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This Article is From Dec 08, 2014

आदर्श ग्राम योजना की हक़ीक़त

Ravish Kumar, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    दिसंबर 08, 2014 21:26 pm IST
    • Published On दिसंबर 08, 2014 21:15 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 08, 2014 21:26 pm IST

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। बहुत से शहरी लोगों के लिए गांव एक बीमार बच्चा है, जिसे योजनाओं के सरकारी अस्पतालों में जाने कब से ठीक किया जा रहा है। बहुत से लोगों के लिए गांव पुरानी यादों की वह बस्ती है, जहां सबकुछ वैसा ही है जैसा वह छोड़ आए थे। जिसकी हवा कहीं से नहीं आती बल्कि वहीं पैदा होती है और खप जाती है। जहां का घी कभी खराब नहीं होता और सब्ज़ी बिना रसायन के उग जाती है।

दिल्ली से चलने वाली योजनाएं नाम तो प्रधानमंत्री का ढोती हैं, मगर गांव के प्रधान के घर पहुंचते ही अपना बोझा उतार देती हैं। दिल्ली हर गांव के लिए सपना देखती है और हर गांव दिल्ली का रास्ता। जब तक कोई योजना गांव पहुंचती है, गांव वाला दिल्ली मुंबई की रेल पकड़ लेता है।

इन तमाम निराशाओं के बीच प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से आदर्श ग्राम योजना का एलान किया था, जिसे जेपी की जयंती यानी 11 अक्तूबर को लॉन्च कर दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा था कि हर सांसद को 2019 तक तीन आदर्श गांव बनाने होंगे। पहला गांव 2016 तक बन जाना चाहिए और 2019 से 24 तक 5 और गांव बन जाने चाहिएं। इस हिसाब से दस साल के भीतर 6433 गांव आदर्श हो जाएंगे। भारत में छह लाख से ज्यादा गांव हैं। यानी दस साल में एक प्रतिशत के आस पास ही गांव आदर्श बन पाएगे।

प्रधानमंत्री का मकसद है कि बाकी गांव इनसे सीखेंगे। इससे पहले कि बाकी गांव सीखते खबर आने लगी कि किसी नेता ने अपनी जाति की बहुलता वाले गांव का चयन किया है तो किसी ने उस गांव का चयन किया, जिसमें एक भी मुसलमान नहीं है। संविधान के आदर्शों के खिलाफ जाकर भेदभाव के आदर्श की खबरें आने लगीं। बाकी गांव ये सब न ही सीखें तो अच्छा रहेगा, क्योंकि आदर्श गांव का एक लिखित उद्देश्य यह भी है कि वहां सामाजिक समरसता और न्याय सुनिश्चित करना है।

पहली बार किसी योजना के चयन के लिए ऐसी कैटगरी बनी कि गांव ससुराल और मायके का नहीं होना चाहिए। वर्ना इन गांवों के मुलायम सिंह यादव के सैफई जैसे अतिविकसित होने का खतरा हो सकता है। तो आदर्श ग्राम योजना की शर्त सिम्पल है, सांसद कोई भी ग्राम पंचायत चुन सकते हैं अपना और अपने पति-पत्नी का गांव छोड़कर। 3000−5000 की जनसंख्या होनी चाहिए गांव की। पहाड़ी इलाकों के लिए 1000−3000 होनी चाहिए।

ऐसा क्राइटेरिया बनाया गया कि जयप्रकाश नारायण का गांव सिताब दियारा ही बाहर हो गया। जिनकी जयंती पर ये योजना हुई उनका गांव आबादी के कारण आदर्श ग्राम के रूप में नहीं चुना जा सका।

