कश्मीर के अलगाववादी नेता अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को विदेश भेजने के चलते सरकार की निगाह में आ गए हैं. गृह मंत्रालय ने 200 अलगाववादी नेताओं की लिस्ट जारी की है, जिनके बच्चे या तो विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं या फिर नौकरियां कर रहे हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कई अलगाववादी नेताओं के प्रदर्शन की वजह से कश्मीर में पिछले 3 सालों में से 240 दिन स्कूल और कॉलेज बंद रहे हैं. घाटी में रहने वाले छात्रों को इस वजह से खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है तो वहीं दूसरी तरफ इन्हीं अलगाववादी नेताओं के बच्चे विदेशों में बिना किसी परेशानी के जिंदगी जी रहे हैं. दुख्तरान-ए-मिल्लत के प्रमुख आसिया अंद्राबी के दो बेटे हैं और दोनों ही विदेश में पढ़ाई कर हैं. एक मलेशिया में पढ़ाई कर रहा है और दूसरा बेटा ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है.
इसी तरह, हुर्रियत नेता बिलाल लोन की एक बेटी और दामाद लंदन में बसे हैं जबकि छोटी बेटी ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रही है. वहीं तहरीक-ए-हुर्रियत के चेयरमैन अशरफ सहरई के दो बेटे खालिद-आबिद सऊदी अरब में काम करते हैं. हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमेन सयैद अली शाह गिलानी के दो पोते पाकिस्तान और तुर्की में नौकरियां कर रहे हैं.
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श्रीनगर के स्थानीय पत्रकार अहमद अली फैयाज का कहना है कि समस्या ये है कि जब अलगाववादी नेता बंद का आह्वान करते हैं तो उन्हें कश्मीर के लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए, उन्हें उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए जिनकी वो नुमाइंदगी करते है. फैयाज के मुताबिक ये नेता आए दिन कश्मीर बंद का आगाज करते हैं लेकिन अब जो डाटा हमारे पास है उससे साबित होता है कि उन्हें बंद का आह्वान करने का कोई अधिकार नहीं है. वहीं अलगाववादी नेता इस पर कहते हैं कि संविधान में हर किसी को अपने बच्चों को पढ़ाने का अधिकार है.
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अधिकारी से नेता बने शाह फैसल का कहना है कि हर किसी को अपने बच्चों को विदेश भेजकर पढ़ाने का अधिकार है, यह अधिकार हुर्रियत नेताओं के पास है. आधिकारिक जानकारी के मुताबिक अलगाववादी नेता न सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए विदेश भेज रहे हैं बल्कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपने कई रिश्तेदारों को नौकरियों के लिए विदेश भेजा है. सरकार अब जानकारी जुटा रही है कि इन नेताओं को अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए फंड कहां से मिल रहा है. आशंका जताई जा रही है कि कहीं इनमें हवाला की कोई कड़ी तो नहीं जुड़ी है. अधिकारियों के मुताबिक ऐसा पहली बार हो रहा है जब केंद्र सरकार ने इस तरह के आंकड़ों को पेश किया है जो अलगाववादी नेताओं की पोल खोल रहे हैं.
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