बुलढाणा:
महाराष्ट्र के बुलढाणा में एक किसान परिवार में चार लोगों ने खुदकुशी करने की कोशिश की। इनमें से तीन की मौत हो गई, वहीं एक की हालत नाज़ुक बताई जा रही है। खुदकुशी की वजह फसल खराब होने पर निराशा और बैंक ऋण चुकाने को लेकर चिंता बताई जा रही है। पुलिस के मुताबिक पश्चिमी विर्दभ में मलथाना गांव के अपने घर में बीती रात एक किसान के परिवार के चार सदस्यों ने ज़हर खा लिया।
बताया गया कि पीड़ितों को एक अस्पताल ले जाया गया जहां पर उनमें से तीन सदस्य दिनेश सनयंसिंह मसाने, लक्ष्मीबाई दयानसिंह मसाने और सुरेश दयानसिंह मसाने की मौत हो गई। चौथा सदस्य दयानसिंह सानू मसाने जिंदगी के लिए जूझ रहा है। गौरतलब है कि इसी हफ्ते महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के 29 हज़ार 600 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया है। सूखे की मार सबसे ज्यादा किसान झेल रहे हैं और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में राज्यों को फटकार लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तीन राज्यों को फटकार लगाई कि वे सूखे को लेकर बेपरवाह हैं। अदालत ने कहा कि बिहार, हरियाणा और गुजरात एक हफ्ते में बताएं कि उनके यहां सूखा या सूखे जैसे हालात हैं या नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि केंद्र सूखे से निबटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाए; किसानों की ख़ुदकुशी और पलायन को भी इसके दायरे में लाए। एक हफ़्ते में बताए कि उनके राज्यों में सूखा है या नहीं और इसके लिए कृषि सचिव तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बैठक करें। बता दें कि इसके बाद ही महाराष्ट्र ने अपने राज्य के 29 हज़ार से भी ज्यादा गांवों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया था।
राज्य सरकार का दायित्व बढ़ा
अमूमन सरकारें 'सूखा' और 'सूखे जैसे हालात' इन सरकारी संज्ञाओं के आधार पर अपने फैसले लेती हैं। राज्य में सूखा घोषित करने के मार्गदर्शक तत्व अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे हैं। मौजूदा आदेशों के चलते अब राज्य सरकार का सूखाग्रस्त इलाकों में दायित्व बढ़ जाता है जिसमें वित्तीय जिम्मेदारी अधिक होती है। प्रभावित लोगों को पानी, रोजगार, खाना मुहैया करवाने के साथ उनके जगह बदलने के खर्चे की जिम्मेदारी भी सरकार को उठानी होगी।
बताया गया कि पीड़ितों को एक अस्पताल ले जाया गया जहां पर उनमें से तीन सदस्य दिनेश सनयंसिंह मसाने, लक्ष्मीबाई दयानसिंह मसाने और सुरेश दयानसिंह मसाने की मौत हो गई। चौथा सदस्य दयानसिंह सानू मसाने जिंदगी के लिए जूझ रहा है। गौरतलब है कि इसी हफ्ते महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के 29 हज़ार 600 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया है। सूखे की मार सबसे ज्यादा किसान झेल रहे हैं और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में राज्यों को फटकार लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तीन राज्यों को फटकार लगाई कि वे सूखे को लेकर बेपरवाह हैं। अदालत ने कहा कि बिहार, हरियाणा और गुजरात एक हफ्ते में बताएं कि उनके यहां सूखा या सूखे जैसे हालात हैं या नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि केंद्र सूखे से निबटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाए; किसानों की ख़ुदकुशी और पलायन को भी इसके दायरे में लाए। एक हफ़्ते में बताए कि उनके राज्यों में सूखा है या नहीं और इसके लिए कृषि सचिव तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बैठक करें। बता दें कि इसके बाद ही महाराष्ट्र ने अपने राज्य के 29 हज़ार से भी ज्यादा गांवों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया था।
राज्य सरकार का दायित्व बढ़ा
अमूमन सरकारें 'सूखा' और 'सूखे जैसे हालात' इन सरकारी संज्ञाओं के आधार पर अपने फैसले लेती हैं। राज्य में सूखा घोषित करने के मार्गदर्शक तत्व अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे हैं। मौजूदा आदेशों के चलते अब राज्य सरकार का सूखाग्रस्त इलाकों में दायित्व बढ़ जाता है जिसमें वित्तीय जिम्मेदारी अधिक होती है। प्रभावित लोगों को पानी, रोजगार, खाना मुहैया करवाने के साथ उनके जगह बदलने के खर्चे की जिम्मेदारी भी सरकार को उठानी होगी।
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