नई दिल्ली:
मणिपुर के चंदेल जिले के जिस हमले में उग्रवादियों ने सेना के 18 जवान मार दिए वो एक 'ऑपरेशनल फेलियर' है, ये कहना है केंद्रीय गृह मंत्रालय का। एनडीटीवी इंडिया को गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक ये शुरुआती जांच में प्रक्रियागत नाकामी का मामला लग रहा है। काफ़िले के रवाना होने से पहले नियम के मुताबिक सड़क साफ़ करने वाली पार्टी नहीं भेजी गई थी।
एक सीनियर अफसर ने कहा, 'कई इनपुट्स थे जो सेना से बांटे भी गए थे लेकिन इसके बावजूद हमला हुआ। यहां तक कि मई की आखिरी मल्टी एजेंसी मीटिंग में भी इस पर चर्चा हुई थी।'
उधर अब गृह मंत्रालय में इस बात पर दुबारा ज़ोर दिया जा रहा है कि भारत म्यांमार सीमा पर पहरा कैसे कड़ा किया जाए। फिलहाल वहां असम राइफल्स तैनात है लेकिन अब बात वहां बीएसएफ को भेजने की हो रही है।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, 'असम राइफल्स सीमा पर भी पहरा देती है और काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस भी करती है। दोनों मुमकिन नहीं है इसलिए सीमा को सुरक्षित करने के लिए बीएयएफ को बोला जा रहा है।'
फिलहाल मणिपुर में असम राइफल्स की 11 बटालियन तैनात हैं। इस हमले की जांच का काम राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) को सौंप दिया गया है।
कौन हैं हमले की जिम्मेदारी लेने वाले दोनों संगठन?
1. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खपलांग) : यह संगठन पूर्वोत्तर के बाकी उग्रवादी गुटों के साथ मिलकर पहले भी हिंसा कर चुका है। यह नगा समुदाय की ज्यादा आबादी वाले पूर्वोत्तरी राज्यों को मिलाकर ग्रेटर नगालैंड बनाना चाहता है। इस संगठन के साथ करीब 2000 उग्रवादी जुड़े हैं। मणिपुर के चंदेल सहित पहाड़ी इलाकों में भी इस संगठन की पैठ है। इसकी केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता विफल हो चुकी है।
अप्रैल में ही इस संगठन ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष विराम खत्म करने का फैसला किया था। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने गुरुवार को ही इस बारे में कहा कि संघर्ष विराम अचानक खत्म करने के इस संगठन के फैसले से हमें आश्चर्य हुआ। संगठन की गतिविधियां चिंताजनक हैं, क्योंकि यह फिर हिंसक गतिविधियों और अवैध वसूली में लिप्त हो रहा है।
2. यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया : इस ग्रुप में उत्तर पूर्व राज्यों में सक्रीय ज्यादातर आतंकवादी गुट हैं जैसे - NSCN, NDBF, ULFA। इसके म्यांमार, गारो हिल्स ऑफ मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में कैंप बताए जाते हैं। बताया जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी इस संगठन की मदद करती है। उल्फा के बातचीत समर्थक धड़े की सरकार के साथ वार्ता हाल ही में अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी। इसके बाद से विरोधी धड़ा और सक्रिय हो गया।
सूत्रों के अनुसार यूएनएलएफडब्ल्यू का गठन गत 17 अप्रेल को म्यांमार के टागा क्षेत्र में किया गया था। यह संगठन वर्तमान में यहीं से अपनी गतिविधियां चला रहा है। सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के अनुसार इस संगठन के गठन के बीज तो वर्ष 2011 में चीन के यूनान प्रांत के रूईली में हुई बैठक में बो दिए गए थे। इस बैठक में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी समेत पूर्वोत्तर के कई संगठनों ने भाग लिया था।
उधर शुक्रवार को सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने इंफाल जाकर हालात का जायज़ा लिया। मणिपुर और नगालैंड में सभी सुरक्षा बालों को अलर्ट कर दिया गया है चौकसी खास कर सुरक्षा प्रतिष्ठानों के आस-पास बढ़ा दी गयी है। सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग के साथ ईस्टर्न आर्मी कमांडर और तीन कोर के जीओसी भी थे। इस बीच सेना के जवान इलाक़े में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।
