पंद्रहवी लोकसभा का कार्यकाल इस वर्ष मई में समाप्त होने वाला है और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों से यह बात सामने आई है कि देश के तकरीबन प्रत्येक राज्य में सांसद निधि कोष का एक बड़ा हिस्सा बिना उपयोग के ही रह जाएगा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश का कोई भी संसद सदस्य सांसद निधि की पूरी राशि का उपयोग नहीं कर पाया है। इस राशि का आवंटन उन्हें अपने क्षेत्र में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए करना होता है।
राष्ट्रीय राजधानी में लोकसभा सांसदों के लिए उपलब्ध 93.75 करोड़ रुपये की राशि का 70 प्रतिशत धन का ही उपयोग किया जा सका और 28.80 करोड़ रुपये खर्च नहीं किये जा सके। उत्तरी राज्यों में ऐसी ही स्थिति देखने को मिली है।
हरियाणा के सांसदों को उपलब्ध 178.64 करोड़ रूपये में से 24.15 प्रतिशत राशि का बिना उपयोग के ही समाप्त होना तय माना जा रहा है जबकि पंजाब में 25 प्रतिशत राशि खर्च नहीं की जा सकी।
उत्तरप्रदेश में सांसद निधि के तहत प्रदान की जाने वाली 1306 करोड़ रुपये की राशि में से 344.26 करोड़ खर्च नहीं की जा सकी है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सांसद निधि की राशि खर्च करने में उत्तरी राज्यों का प्रदर्शन काफी खराब रहा जबकि पूर्वी एवं दक्षिणी राज्यों का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से बेहतर रहा। पश्चिमी क्षेत्र में तेजी से विकास कर रहे राज्यों में शामिल गुजरात में 25.50 प्रतिशत राशि का उपयोग नहीं किया जा सका।
राजस्थान के सांसदों ने 98.29 करोड़ रूपये की राखि खर्च नहीं की जबकि बिहार के सांसदों ने निधि की 32.36 प्रतिशत राशि का उपयोग नहीं किया। पश्चिम बंगाल में 29.65 प्रतिशत राशि का उपयोग नहीं किया जा सका।
साक्षरता और लिंग अनुपात में सतत रूप से बेहतर प्रदर्शन करने वाले मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में सांसद निधि का बेहतर उपयोग किया गया। मिजोरम में केवल 6.19 प्रतिशत राशि जबकि मिजोरम में 17.66 प्रतिशत राशि का उपयोग नहीं किया जा सका।
दक्षिणी राज्यों में तमिलनाडु सांसदों को आवंटित कुल 602.84 करोड़ रुपये की राशि का 19.40 प्रतिशत (करीब 116.98 करोड़ रुपये) खर्च नहीं किया जा सका।
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