केंद्र की कोयला ब्लॉकों की वर्चुअल नीलामी (Coal Block Auctioning) की परियोजना के खिलाफ झारखंड सरकार (Jharkhand Government) की याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि झारखंड में 9 खानों की नीलामी के संबंध में कोई भी नीलामी, लाइसेंस, पट्टा आदि अदालत के अंतिम आदेशों के अधीन होगा. इसपर केंद्र ने अदालत को आश्वासन दिया है कि इस बीच कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा और खनन नहीं होगा. बता दें कि बुधवार को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वो देशभर के लिए आदेश जारी करने पर विचार करेगा कि अगर कोई खदान इको सेंसेटिव जोन के 50 किमी के दायरे में आती है तो खनन की इजाजत नहीं होगी.
सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबडे ने कहा था कि 'हम देश के विकास को रोकना नहीं चाहते हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि किसी भी तरह प्राकृतिक संपदा का क्षय हो. जंगल को देखने का पूरा तरीका गलत है. केंद्र सरकार ने जंगल पर नहीं लकड़ी पर आर्थिक मूल्य डाला. हम नहीं चाहते कि खनन के कारण वन नष्ट हों.
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झारखंड में कोयला खदानों की नीलामी के खिलाफ झारखंड की याचिका पर सुनवाई के दौरान SC ने कहा कि वह यह जांचने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल नियुक्त करना चाहता है कि क्या झारखंड में खदानों की नीलामी इको जोन के अंतर्गत हो रही है. SC ने कहा कि वह नीलामी पर रोक लगा सकता है जब तक कि विशेषज्ञ पैनल अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत नहीं कर देता. हालांकि केंद्र की ओर ये AG ने इसका विरोध किया था. उन्होंने नीलामी पर रोक का विरोध करते हुए कहा कि यह पहले से ही चल रही है और आर्थिक क्षेत्र से खदानें 20 किलोमीटर से अधिक दूर हैं.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 18 जून कोशुरू की गई 41 कोयला खदानों में से झारखंड में 9 को नीलामी करने के फैसले को झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. झारखंड सरकार का कहना है कि यह जंगलों और आदिवासी संस्कृति और रीति-रिवाजों को नष्ट कर देगा. उसने कहा है कि खोयला खनन का झारखंड और उसके निवासियों की विशाल ट्राइबल आबादी और वन भूमि पर सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव के निष्पक्ष मूल्यांकन की आवश्यकता है. केंद्र के नीलामी के फैसले से इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है.
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