भारत और स्वीडन के बीच हुए बोफोर्स तोप सौदे में 64 करोड़ रुपये की दलाली के आरोप लगे थे (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
'80 के दशक के उत्तरार्द्ध में जमकर चर्चा में रहीं, और 1989 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हार की वजह बनीं बोफोर्स तोपें फिर सुर्खियों में आ गई हैं. दुनियाभर में बेहतरीन तोपों के तौर पर जानी जाने वाली और पिछली सदी के अंत में करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी फौजों के छक्के छुड़ा देने वाली बोफोर्स तोपों के सौदे में दलाली का मुद्दा सोमवार को एक बार फिर संसद में उठाया गया है.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के किरीट सोमैया ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाकर इससे जुड़े दलाली के मामले की फिर जांच कराए जाने की मांग की. भारत से हुए इस सौदे में करीब 64 करोड़ रुपये की दलाली के आरोप लगे थे, और इसकी जांच पर एजेंसियां इससे भी कहीं ज़्यादा रकम खर्च कर चुकी हैं.
VIDEO: फिर खुल सकता है बोफोर्स घोटाला
सेना को आज भी बोफोर्स पर ही भरोसा
लेकिन इन सब राजनैतिक आरोपों-मांगों से दूर करगिल की पहाड़ियों में तैनात भारतीय सेना के जवानों को आज भी बोफोर्स तोप पर ही भरोसा है, और कहा जाता है कि इन्हीं तोपों की बदौलत वर्ष 1999 के बाद से अब तक पाकिस्तान करगिल की पहाड़ियों पर कोई भी नापाक हरकत करने का साहस नहीं जुटा पाया. बताया जाता है कि करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की हरकतों और इरादों को सबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं बोफोर्स तोपों ने पहुंचाया था.
दरअसल, वर्ष 1986 में स्वीडन से करीब 410 बोफोर्स तोपें खरीदी गई थीं, जिनकी मारक क्षमता 38 से 40 किलोमीटर तक थी. इनमें से आधी से ज़्यादा तोपें खराब हो चुकी हैं, और समय-समय पर लगते रहे प्रतिबंधों की वजह से इसके कलपुर्ज़े भी नहीं खरीदे जा पाए, सो, फिलहाल सिर्फ 200 बोफोर्स तोपें ही काम करने की हालत में हैं.
बोफोर्स विवाद से नुकसान सेना को ही हुआ
वैसे, बोफोर्स तोपों के सौदे को लेकर हुए विवाद की वजह से सबसे ज़्यादा नुकसान भारतीय सेना ने ही झेला है, क्योंकि पाबंदियां लगते चले जाने की वजह से पाकिस्तान से सटी सीमा पर तैनाती के लिए ज़रूरी भारी तोपें वर्ष 1986 के बाद कभी खरीदी ही नहीं गईं, हालांकि इसी साल अमेरिका से एम-777 तोपें खरीदी गई हैं, जो हल्की हैं, और जिन्हें चीन से सटी सीमा पर तैनात किया जाना है.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के किरीट सोमैया ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाकर इससे जुड़े दलाली के मामले की फिर जांच कराए जाने की मांग की. भारत से हुए इस सौदे में करीब 64 करोड़ रुपये की दलाली के आरोप लगे थे, और इसकी जांच पर एजेंसियां इससे भी कहीं ज़्यादा रकम खर्च कर चुकी हैं.
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सेना को आज भी बोफोर्स पर ही भरोसा
लेकिन इन सब राजनैतिक आरोपों-मांगों से दूर करगिल की पहाड़ियों में तैनात भारतीय सेना के जवानों को आज भी बोफोर्स तोप पर ही भरोसा है, और कहा जाता है कि इन्हीं तोपों की बदौलत वर्ष 1999 के बाद से अब तक पाकिस्तान करगिल की पहाड़ियों पर कोई भी नापाक हरकत करने का साहस नहीं जुटा पाया. बताया जाता है कि करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की हरकतों और इरादों को सबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं बोफोर्स तोपों ने पहुंचाया था.
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पढ़ें...
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बोफोर्स विवाद से नुकसान सेना को ही हुआ
वैसे, बोफोर्स तोपों के सौदे को लेकर हुए विवाद की वजह से सबसे ज़्यादा नुकसान भारतीय सेना ने ही झेला है, क्योंकि पाबंदियां लगते चले जाने की वजह से पाकिस्तान से सटी सीमा पर तैनाती के लिए ज़रूरी भारी तोपें वर्ष 1986 के बाद कभी खरीदी ही नहीं गईं, हालांकि इसी साल अमेरिका से एम-777 तोपें खरीदी गई हैं, जो हल्की हैं, और जिन्हें चीन से सटी सीमा पर तैनात किया जाना है.
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