एक सीनियर अफसर ने कहा, 'कई इनपुट्स थे जो सेना से बांटे भी गए थे लेकिन इसके बावजूद हमला हुआ। यहां तक कि मई की आखिरी मल्टी एजेंसी मीटिंग में भी इस पर चर्चा हुई थी।'
उधर अब गृह मंत्रालय में इस बात पर दुबारा ज़ोर दिया जा रहा है कि भारत म्यांमार सीमा पर पहरा कैसे कड़ा किया जाए। फिलहाल वहां असम राइफल्स तैनात है लेकिन अब बात वहां बीएसएफ को भेजने की हो रही है।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, 'असम राइफल्स सीमा पर भी पहरा देती है और काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस भी करती है। दोनों मुमकिन नहीं है इसलिए सीमा को सुरक्षित करने के लिए बीएयएफ को बोला जा रहा है।'
फिलहाल मणिपुर में असम राइफल्स की 11 बटालियन तैनात हैं। इस हमले की जांच का काम राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) को सौंप दिया गया है।
कौन हैं हमले की जिम्मेदारी लेने वाले दोनों संगठन?
1. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खपलांग) : यह संगठन पूर्वोत्तर के बाकी उग्रवादी गुटों के साथ मिलकर पहले भी हिंसा कर चुका है। यह नगा समुदाय की ज्यादा आबादी वाले पूर्वोत्तरी राज्यों को मिलाकर ग्रेटर नगालैंड बनाना चाहता है। इस संगठन के साथ करीब 2000 उग्रवादी जुड़े हैं। मणिपुर के चंदेल सहित पहाड़ी इलाकों में भी इस संगठन की पैठ है। इसकी केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता विफल हो चुकी है।
अप्रैल में ही इस संगठन ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष विराम खत्म करने का फैसला किया था। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने गुरुवार को ही इस बारे में कहा कि संघर्ष विराम अचानक खत्म करने के इस संगठन के फैसले से हमें आश्चर्य हुआ। संगठन की गतिविधियां चिंताजनक हैं, क्योंकि यह फिर हिंसक गतिविधियों और अवैध वसूली में लिप्त हो रहा है।
2. यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया : इस ग्रुप में उत्तर पूर्व राज्यों में सक्रीय ज्यादातर आतंकवादी गुट हैं जैसे - NSCN, NDBF, ULFA। इसके म्यांमार, गारो हिल्स ऑफ मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में कैंप बताए जाते हैं। बताया जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी इस संगठन की मदद करती है। उल्फा के बातचीत समर्थक धड़े की सरकार के साथ वार्ता हाल ही में अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी। इसके बाद से विरोधी धड़ा और सक्रिय हो गया।
सूत्रों के अनुसार यूएनएलएफडब्ल्यू का गठन गत 17 अप्रेल को म्यांमार के टागा क्षेत्र में किया गया था। यह संगठन वर्तमान में यहीं से अपनी गतिविधियां चला रहा है। सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के अनुसार इस संगठन के गठन के बीज तो वर्ष 2011 में चीन के यूनान प्रांत के रूईली में हुई बैठक में बो दिए गए थे। इस बैठक में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी समेत पूर्वोत्तर के कई संगठनों ने भाग लिया था।
उधर शुक्रवार को सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने इंफाल जाकर हालात का जायज़ा लिया। मणिपुर और नगालैंड में सभी सुरक्षा बालों को अलर्ट कर दिया गया है चौकसी खास कर सुरक्षा प्रतिष्ठानों के आस-पास बढ़ा दी गयी है। सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग के साथ ईस्टर्न आर्मी कमांडर और तीन कोर के जीओसी भी थे। इस बीच सेना के जवान इलाक़े में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।
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