कोरोनावायरस के खिलाफ चल रही लॉकडाउन की लड़ाई में मजदूरों का एक बड़ा वर्ग परेशानी का सामना कर रहा है. ऐसी ही एक मुश्किल हालात की कहानी आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करने वाले दर्जनभर मजदूरों की है. राहत इस बात की है कि इस कठिन दौर में इन दर्जनभर हिन्दू मजदूरों की मदद एक मुस्लिम गांव कर रहा है. आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करने वाले सुग्रीव चौधरी ने बताया, 'हमारे घर में एक रुपया तक नहीं है. कैसे हम लोग आटा लें. चावल या सब्जी खाएं. जो हमारा घरवाले हैं वो वहां फंस गए हैं, वो लोग वहां खा पी नहीं पा रहे हैं और हम लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं.'
सुग्रीव चौधरी अपने दस साथियों समेत हापुड़ में हैं और इनकी बीवी, चार बच्चे और एक बूढ़ी मां पश्चिमी चंपारण के छोटे से गांव पतिलार में हैं. सुग्रीव, नंदलाल चौधरी समेत दस मजदूर फिलहाल हापुड़ के सरावनी गांव में रुके हैं लेकिन इनका परिवार हजार किमी दूर पतिलार और बिसरवा जैसे गांवों में रहता है. जहां परिवार के पास न तो राशन है और न ही पैसे.
उन्होंने बताया, 'हमें यहां दिक्कत नहीं है लेकिन हमारा परिवार बिहार में भूखों मर रहा है. मेरे परिवार में बीवी है और चार छोटे-छोटे बच्चे. कुछ नहीं हो रहा है. फोन से बात होती तो परिवार वाले रोते हैं, कहते हैं हम लोग भूखों मर रहे हैं. हम लोग तो पैदल ही चले जाएंगे.'
बीते महीने लगे लॉकडाउन के बाद ये लोग भूखे प्यासे पैदल ही चंपारण जा रहे थे लेकिन मुस्लिम आबादी वाले इस गांव के लोगों ने समझाया. शादाब चौधरी जैसे लोगों ने अपने रिश्तेदार का घर,महीने भर का राशन,गैस चूल्हा तक दे दिया. तबसे ये मजदूर गांव में ही रुके हैं लेकिन जैसे जैसे लॉकडाउन बढ़ रहा है इन मजदूरों का बिहार में रहने वाला परिवार दाने-दाने को मोहताज हो रहा है.
शादाब चौधरी ने बताया, 'लॉकडाउन जब से बढ़ा है तबसे यानि कल और परसों से ये लोग ज्यादा परेशान हैं. परिवार से बात करते हुए रोने लगते हैं. हम लोग समझाते हैं लेकिन हम लोग भी सोचते हैं कि अगर हम बाहर होते हमारा परिवार गांव होता तो क्या करते. सरकार को इस ओर सोचना चाहिए.'
अब गांव के बड़े बुजुर्ग इन मजदूरों को अपने घर में बुलाकर समझा रहे हैं. इलाके के दरोगा भी आकर लॉकडाउन की सख्ती बता रहे हैं लेकिन बिहार में भुखमरी की दहलीज पर बैठे अपने परिवार के लिए अब सुग्रीव, नंदलाल जैसे मजदूर हापुड़ के सनावरी गांव की दहलीज छोड़कर पैदल ही बिहार जाने की जिद कर रहे हैं.
लेकिन सबसे दिक्कत इनकी ये है कि जो बिहार में इनका परिवार रहता है वहां अच्छी तरह से मदद पहुंचाई जाए तो शायद ये लोग वहां जाने की जिद न करें.
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