आज सुप्रीम कोर्ट में मथुरा हिंसा संबंधी याचिका पर सुनवाई (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मथुरा में हुई ही हिंसा के मामले में सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इनकार किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि वो इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या आपकी याचिका में ये कहा गया है कि राज्य सरकार का कोई भी ऐसा एक्शन है जिसमें कहा गया है कि उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि ये मामला राज्य का विषय है, केंद्र सरकार अपनी ओर से सीबीआई जांच के आदेश नहीं दे सकती। कोर्ट ने पूछा कि क्या राज्य का कोई ऐसा काम है जिससे लोगों का भरोसा उठा हो ? साथ ही कहा कि क्या राज्य सरकार की जांच में कोई कमी हुई है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच की मांग कोई रुटीन मामला नहीं है और ना ही किसी भी याचिका पर सीबीआई जांच के आदेश दिए जा सकते हैं।
अब हाईकोर्ट जाएंगे याचिकाकर्ता
दरअसल बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि रामवृक्ष यादव 2014 से पार्क में एक समानांतर सरकार चला रहा था। जिसमें उसकी खुद की सरकार और सेना थी। बिना सरकार के समर्थन के ऐसा संभव ही नहीं है। याचिका में मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा गया है कि रामवृक्ष यादव कई नेताओं और मंत्रियों के क़रीबी रहा है। हालांकि याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका वापस ले ली। उनका कहना है कि वो सीधे इलाहाबाद हाईकोर्ट जा रहे हैं और बुधवार को इसकी अर्जी दाखिल करेंगे।
इधर राज्य सरकार ने मथुरा के जिलाधिकारी राजेश कुमार और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राकेश सिंह को हटा दिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में कहा है कि मथुरा के नए डीएम निखिल शुक्ला और नए एसएसपी बबलू कुमार होंगे। मथुरा हिंसा के बाबत राज्य सरकार ने कहा है कि पुलिस जवाहर बाग में अवैध कब्जा जमाए लोगों को हटाने की कार्रवाई में खतरों का सही अंदाजा नहीं लगा पाई थी।
केंद्र सरकार लगा रही राज्य सरकार पर आरोप....
वैसे जवाहर बाग में अतिक्रमणकारियों के खिलाफ पिछले हफ्ते की पुलिस कार्रवाई के दौरान हुई हिंसा को केंद्र सरकार सीधे राज्य सरकार की नाकामी बता रही है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस मामले में सीधे शिवपाल सिंह यादव से इस्तीफा मांग चुके हैं। जवाहर बाग की घटना को लेकर कई सवाल उठाए रहे हैं, जैसे क्या यह बस स्थानीय पुलिस के अंदाजे की चूक है या फिर उसे तैयारी से पहले ही कार्रवाई के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा इन अतिक्रमणकारियों के पास इतनी भारी मात्रा में असलाह-बारूद की मौजूदगी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्टों में इस समूह का नक्सिलयों के साथ संबंध की ओर इशारा किया गया है, तो विपक्षी दल इसमें राजनीतिक संरक्षण का आरोप लगा रहे हैं।
क्या है पूरा मामला...
गौरतलब है कि मथुरा के जवाहरबाग में गुरुवार को हुई हिंसा में 24 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। इसमें दो पुलिस अधिकारी भी शहीद हो गए थे। इस कांड का मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव भी पुलिस के साथ हुई गोलीबारी में मारा गया था। डीजीपी ने रविवार को ट्वीट कर उसकी मौत की पुष्टि की थी। इसके बाद अब उसके गांव वालों ने उसका शव लेने से इनकार कर दिया है। इसके बाद मथुरा पुलिस ने रामवृक्ष यादव के साथ मारे गए 11 अन्य लोगों का सोमवार को अंतिम संस्कार कर दिया।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि ये मामला राज्य का विषय है, केंद्र सरकार अपनी ओर से सीबीआई जांच के आदेश नहीं दे सकती। कोर्ट ने पूछा कि क्या राज्य का कोई ऐसा काम है जिससे लोगों का भरोसा उठा हो ? साथ ही कहा कि क्या राज्य सरकार की जांच में कोई कमी हुई है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच की मांग कोई रुटीन मामला नहीं है और ना ही किसी भी याचिका पर सीबीआई जांच के आदेश दिए जा सकते हैं।
अब हाईकोर्ट जाएंगे याचिकाकर्ता
दरअसल बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि रामवृक्ष यादव 2014 से पार्क में एक समानांतर सरकार चला रहा था। जिसमें उसकी खुद की सरकार और सेना थी। बिना सरकार के समर्थन के ऐसा संभव ही नहीं है। याचिका में मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा गया है कि रामवृक्ष यादव कई नेताओं और मंत्रियों के क़रीबी रहा है। हालांकि याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका वापस ले ली। उनका कहना है कि वो सीधे इलाहाबाद हाईकोर्ट जा रहे हैं और बुधवार को इसकी अर्जी दाखिल करेंगे।
इधर राज्य सरकार ने मथुरा के जिलाधिकारी राजेश कुमार और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राकेश सिंह को हटा दिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में कहा है कि मथुरा के नए डीएम निखिल शुक्ला और नए एसएसपी बबलू कुमार होंगे। मथुरा हिंसा के बाबत राज्य सरकार ने कहा है कि पुलिस जवाहर बाग में अवैध कब्जा जमाए लोगों को हटाने की कार्रवाई में खतरों का सही अंदाजा नहीं लगा पाई थी।
केंद्र सरकार लगा रही राज्य सरकार पर आरोप....
वैसे जवाहर बाग में अतिक्रमणकारियों के खिलाफ पिछले हफ्ते की पुलिस कार्रवाई के दौरान हुई हिंसा को केंद्र सरकार सीधे राज्य सरकार की नाकामी बता रही है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस मामले में सीधे शिवपाल सिंह यादव से इस्तीफा मांग चुके हैं। जवाहर बाग की घटना को लेकर कई सवाल उठाए रहे हैं, जैसे क्या यह बस स्थानीय पुलिस के अंदाजे की चूक है या फिर उसे तैयारी से पहले ही कार्रवाई के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा इन अतिक्रमणकारियों के पास इतनी भारी मात्रा में असलाह-बारूद की मौजूदगी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्टों में इस समूह का नक्सिलयों के साथ संबंध की ओर इशारा किया गया है, तो विपक्षी दल इसमें राजनीतिक संरक्षण का आरोप लगा रहे हैं।
क्या है पूरा मामला...
गौरतलब है कि मथुरा के जवाहरबाग में गुरुवार को हुई हिंसा में 24 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। इसमें दो पुलिस अधिकारी भी शहीद हो गए थे। इस कांड का मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव भी पुलिस के साथ हुई गोलीबारी में मारा गया था। डीजीपी ने रविवार को ट्वीट कर उसकी मौत की पुष्टि की थी। इसके बाद अब उसके गांव वालों ने उसका शव लेने से इनकार कर दिया है। इसके बाद मथुरा पुलिस ने रामवृक्ष यादव के साथ मारे गए 11 अन्य लोगों का सोमवार को अंतिम संस्कार कर दिया।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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