झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की हर कोशिश नाकाम साबित हुई है. बीजेपी की इस हार में राष्ट्रीय नेतृत्व से लेकर राज्य के नेता तक शामिल हैं. चुनाव आयोग ने सोमवार रात तक सभी 81 सीटों के परिणाम घोषित कर दिये हैं और राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में बने झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 47 सीटें जीत कर स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया है. बीजेपी को सिर्फ 25 सीटें प्राप्त हुईं. बीजेपी की सरकार में सहयोगी रही आजसू को भी गठबंधन तोड़ने का जबर्दस्त खामियाजा भुगतना पड़ा और उसे सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि उसने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था. आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो सिल्ली से और गोमिया से लंबोदर महतो ही पार्टी की ओर से विधानसभा पहुंच सके. बीजेपी को पिछले बार के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा है.
BJP की हार के 10 कारण
- हार का सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री रघुबर दास का अति आत्मविश्वास है. झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में बीजेपी ने बड़ा रिस्क उठाते हुए गैर आदिवासी रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया. रघुबर दास को यह विश्वास हो गया कि उनके हाथ से नहीं जाने वाली क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का आशीर्वाद और समर्थन हासिल है.
- रघुबर दास की छवि एक ऐसे नेता के रूप में बन गई थी जो अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं से ढंग से बात भी नहीं करते थे बल्कि अधिकारियों को भी बैठक में हड़काते रहते थे. जिसका ख़ामियाज़ा विधानसभा चुनाव में पार्टी को उठाना पड़ा. रघुबर दास ने अमित खरे और संजय कुमार जैसे अधिकारियों को झारखंड से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया. क्योंकि ये ऐसे अधिकारी थे जो उन्हें सही और ग़लत का अंतर समझाते थे.
- रघुबर दास की छवि कुछ अधिकारियों और अपने परिवार के कारण भी विवादों में रही कई रिटायर्ड IAS अधिकारी उनकी सरकार और परिवार पर हावी जाते थे.
- सहयोगी दल के साथ मनमाना बर्ताव भी रघुबर दास और बीजेपी की झारखंड में नैया डुबोने में वजह साबित हुई. आजसू का जाना बीजेपी के लिए आत्मघाती साबित हुआ.
- बीजेपी के हार का सबसे बड़ा कारण आदिवासी वोटर की नाराजगी रही. सरकर में रहते हुए आदिवासी नेताओं जैसे अर्जुन मुंडा, कारिया मुंडा को पार्टी में अलग-थलग किया गया. उन्हें प्रचार में अहमियत नहीं दी गयी उससे एक ग़लत संदेश गया कि बीजेपी आदिवासियों की परवाह नहीं करती.
- आर्थिक मंदी के चलते झारखंड के हर गांव- शहर में लोग इससे काफ़ी परेशान दिखे. ख़ासकर बीजेपी का परंपरागत वोट, जो इस मंदी की चपेट में आए हैं. वो अपनी पार्टी के लिए उत्साहित नहीं दिख रहे थे और चुनाव परिणाम भी साबित किया कि आख़िर 'रोटी की बात राम' पर भारी पड़ी.
- बीजेपी ने भ्रष्टाचार के आरोपियों को पार्टी में शामिल कर इस मुद्दे को सामने पूरी तरह से घुटने टेक दिए. उनके पास से एक बड़ा मुद्दा चला गया और सरयू राय को टिकट से बेदख़ल का उन्होंने यह मुद्दा तो बैठे बिठाए विपक्ष को दे दिया और विपक्ष की हर सभा में इस बात का ज़िक्र होता था कि घोटाले को उजागर करने वाले को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और रघुबर दास ने मिलकर बेदख़ल कर दिया.
- बीजेपी की हार के कारण विपक्ष का एकजुट रहना, सीटों पर तालमेल और स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ना भी रहा. जहां बीजेपी के नेता राम मंदिर, नए नागरिक क़ानून जैसे मुद्दों को उछालते रहे वहीं हेमंत सोरेन या राहुल गांधी स्थानीय मुद्दों पर जोर देते रहे.
- बीजेपी का दूसरे पार्टी के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराकर जैसे टिकट दिया गया उसका एक ग़लत मैसेज गया और साथ ही साथ पार्टी के सिटिंग विधायकों के टिकट काटे गए और जो बागी बनकर चुनाव मैदान में उतर गए जिससे बीजेपी को कई सीटों पर नुक़सान उठाना पड़ा.
- झारखंड में हेमंत सोरेन लोगों के बीच रघुबर दास के मुक़ाबले ज़्यादा लोकप्रिय रहे. बीजेपी का पार्टी और सरकार में प्रचार-प्रसार पर बेतहाशा ख़र्च किसी काम का नहीं दिखा. जनता में इस बात की चर्चा रही कि सरकार काम कम प्रचार ज्यादा करती है.