यह ख़बर 24 सितंबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

मारन की चिट्ठी से पीएम की भूमिका पर सवाल

खास बातें

  • दस्तावेजों के मुताबिक प्रधानमंत्री की सहमति के बाद स्पेक्ट्रम की कीमतें तय करने का जिम्मा ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स से लेकर टेलीकॉम मंत्री को दिया गया।
New Delhi:

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में प्रधानमंत्री की भूमिका पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता विवेक गर्ग की ओर से मांगी गई जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री की सहमति के बाद ही स्पेक्ट्रम की कीमतें तय करने का जिम्मा ग्रुप ऑफ मिनिस्टर से लेकर टेलीकॉम मंत्री को दे दिया गया था। दस्तावेजों के मुताबिक 2006 में प्रधानमंत्री ने दूरसंचार कंपनियों के लिए रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली करवाने के मामले में जीओएम के गठन को मंजूरी दी थी। इस जीओएम में 2−जी स्पेक्ट्रम की कीमतें तय होनी थीं, लेकिन इस दौरान दयानिधि मारन से हुई बातचीत के बाद प्रधानमंत्री ने जीओएम के प्रस्तावित बिंदुओं में फेरबदल करते हुए केवल चार विषयों पर ही जीओएम में चर्चा की अनुमति दी। इस फैसले के बाद 2जी स्पेक्ट्रम की कीमतें तय करने का हक सिर्फ टेलीकॉम मंत्रालय के पास रह गया।


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