हाथरस मामले (Hathras Case) की रिपोर्टिंग के लिए जाते वक्त गिरफ्तार किए गए केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन (Siddique Kappan) को रिहा करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई टल गई है. कोर्ट ने सुनवाई को जनवरी के तीसरे हफ्ते के लिए टाल दिया है. याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने यूपी सरकार के हलफनामे का जवाब देने के लिए समय मांगा था. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील सिब्बल से पूछा था कि वो इस मामले में हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते हैं?
सिब्बल ने याचिकाकर्ता के पक्ष में दलील थी कि उनके खिलाफ दाखिल एफआईआर में कुछ नहीं है. यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि उसे कप्पन के खिलाफ जांच में चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं. सिब्बल ने कोर्ट में कहा था कि 'पूरी FIR, अंकित मूल्य पर ही नहीं है. एफआईआर में कुछ नहीं है, आप देखिए. हम जवाबी हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं. हम पत्रकार की पत्नी और बेटी से याचिका दाखिल करने को कहेंगे.'
वहीं, पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने जर्नलिस्ट असोसिएशन की ओर से कप्पन की ओर से याचिका दाखिल किए जाने पर एतराज जताया था. उन्होंने सिब्बल से यह भी कहा था कि 'क्या आप हमें कोई मिसाल दिखा सकते हैं, जहां एक एसोसिएशन ने राहत की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था.' जब सिब्बल ने अर्नब गोस्वामी के मुद्दे का जिक्र किया तो सीजेआई ने कहा कि 'हर मामला अलग है.'
बता दें कि केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा पत्रकार सिद्दीक कप्पन की कथित अवैध गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज से एक स्वतंत्र जांच की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामे में यूपी सरकार के दावों पर सवाल उठाए गए हैं. यूनियन ने कहा है कि कप्पन की रिहाई की मांग करने वाली याचिका के जवाब में यूपी सरकार द्वारा दी गई दलीलें झूठी और तुच्छ हैं. हलफनामे में कहा गया है कि 56 दिनों तक सिद्दीक को हिरासत में रखना गैरकानूनी है. साथ ही पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत में यातना देने का भी आरोप लगाया गया गया है.
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यूपी सरकार के हलफनामे में क्या कहा गया है?
यूपी सरकार ने कोर्ट में अपने हलफनामे में कहा है कि कप्पन, जो पीएफआई के ऑफिस सेक्रेटरी हैं, एक पत्रकार कवर का इस्तेमाल कर रहे थे और तेजस नाम से केरल आधारित अखबार का पहचान पत्र दिखा रहे थे, जो 2018 में बंद हो गया था. हलफनामे में कहा गया है कि जांच में पता चला है कि कप्पन अन्य पीएसआई कार्यकर्ताओं और उनके छात्र विंग (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) के नेताओं के साथ जातिवाद विभाजन और कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए पत्रकारिता की आड़ में हाथरस जा रहे थे.
राज्य सरकार ने यह भी साफ किया है कि कप्पन अवैध हिरासत में नहीं है बल्कि एक सक्षम अदालत द्वारा पारित न्यायिक आदेश के तहत वह न्यायिक हिरासत में है. राज्य सरकार ने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने झूठ का सहारा लिया है और केवल मामले को सनसनीखेज बनाने के लिए शपथ पर कई गलत बयान दिए हैं. यही नहीं अब तक की जांच में कप्पन के प्रतिबंधित संगठनों के साथ संबंध होने के सबूत भी सामने आए हैं.
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