जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार खराब स्वास्थ्य की वजह से रविवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में वाम मोर्चा की होने जा रही रैली में शामिल नहीं हो पाएंगे. उनके एक करीबी सहयोगी ने यह जानकारी दी.उन्होंने कहा कि सीपीआई के छात्र प्रकोष्ठ के नेता कन्हैया शनिवार दोपहर बाद से अपनी गर्दन में गंभीर अकड़न से पीड़ित हैं. बिहार के उनके गृहनगर बेगुसराय में एक अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया. उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘फिलहाल, कुमार घर पर हैं और एक फिजियोथेरेपिस्ट उनकी देखभाल कर रहा है. वह अपनी गर्दन को घुमा भी नहीं सकते. चिकित्सकों ने कुमार को आराम करने की सलाह दी है क्योंकि केवल दर्द निवारक गोलियां खाने से उनका दर्द दूर नहीं होगा.'' उन्होंने कहा, हालांकि, इसके बावजूद 32 वर्षीय कुमार रैली में भाग लेने के इच्छुक हैं.गौरतलब है कि माकपा के नेतृत्त्व में वाम मोर्चा राज्य से तृणमूल कांग्रेस की सरकार और केंद्र से भाजपा सरकार को हटाने के लिए पश्चिम बंगाल में यहां एक रैली का आयोजन करने जा रहा है.
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चुनाव लड़ने के लिए बेचैन क्यों हैं कन्हैयाः शिवानंद
जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बिहार के बेगूसराय के लोकसभा चुनाव लड़ने की खबरें चर्चा में हैं. खुद कन्हैया ने स्पष्ट कोई बयान तो नहीं दिया है, मगर चुनाव से पीछे हटने के भी संकेत नहीं दिए हैं. इन चर्चाओं के बीच अब उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी लोग अटकलें लगाने लगे हैं. इसी कड़ी में लालू यादव की पार्टी राजद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कन्हैया कुमार को सुझाव दिया है. कहा है कि उन्हें चुनाव लड़ने की जगह पांच से दस साल अभी अपनी पार्टी को ताकतवर बनाने में लगाना चाहिए. उन्होंने कहा है कि वह अपने युवा साथी को बिन मांगे यह सलाह वरिष्ठ होने की हैसियत से दे रहे हैं. शिवानंद तिवारी ने कन्हैया को लेकर अपने विचार को फेसबुक पर साझा किया है.
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उन्होंने लिखा...कन्हैया कुमार चुनाव लड़ने के लिए इतना बेचैन क्यों हैं. काफ़ी पुरानी बात है. उस ज़माने में लोहिया विचार मंच का मैं कार्यकर्ता हुआ करता था.किशन पटनायक हमारे नेता थे. लोहिया के बाद समाजवाद की उस धारा का मैं उनको मौलिक चिंतक मानता हूं.एक मरतबा बात निकली कि समाजवादी कार्यकर्ता को किस उम्र में चुनाव लड़ना चाहिए. किशन जी का जवाब था कि चालीस की उम्र के पहले चुनाव लड़ना ठीक नहीं है. ऐसा क्यों ? उनका जवाब था कि आदमी जब जवान रहता है तो उसके अंदर एक तरह की आदर्शवादिता रहती है. कुछ कर गुज़रने का जोश और उमंग होता है. उस उम्र में चुनाव लड़ने का अर्थ है उस आदर्शवादिता से समझौता करना.उनके अनुसार चुनाव लड़ने और जीतने के लिए आपको समझौते करने पड़ते हैं. अपनी आदर्शवादिता पर क़ायम रहते चुनाव लड़ना और जीतना संभव नहीं है.
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