निर्भया केस का नाबालिग दोषी (फाइल फोटो)।
नई दिल्ली:
"जुवेनाइल जस्टिस बिल का लोग बाहर इंतजार कर रहे हैं, देश हमारी ओर देख रहा है, हम क्या कर रहे हैं? हम कामर्शियल कोर्ट, रिएल एस्टेट पर चर्चा कर रहे हैं। ज्यादा जरूरी है जेजे बिल, मैं सरकार से अपील करता हूं कि वे इस बिल को पहले एजेंडा में शामिल करें।", तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने राज्यसभा की कार्रवाई शुरू होते ही यह सवाल उठाया। दरअसल यह बिल राज्यसभा में लंबित पड़ा हुआ है और अब निर्भया कांड के आरोपी की रिहाई के बाद संसद में इस बिल पर जल्दी चर्चा कराकर पारित करने की मांग तेज होने लगी है।
सरकार पर आरोप
कांग्रेस इस मसले पर तृणमूल के साथ खड़ी है, लेकिन सरकार की नीयत पर सवाल उठा रही है। राज्य सभा सांसद और कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने NDTV इंडिया से कहा, "सरकार की नीयत नहीं है जुवेनाइल जस्टिस बिल लाने की। बिल को लाने में हो रही देरी के लिए सरकार जिम्मेदार है, विपक्ष नहीं। यह भी समझना जरूरी है कि यह बिल अगर इस सत्र में पारित हो भी जाता है तो इसका निर्भया केस पर कोई असर नहीं पड़ेगा।"
विपक्ष के हंगामे के कारण अटका बिल
उधर सरकार का कहना है कि बिल पर चर्चा के लिए 8, 10 और 11 दिसंबर की तारीख तय की गई थी, लेकिन विपक्ष के हंगामे की वजह से चर्चा नहीं हो पाई। टेलिकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, "सरकार की ओर से हमने बताया है कि निर्भया के बिल को लेकर संज्ञान है पर विपक्ष के विरोध की वजह से बिल पास नहीं हो पा रहा है। पिछले तीन दिन से यह बिल संसद में लाया जाने वाला था। विपक्ष हमें सहायता करे और जुवेनाइल जस्टिस बिल पास करने में सहयोग करे।"
मंगलवार को सर्वदलीय बैठक में होगी चर्चा
सरकार का अब कहना है कि सर्वदलीय बैठक में मंगलवार को बिल पर चर्चा की सहमति बनी है और कांग्रेस भी मसले पर साथ है। उधर सीपीएम बिल के विरोध में नहीं लेकिन उसने यह साफ किया है कि नए कानून से निर्भया केस का फैसला अछूता रहेगा। सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा, "हिंदुस्तान में जब भी कोई कानून लागू होता है तो उसी दिन से लागू होता है। पिछले केस पर उसका असर नहीं होता। इस विशेष केस में मौजूदा कानून के तहत ही कानूनी कार्रवाई होनी थी। अगर कानून बनता भी तो भी इस केस में लागू नहीं होता।"
कानून को लेकर सांसदों में मत भिन्नता
जुवेनाइल जस्टिस कानून में जघन्य अपराध करने वाले बालिगों की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने के सवाल पर सांसदों की राय बंटी हुई है। कुछ सांसद यह मानते हैं कि निर्भया कांड के बाज देश में जो आक्रोश है उसको देखते हुए इस पर संसद में आगे बढ़ना जरूरी है जबकि दूसरी तरफ कुछ सांसद मानते हैं कि किसी एक घटना के आधार पर कानून में इतना अहम फैसला करने से पहले संसद में विस्तार से चर्चा होनी चाहिए। फिलहाल चर्चा यह भी है कि विपक्ष इस बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी को सौंपने की मांग कर सकता है, हालांकि सरकार की कोशिश जुवेनाइल जस्टिस बिल को इसी सत्र में पास कराने की है।
सरकार पर आरोप
कांग्रेस इस मसले पर तृणमूल के साथ खड़ी है, लेकिन सरकार की नीयत पर सवाल उठा रही है। राज्य सभा सांसद और कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने NDTV इंडिया से कहा, "सरकार की नीयत नहीं है जुवेनाइल जस्टिस बिल लाने की। बिल को लाने में हो रही देरी के लिए सरकार जिम्मेदार है, विपक्ष नहीं। यह भी समझना जरूरी है कि यह बिल अगर इस सत्र में पारित हो भी जाता है तो इसका निर्भया केस पर कोई असर नहीं पड़ेगा।"
विपक्ष के हंगामे के कारण अटका बिल
उधर सरकार का कहना है कि बिल पर चर्चा के लिए 8, 10 और 11 दिसंबर की तारीख तय की गई थी, लेकिन विपक्ष के हंगामे की वजह से चर्चा नहीं हो पाई। टेलिकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, "सरकार की ओर से हमने बताया है कि निर्भया के बिल को लेकर संज्ञान है पर विपक्ष के विरोध की वजह से बिल पास नहीं हो पा रहा है। पिछले तीन दिन से यह बिल संसद में लाया जाने वाला था। विपक्ष हमें सहायता करे और जुवेनाइल जस्टिस बिल पास करने में सहयोग करे।"
मंगलवार को सर्वदलीय बैठक में होगी चर्चा
सरकार का अब कहना है कि सर्वदलीय बैठक में मंगलवार को बिल पर चर्चा की सहमति बनी है और कांग्रेस भी मसले पर साथ है। उधर सीपीएम बिल के विरोध में नहीं लेकिन उसने यह साफ किया है कि नए कानून से निर्भया केस का फैसला अछूता रहेगा। सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा, "हिंदुस्तान में जब भी कोई कानून लागू होता है तो उसी दिन से लागू होता है। पिछले केस पर उसका असर नहीं होता। इस विशेष केस में मौजूदा कानून के तहत ही कानूनी कार्रवाई होनी थी। अगर कानून बनता भी तो भी इस केस में लागू नहीं होता।"
कानून को लेकर सांसदों में मत भिन्नता
जुवेनाइल जस्टिस कानून में जघन्य अपराध करने वाले बालिगों की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने के सवाल पर सांसदों की राय बंटी हुई है। कुछ सांसद यह मानते हैं कि निर्भया कांड के बाज देश में जो आक्रोश है उसको देखते हुए इस पर संसद में आगे बढ़ना जरूरी है जबकि दूसरी तरफ कुछ सांसद मानते हैं कि किसी एक घटना के आधार पर कानून में इतना अहम फैसला करने से पहले संसद में विस्तार से चर्चा होनी चाहिए। फिलहाल चर्चा यह भी है कि विपक्ष इस बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी को सौंपने की मांग कर सकता है, हालांकि सरकार की कोशिश जुवेनाइल जस्टिस बिल को इसी सत्र में पास कराने की है।
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