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This Article is From Sep 26, 2021

विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने की जरूरत: प्रधान न्यायाधीश

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘मैं कहना चाहूंगा कि हमारे कानूनों को हमारी व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खाना चाहिए. कार्यपालिका को संबंधित नियमों को सरल बनाकर इन प्रयासों का मिलान करना होगा.’’

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विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने की जरूरत: प्रधान न्यायाधीश
CJI बोले- कानूनों को हमारी व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खाना चाहिए. (फाइल फोटो)
कटक:

प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन वी रमण (N V Ramana) ने शनिवार को कहा कि विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने और उन्हें समय तथा लोगों की जरूरतों के अनुरूप सुधारने की जरूरत है, ताकि वे ‘‘व्यावहारिक वास्तविकताओं'' से मेल खा सकें. सीजेआई ने यहां ओडिशा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (ओएसएलएसए) के नए भवन का उद्घाटन करते हुए यह भी कहा कि ‘‘संवैधानिक आकांक्षाओं'' को साकार करने के लिए कार्यपालिका और विधायिका को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने आगामी सप्ताह में एक देशव्यापी कानूनी जागरूकता मिशन शुरू करने का फैसला किया है.

कानूनों को हमारी व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खाना चाहिए

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘मैं कहना चाहूंगा कि हमारे कानूनों को हमारी व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खाना चाहिए. कार्यपालिका को संबंधित नियमों को सरल बनाकर इन प्रयासों का मिलान करना होगा.'' उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कार्यपालिका और विधायिका के लिए ‘‘संवैधानिक आकांक्षाओं को साकार करने के लिए मिलकर कार्य करना'' महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा करने से न्यायपालिका को कानून-निर्माता के रूप में कदम उठाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा और उसके पास केवल कानूनों को लागू करने तथा व्याख्या करने के कर्तव्य रह जाएंगे.

भारतीय न्यायिक प्रणाली दोहरी चुनौतियों का सामना कर रही

प्रधान न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि भारतीय न्यायिक प्रणाली दोहरी चुनौतियों का सामना कर रही है और सबसे पहले ‘‘न्याय प्रदायगी प्रणाली का भारतीयकरण'' होना चाहिए. उन्होंने कहा कि आजादी के 74 साल बाद भी परंपरागत जीवन शैली का पालन कर रहे लोग और कृषि प्रधान समाज ‘‘अदालतों का दरवाजा खटखटाने में झिझक महसूस'' करते हैं. न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘हमारे न्यायालयों की परंपराएं, प्रक्रियाएं, भाषा उन्हें विदेशी लगती हैं.'' उन्होंने कहा कि कानूनों की जटिल भाषा और न्याय प्रदायगी की प्रक्रिया के बीच आम आदमी अपनी शिकायत के भविष्य पर नियंत्रण खो देता है.
उन्होंने कहा कि यह एक कठोर वास्तविकता है कि प्राय: भारतीय कानूनी प्रणाली सामाजिक वास्तविकताओं और निहितार्थों को ध्यान में रखने में विफल रहती है. 

आम आदमी को त्वरित समाधान की जरूरत है

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से हमारी प्रणाली को इस तरह से बनाया गया है कि जब तक सभी तथ्यों और कानून पर अदालत में मंथन किया जाता है, तब तक बहुत कुछ खत्म हो जाता है.'' न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि ‘‘भारत में न्याय तक पहुंच'' की अवधारणा केवल अदालतों के समक्ष एक आरोपी का प्रतिनिधित्व करने के लिए वकील प्रदान करने से कहीं 
अधिक व्यापक है. उन्होंने कहा कि भारत में गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने का काम ओएसएलएसए जैसी कानूनी सेवा संस्थाओं को सौंपा गया है, जिनकी गतिविधियों में उन वर्गों के बीच कानूनी जागरूकता और कानूनी साक्षरता बढ़ाना शामिल है जो परंपरागत रूप से संबंधित प्रणाली के दायरे से बाहर रहे हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘चाहे मुआवजे की बात हो या बेदखली या शादी और विरासत से जुड़ा कोई पारंपरिक मुद्दा, एक आम आदमी को त्वरित समाधान की जरूरत है.''

देशव्यापी कानूनी जागरूकता मिशन

न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि लोक अदालत, मध्यस्थता और सुलह जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र को बढ़ावा देने की दिशा में कानूनी सेवाओं के अधिकारियों की बड़ी जिम्मेदारी है ताकि अधिक समावेशी और तेजी से न्याय प्रदान किया जा सके. उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम लोगों का विश्वास बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें न केवल न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है, बल्कि हमें अपने संपर्क कार्यक्रमों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है.'' प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि चुनौती की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए ‘‘हमने आगामी सप्ताह में देशव्यापी कानूनी जागरूकता मिशन शुरू करने का निर्णय लिया है. मैं इस प्रयास को दूर-दूर तक ले जाने के लिए आपके सहयोग और समर्थन की अपेक्षा करता हूं.''

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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