उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में होली के मौके पर निकलने वाला 'लाट साहब' का जुलूस (Laat Sahab Julus) इस बार पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगा. जुलूस के दिन ही जुमे की नमाज और मुस्लिमों का त्योहार शब-ए-बारात भी पड़ रहा है. ऐसे में पुलिस प्रशासन ने जुलूस को शांतिपूर्वक तरीके से निकालने के लिए मुस्तैदी से काम शुरू कर दिया है. एडीएम रामसेवक द्विवेदी ने कहा कि होली का त्योहार और शब-ए-बारात वाले दिन पड़ रहा है. उसी रोज जुमे की नमाज भी है. लिहाजा जोनल और स्टैटिक मजिस्ट्रेट को जुलूस के रास्ते में हर तिराहे और चौराहे पर तैनात किया जाएगा.लाट साहब का जुलूस के दौरान खुफिया निगरानी होगी. जुलूस के रास्ते पर पड़ने वाली सभी मस्जिदों को नगर निगम द्वारा मोटी प्लास्टिक से पूरी तरह ढंक दिया गया है. जुलूस के लिए सड़कों और छोटी गलियों पर बैरिकेडिंग हो रही है.
भारी पुलिस बल तैनाती, रैपिड ऐक्शन फोर्स और ड्रोन कैमरे
एसपी सिटी संजय कुमार ने बताया कि इस बार जुलूस के लिए दो एएसपी,आठ सीओ, 50 इंस्पेक्टर, 225 दरोगा, 300 हेडकांस्टेबल के अलावा 1100 कांस्टेबल, एक कंपनी पीएसी एवं एक कंपनी रैपिड एक्शन फोर्स के साथ साथ दो ड्रोन कैमरे एवं जुलूस की निगरानी के लिए 55 कैमरे लगाए गए हैं. वार्ड स्तर पर बनी कमेटियां एवं थानों में संभ्रांत नागरिकों के साथ पुलिस प्रशासन लगातार बैठकें आयोजित कर सौहार्दपूर्ण वातावरण में होली मनाने की अपील कर रहा है. अराजक तत्वों की पहचान करके उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जा रही है. ऐसे लोगों को रेड कार्ड भी जारी किए जा रहे हैं.
भैंसा गाड़ी पर निकलते हैं लाट साब
शाहजहांपुर में होली के त्योहार पर लाट साहब के जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है. फूलमती देवी मंदिर में लाट साहब के मत्था टेकने के बाद यह जुलूस शुरू होकर कोतवाली पहुंचता है. परंपरा है कि कोतवाल लाट साहब को सलामी देते हैं. जब लाट साहब कोतवाल से पूरे साल में हुए अपराधों का ब्योरा मांगते हैं. तब कोतवाल इनाम के तौर पर उन्हें नकद और एक शराब की बोतल देते हैं. यह जुलूस शहर के काफी बड़े इलाके से होकर गुजरता है. इस दौरान हुरियारे लाट साहब के जयकारों के बीच उन्हें जूतों से मारते हैं. इसी तरह छोटे लाट साहब के भी आधा दर्जन से ज्यादा जुलूस मोहल्लों में निकाले जाते हैं.
300 साल पुरानी परंपरा
जुलूस के आयोजकों का कहना है कि लाट साहब की तलाश होली से एक महीने पहले शुरू कर दी जाती है. लाट साहब बनाए गए शख्स को गुप्त स्थान पर रखा जाता है और उसके खाने-पीने का पूरा ख्याल रखा जाता है.स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज में इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने कहा कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक विवाद के चलते फर्रुखाबाद चले गए थे और वर्ष 1729 में 21 वर्ष की उम्र में वह शाहजहांपुर वापस आए थे. एक बार होली के पर्व पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के मानने वाले लोग होली खेलने उनके घर गए. नवाब ने उनके साथ होली खेली. बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर पूरे शहर का एक चक्कर लगाया गया. तब से यह परंपरा बन गई.
आजादी के बाद जूते मारने का रिवाज आया
पहले ये जुलूस बहुत ही तहजीब के साथ निकाला जाता था मगर आजादी के बाद इस जुलूस का नाम लाट साहब का जुलूस रख दिया गया. अंग्रेजी शासन में आमतौर पर गवर्नर को लाट साहब कहा जाता था. बाद में लाट साहब बने व्यक्ति को जूते मारने का रिवाज शुरू हो गया जिस पर आपत्ति भी दर्ज कराई गई और मामला कोर्ट पहुंचा, मगर अदालत ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं