जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) से आर्टिकल 370 (Article 370) हटाने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के फैसले के बाद वहां कई तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं. हालांकि उन्हें धीरे-धीरे हटाया और खत्म किया जा रहा है. इस बीच सेना के सूत्रों ने बड़ा दावा किया है कि 10 सितंबर को मुहर्रम (Muharram 2019) के दिन कश्मीर (Kashmir) में आतंकियों और उनके पनाहगारों की हिंसा फैलाने की योजना है. इसे लेकर इस बार भी मुहर्रम (Muharram) के दिन सड़कों पर जुलूस और ताजिया नहीं निकाला जाएगा.
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने मुहर्रम पर 10 सितंबर को हिंसा फैलाने की साजिश रची
सेना के सूत्रों ने बताया कि कश्मीर की मस्जिदों और जियारत (Shrine) पर हमला (आग लगाने की कोशिश) के जरिये हिंसा फैलाने और माहौल खराब करने की योजना है. इसके अलावा शिया और सुन्नी के बीच आपसी झड़प और हिंसा भड़काने की योजना है. इसी वजह से सुरक्षा बल की सलाह पर यह फैसला लिया गया है. इसे लेकर सुरक्षा बल कश्मीर में सभी गतिविधियों पर अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है.
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उधर, सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि प्रशासन पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए जुलूस निकालने की इजाजत नहीं देगी ताकि कोई असामाजिक तत्व सुरक्षा बलों के साथ झड़प भड़काने के लिए उसका इस्तेमाल ना कर सकें. उन्होंने बताया कि शिया समुदाय के सभी सम्मानित सदस्यों को सूचित कर दिया गया है कि वे इन 10 दिनों में अपने सभी रीत-रिवाज संबंधित इमामबाड़ों में करें. मुहर्रम में शिया समुदाय 10 दिन का शोक मनाता है. यह एक सितंबर से शुरू हुआ है.
Muharram 2019: आखिर मुहर्रम के दिन क्यों मनाया जाता है मातम?
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था. यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्लाह पर उसका कोई विश्वास नहीं था. वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं. लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था. पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था.
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कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?
मुहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं. हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है. मुहर्रम की नौ और 10 तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोजे रखते हैं. कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है.
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(इनपुट: भाषा से भी)
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