प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई:
बीड़ में सूखे से प्रभावित किसानों की मदद के लिए महाराष्ट्र सरकार कई कार्यक्रम चला रही है, इनको लागू करने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है, लेकिन कई जगहों पर किसान इससे निराश हैं। खासकर फसल बीमा योजना को लेकर कई किसानों की शिकायत है कि बीमे की रकम मिलने में बहुत परेशानी और देर होती है।
सूखा प्रभावित मराठवाड़ा के दौरे पर गए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा था 'जिसके पास बीमा नहीं है, उन्हें दिक्कत होती है। इस साल हमने तय किया है कि हम किसानों को 50 फीसदी रकम देंगे। जो अगर उन्होंने बीमा कराया होता तो उन्हें मिलता। इस काम के लिए हमने 1000 करोड़ रुपये की रकम दी है जिससे कपास और सोयाबीन के किसानों को फायदा होगा।'
जब लाख कोशिशों के बाद भी फसल बीमा की राशि नहीं मिली तो जान दी
कागज पर सरकारी इरादे नेक हैं, लेकिन इसमें उन किसानों का जिक्र नहीं जो फसल का बीमा करा चुके हैं। बीड़ के किसान अरुण जाधव की फसल बर्बाद हुई, बीमे का पैसा वक्त से नहीं मिला तो उन्होंने खुदकुशी कर ली। यह घटना पिछले साल की है। उनकी पत्नी ने हमें बताया वह बार-बार बैंक जाते थे, लेकिन उन्हें उनका पैसा नहीं मिला इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली। अगर उन्हें पैसा मिल गया होता तो उन्होंने जान न दी होती।
मौत के बाद मिली रकम, मुआवजा नहीं मिला
अरुण के रिश्तेदारों ने एनडीटीवी को बताया कि उन्होंने स्थानीय प्रशासन से कई बार अपने हक के पैसों के लिए गुहार लगाई थी। उन्हें दो लाख का कर्ज चुकाना था, परिवार की भूख मिटानी थी। वे अपने 11000 रुपयों के लिए चिंतित थे जो परिवार को अप्रैल में अरुण की खुदकुशी के बाद मिला। अरुण के रिश्तेदार रमेश जाधव ने कहा उन्होंने वक्त पर फसल के बीमे की रकम नहीं दी। उन्हें 11 महीने बाद पैसा मिला। मुआवजे की रकम अब तक नहीं मिली है। अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो यह साल पिछले से भी खराब गुजरेगा। प्रशासन का रवैया किसानों को खुदकुशी की तरफ धकेल रहा है।
मंत्रियों की मौजूदगी में ही सजग रहता है प्रशासन
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस अपने 28 मंत्रियों के साथ मराठवाड़ा के दौरे पर हैं। आस थी कि इससे स्थानीय प्रशासन हरकत में आएगा, लेकिन हकीकत बयां की स्थानीय किसान रमेश जाधव ने। उन्होंने कहा हालात सिर्फ उस दिन के लिए बदलते हैं फिर स्थिति वैसी ही हो जाती है। स्थानीय प्रशासन हमेशा सजगता से काम करे तो किसानों को राहत मिलेगी।
चाराघरों का सहारा
मुश्किल में पड़े किसानों के लिए एक ही राहत है सरकारी चाराघर, जहां पूरे दिन पानी मिलता है। मवेशियों के साथ किसानों ने भी इन चाराघरों को आशियाना बना लिया है, दूध बेचकर वे कुछ पैसा बना लेते हैं। कम से कम इस सरकारी योजना से किसानों को थोड़ा बहुत फायदा वाकई मिल रहा है।
सूखा प्रभावित मराठवाड़ा के दौरे पर गए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा था 'जिसके पास बीमा नहीं है, उन्हें दिक्कत होती है। इस साल हमने तय किया है कि हम किसानों को 50 फीसदी रकम देंगे। जो अगर उन्होंने बीमा कराया होता तो उन्हें मिलता। इस काम के लिए हमने 1000 करोड़ रुपये की रकम दी है जिससे कपास और सोयाबीन के किसानों को फायदा होगा।'
जब लाख कोशिशों के बाद भी फसल बीमा की राशि नहीं मिली तो जान दी
कागज पर सरकारी इरादे नेक हैं, लेकिन इसमें उन किसानों का जिक्र नहीं जो फसल का बीमा करा चुके हैं। बीड़ के किसान अरुण जाधव की फसल बर्बाद हुई, बीमे का पैसा वक्त से नहीं मिला तो उन्होंने खुदकुशी कर ली। यह घटना पिछले साल की है। उनकी पत्नी ने हमें बताया वह बार-बार बैंक जाते थे, लेकिन उन्हें उनका पैसा नहीं मिला इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली। अगर उन्हें पैसा मिल गया होता तो उन्होंने जान न दी होती।
मौत के बाद मिली रकम, मुआवजा नहीं मिला
अरुण के रिश्तेदारों ने एनडीटीवी को बताया कि उन्होंने स्थानीय प्रशासन से कई बार अपने हक के पैसों के लिए गुहार लगाई थी। उन्हें दो लाख का कर्ज चुकाना था, परिवार की भूख मिटानी थी। वे अपने 11000 रुपयों के लिए चिंतित थे जो परिवार को अप्रैल में अरुण की खुदकुशी के बाद मिला। अरुण के रिश्तेदार रमेश जाधव ने कहा उन्होंने वक्त पर फसल के बीमे की रकम नहीं दी। उन्हें 11 महीने बाद पैसा मिला। मुआवजे की रकम अब तक नहीं मिली है। अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो यह साल पिछले से भी खराब गुजरेगा। प्रशासन का रवैया किसानों को खुदकुशी की तरफ धकेल रहा है।
मंत्रियों की मौजूदगी में ही सजग रहता है प्रशासन
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस अपने 28 मंत्रियों के साथ मराठवाड़ा के दौरे पर हैं। आस थी कि इससे स्थानीय प्रशासन हरकत में आएगा, लेकिन हकीकत बयां की स्थानीय किसान रमेश जाधव ने। उन्होंने कहा हालात सिर्फ उस दिन के लिए बदलते हैं फिर स्थिति वैसी ही हो जाती है। स्थानीय प्रशासन हमेशा सजगता से काम करे तो किसानों को राहत मिलेगी।
चाराघरों का सहारा
मुश्किल में पड़े किसानों के लिए एक ही राहत है सरकारी चाराघर, जहां पूरे दिन पानी मिलता है। मवेशियों के साथ किसानों ने भी इन चाराघरों को आशियाना बना लिया है, दूध बेचकर वे कुछ पैसा बना लेते हैं। कम से कम इस सरकारी योजना से किसानों को थोड़ा बहुत फायदा वाकई मिल रहा है।
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