न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम व्यवस्था को बदलने संबंधी ऐतिहासिक विधेयक को लोकसभा ने आज अपनी मंजूरी दे दी। सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि उसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सिर्फ मेधावी लोग ही उच्च अदालतों में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हों।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 को एक सरकारी संशोधन के साथ ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इसके साथ ही सदन ने 99वें संविधान संशोधन विधेयक को शून्य के मुकाबले 367 मतों से मंजूरी दे दी गयी जो प्रस्तावित आयोग को संवैधानिक दर्जा देगा।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 के साथ संविधान के 99वें संशोधन विधेयक पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि प्रस्तावित विधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव नहीं डालता।
उन्होंने कहा कि नया कानून उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए व्यापक विचार विमर्श का अवसर प्रदान करेगा।
उन आशंकाओं को गलत बताते हुए कि नया कानून न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करेगा, कानून मंत्री ने कहा, हम न्यायपालिका की पवित्रता को बनाए रखने के पक्षधर हैं। हमने कहा है कि यह सदन न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करता है। सभी दलों के समर्थन की अपील करते हुए प्रसाद ने कहा, यह संदेश जाना चाहिए कि यह सदन न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने के लिए एक है। जजों द्वारा जजों की नियुक्ति किए जाने की मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था में खामियां होने को रेखांकित करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि कई अच्छे जज उच्चतम न्यायालय तक नहीं पहुंच सके।
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