आदर्श ग्राम योजना के लॉन्च के समय प्रधानमंत्री का दिया भाषण और चालीस पन्नों की एक गाइडलाइन पुस्तिका www.saanjhi.gov.in पर मौजूद है। इसमें जो कार्यसूची है, उसमें 80 से भी ज्यादा प्रकार के काम हैं। इतने काम हैं कि सांसद महोदय को दूसरे गांव में चाय पीने का भी टाइम नहीं मिलेगा। शादी और श्राद्ध में बुलावे को कैसे मना करेंगे ये वही जाने। मैंने अपने हिसाब से गाइडलाइंस से कुछ का चयन किया है। आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव के विकास को चार भागों में बांटा गया है। वैयक्तिक, मानव, आर्थिकी और सामाजिक।

वैयक्तिक विकास के तहत साफ सफाई की आदत का विकास किया जाएगा। दैनिक व्यायाम होंगे। रोज़ नहाने और दांत साफ करने की सीख दी जाएगी।
 

मानव विकास के तेहत सभी को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मिलेंगी, लिंगानुपात संतुलित किया जाएगा। स्कूल स्मार्ट हो जाएंगे और कम से कम दसवीं पास शिक्षित होंगे ही।
 

सामाजिक विकास के तहत एक ऐसा ग्रामीण गीत बनाना होगा, जिससे लोगों में गर्व की भावना पनपे ग्राम दिवस मने,गा अनुसूचित जाति जनजाति को गांवों में समावेशन के लिए सक्रिय उपाय किए जाएंगे।
 

आर्थिक विकास के तहत मिट्टी हेल्थ कार्ड, बीज बैंक की स्थापना, गोबर बैंक, मवेशी होस्टल बनेगा।


गाइडलाइन की हिन्दी देखकर लगा कि सबसे पहले आदर्श सरकारी हिन्दी योजना लॉन्च होनी चाहिए। आदर्श ग्राम में नियमित ग्राम सभा तो होगी ही महिला सभा और बाल सभा भी होगी। गाइडलाइंस के हिसाब से आदर्श ग्राम का लक्ष्य सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता जवाबदेही और ईमानदारी को बढ़ावा देना है और आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न करना है। ईमानदारी को बढ़ावा देने वाली इस योजना को राजनीतिक दलों में भी लागू किया जाना चाहिए।

हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर मिश्रा ने जानकारी जुटाई है कि सांसद आदर्श ग्राम योजना के लिए 11 अक्तूबर से 11 नवंबर के बीच आदर्श ग्राम का चयन हो जाना चाहिए था, लेकिन दोनों सदनों के 206 सांसदों ने अभी तक आदर्श ग्राम की पहचान नहीं की है।

प्रधानमंत्री ने इस योजना के लॉन्च के समय कहा था कि हम चाहते हैं कि योजना गांवों में बनकर दिल्ली आए। लेकिन जब आप गाइडलाइंस पढ़ेंगे तो उसमें दिल्ली ने गांवों के लिए कम ही गुंज़ाइश छोड़ी है।

तो सांसदों ने काम करने के डर से सवाल उठाएं हैं या वाकई उनके सवाल वाजिब हैं कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा। प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए डॉक्टर कहां से आएंगे? मवेशी हॉस्टल की रूपरेखा क्या होगी?

गाइडलाइंस में लिखा है कि केंद्र और राज्यों की अन्य योजनाओं के संसाधनों का इस्तेमाल करना होगा। प्राइवेट कंपनियों के सामाजिक फंड से पैसे जुटाने होंगे। सांसद निधि के पैसे का भी इसके लिए इस्तेमाल हो सकता है।

विरोधी दल के सांसद इससे संतुष्ट नहीं हैं। पहले भी 2009−10 में प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना बनी थी, जिसके तहत उन गांवों का चयन होना था, जिसमें पचास फीसदी से ज्यादा दलित आबादी हो। पहले चरण में इसे कई राज्यों के एक हज़ार गांवों का चयन हुआ। वह आदर्श बने की नहीं बने मुझे जानकारी नहीं है। वह योजना समाप्त हो गई यह भी नहीं मालूम।

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