारियों ने खोली थी, और अब उसे आधार बनाकर गृह मंत्रालय ने स्पेशल सेल के उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला लिया है।
जानकारी के मुताबिक गृह मंत्रालय ने मामले में कड़ा रुख अख्तियार किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया कि इस मामले से "गृहमंत्री भी काफी नाखुश हैं, और जल्द ही इस मामले की तफ्तीश से जुड़े रहे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी..." दरअसल गृह मंत्रालय इस मामले को लेकर ज़्यादा नाराज़ इसलिए है, क्योंकि सैयद लियाकत शाह उर्फ लियाकत बुखारी का मामला देश की समर्पण नीति से जुड़ा है, जिसके जरिये कई लोग भारत वापस आए हैं।
गृह मंत्रालय को एनआईए की ओर से जो रिपोर्ट मिली है, उसके मुताबिक, "भारत के खिलाफ अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तान लोगों को गुमराह कर उनका इस्तेमाल करता है, और बेगुनाह लोग वहां जाकर फंस जाते हैं और वापस आना चाहते हैं... यह नीति उन सब लोगों की मदद के लिए घोषित की गई थी... लियाकत भी उसी नीति का फायदा लेकर भारत आया था..."
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रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि लियाकत, जिसे वर्ष 2013 में जामा मस्जिद के हाजी अराफात गेस्ट हाउस में हथियार व विस्फोटक मिलने के मामले में स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था, बेकसूर है, और मध्य प्रदेश निवासी शबीर खान पठान आरोपी है। एनआईए ने पटियाला हाउस कोर्ट में इसके संबंध में एक आरोपपत्र भी दायर किया है, जिसमें शाहजहांपुर (मध्य प्रदेश) के गांव जिलाना निवासी शबीर खान पठान को आरोपी बनाया गया है, और कहा गया है कि जांच में अब यह पता लगाया जा रहा है कि इन हथियारों को गेस्ट हाउस में रखने के पीछे किसकी साजिश थी।
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के दर्दपुरा गांव निवासी सैयद लियाकत शाह उर्फ लियाकत बुखारी को दिल्ली पुलिस ने 20 मार्च, 2013 को देशद्रोह, आपराधिक षडयंत्र रचने समेत कई धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था। स्पेशल सेल ने जांच में बताया था कि उसे सूचना मिली थी कि कुछ आतंकवादी दिल्ली के महत्वपूर्ण हिस्सों में फिदायीन हमले की साजिश रच रहे हैं। इसी मामले की जांच के दौरान लियाकत को पकड़ा गया था। उस पर आरोप था कि वह भारत-नेपाल सीमा से उत्तर प्रदेश स्थित सोनौली से भारत में दाखिल हुआ था। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था, और गृह मंत्रालय के दबाव के बाद मामला जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया था।
लियाकत और उसकी बेगम अख्तर-उर-निसा से मिलने एनडीटीवी भी जून, 2013 में उसके गांव गया था, तब उसने आपबीती सुनाई थी कि किस तरह वह कई सालों से वापस आना चाहता था, और जब उसने सरकार की इस नीति के बारे में सुना तो उसका फायदा उठाने का विचार आया। उसने कहा, मैंने सुना था कि नेपाल से लोग वापस आ रहे है, सो, मैं भी वापिस आया, लेकिन मुझे क्या पता था कि ये लोग मुझे आतंकवादी करार दे देंगे..."
अब इस मामले में अदालत लियाकत को बरी करने जा रही है और मामले की अगली सुनवाई अगले हफ्ते है।
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