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This Article is From Jun 28, 2013

अनुच्छेद 370 विवाद : आडवाणी का उमर पर पलटवार

अनुच्छेद 370 विवाद : आडवाणी का उमर पर पलटवार
नई दिल्ली: भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने की उनकी मांग की राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की ओर से की गई आलोचना पर उन्हें सलाह दी कि वह ‘धोखे और छल’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी हमेशा से अनुच्छेद 370 की विरोधी रही है।

उन्होंने अपनी नवीनतम ब्लॉग पोस्टिंग में कहा, यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू और कुछ अन्य नेताओं को छोड़कर कांग्रेस पार्टी भी जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने की कड़ी विरोधी थी।

आडवाणी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की आत्मकथा का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां तक कि वह भी अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे, लेकिन नेहरू के सम्मान की वजह से उन्होंने अपने विचारों को पीछे रखा।

आडवाणी ने अपने ब्लॉग में कहा, ‘‘राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर से संबंधित मामलों पर भाजपा से असहमत होने का पूरा अधिकार है। लेकिन मैं उन्हें सलाह दूंगा कि वह कभी भी आक्रामक भाषा और ‘धोखे या छल’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करें।’’

आडवाणी ने हाल में कहा था कि अनुच्छेद 370 समाप्त किया जाना चाहिए। अब्दुल्ला ने इस पर आडवाणी का नाम लिए बिना ‘‘बेवजह निरस्तीकरण का मुद्दा उछालने’’ के लिए उनकी निन्दा की थी।

इस मुद्दे पर भाजपा के रुख के लिए ‘धोखे’ और ‘छल’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल को ‘अत्यधिक अनुचित और अपमानजनक’ बताते हुए आडवाणी ने कहा कि उनकी पार्टी 1951 में जनसंघ के जन्म के समय से अब तक ‘न केवल स्पष्टवादी और अटल रही है, बल्कि उसके लिए यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके लिए पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।’

जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को 1952 में जम्मू कश्मीर में उस समय गिरफ्तार कर लिया गया था जब उन्होंने परमिट के बिना राज्य में घुसने की कोशिश की जो उस समय वहां जाने के लिए जरूरी होता था। कैद के दौरान उनकी कथित तौर पर रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

आडवाणी ने कहा, ‘‘कानपुर में अपने सबसे पहले अखिल भारतीय सत्र के समय से हम भारत में जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण की मांग करते रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, अब्दुल्ला को पता होना चाहिए कि जब जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था तो तब जनसंघ की स्थापना भी नहीं हुई थी।

भाजपा नेता ने कहा, ‘‘हालांकि, संविधान का मसौदा तैयार करने में अगर ऐसा कोई प्रावधान था जिसके खिलाफ लगभग समूची कांग्रेस पार्टी थी तो वह यह प्रावधान था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संविधान को पूर्ण रूप से स्वीकार करने से केवल दो महीने पहले इस मुद्दे पर संविधान सभा ने 1949 में विचार किया था।’’

कांग्रेस और अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस राज्य तथा केंद्र में गठबंधन सहयोगी हैं। सरदार पटेल के निजी सचिव वी शंकर द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘माई रेमनिसंस ऑफ सरदार पटेल’ के हवाले से आडवाणी ने कहा कि नेहरू ने विदेश यात्रा पर जाने से पहले उमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला के साथ मिलकर मसौदे को अंतिम रूप दिया था।

नेहरू ने कांग्रेस संसदीय दल के समक्ष इसका बचाव करने के लिए इसे अपने साथी कांग्रेस नेता गोपालस्वामी अयंगर पर छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल इस विचार के विरुद्ध थे लेकिन बाद में वह इस पर आगे बढ़े।

हालांकि, कांग्रेस सदस्यों के कड़े विरोध पर, जो कि इस मुद्दे पर मौलाना आजाद तक पर चिल्लाए, पटेल ने कहा ‘‘अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं’’ के कारण केवल एक अस्थाई दृष्टिकोण बनाया जा सकता है।

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