नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) के खिलाफ 15 दिसंबर को जामिया नगर में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर हुई पुलिस की बर्बरता पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया. दिल्ली हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस डीएन पटेल की बेंच ने गुरुवार को सुनवाई की. हाईकोर्ट ने 4 फरवरी तक हाईकोर्ट ने जवाब मांगा है. फिलहाल कोई अंतरिम आदेश नहीं है. याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि सीसीटीवी व अन्य फुटेज से साफ है कि दिल्ली पुलिस ने जामिया परिसर में घुसकर लाइब्रेरी व अन्य जगहों पर छात्रों के साथ हिंसा की. पुलिस बिना अनुमति के कैंपस में घुसी. इस मामले की सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर जज से जांच होनी चाहिए. पुलिस द्वारा छात्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाई जानी चाहिए.
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याचिकाकर्ता ने कहा कि एम्स की रिपोर्ट के मुताबिक एक छात्र की आंख चली गई है. इसकी वजह लाठीचार्ज है. याचिकाकर्ता ने कहा कि जामिया यूनिवर्सटी में पुलिस जबरदस्ती घुसी और लाइब्रेरी एरिया में लाठीचार्ज और फायरिंग की साथ ही आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल किया. इनकी संख्या 450 थी. 2012 के बाद सबसे भारी मात्रा में टियर गैस का इस्तेमाल किया गया.
वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में एसआईटी जांच होनी चाहिए. पुलिस की कैंपस में एंट्री रोकी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा कि पुलिस बताए कि ऐसी कौन सी आपातकाल की स्थिति आ गई थी पुलिस को ये कार्रवाई करनी पड़ी. जामिया के प्रॉक्टर ने कभी पुलिस को कैंपस में घुसने की इजाजत नहीं दी. पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं, स्वतंत्र जांच होनी चाहिए.
याचिकाकर्ता की तरफ से संजय हेगड़े ने कहा कि इस मामले में स्वतंत्र जांच की जरूरत है. इस मामले में एक जांच कमिटी के गठन किया जाना चाहिए. पुलिस ये बताए कि क्या उनको मस्जिद, लाइब्रेरी और टॉयलेट में घुसने के लिए किसी ने कहा था. किस स्थिति में ये परिस्थितियां पैदा हुई. अभी भी वहां की स्थिति सामान्य नहीं है. छात्र डरे हुए हैं. याचिकाकर्ता की तरफ से इंद्रा जय सिंह ने कहा कि हिंसा की किसी को इजाजत नहीं दी जा सकती, लेकिन लोकतंत्र में अपनी बात को रखना भी संवैधानिक अधिकार है.
पूरा मामला जांच का विषय है. सुप्रीम कोर्ट के रूलिंग के मुताबिक वस्तुस्थिति पता चलनी चाहिए. इसमें स्वतंत्र रूप से जांच कराई जाए. याचिकाकर्ता ने कहा, पुलिस को यूनिवर्सिटी को जानकारी देनी चाहिए थी अगर वह कोई कार्रवाई करने जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया.
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इंदिरा जयसिंह ने कहा, सिविल सोसाइटी के दबाव की वजह से पुलिस ने हिरासत में लिए गए छात्रों को छोड़ा. केवल यही नहीं पुलिस के द्वारा इस्तेमाल किया गए शब्द भी ऐसे थे कि हम बता नहीं सकते. क्या लॉ एंड आर्डर के नाम पर पुलिस इस तरह की बर्ताव करेगी. इंदिरा जयसिंह ने यह भी कहा कि कोर्ट के सामने 17, 18, 20, 21 साल के छात्र हैं. इन लोगों की बात कोर्ट सुने.
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