जबलपुर मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी के कुलपति का इस्तीफा, मार्कशीट घोटाला सामने आने के बाद छोड़ा पद 

एनडीटीवी ने शुक्रवार को विश्वविद्यालय में नतीजों में हुए कथित गड़बड़ी का खुलासा किया था. आरोप है कि यूनिवर्सिटी में उन छात्रों को भी पास कर दिया गया, जिन्होंने कभी परीक्षा ही नहीं दी.

जबलपुर मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी के कुलपति का इस्तीफा, मार्कशीट घोटाला सामने आने के बाद छोड़ा पद 

Jabalpur Medical University Scam : मार्कशीट में पाई गईं गड़बड़ियां

भोपाल:

मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस विश्वविद्यालय जबलपुर (Jabalpur Medical Science University ) के कुलपति टी एन दुबे ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने राज्यपाल को इस्तीफा सौंपा. एनडीटीवी ने शुक्रवार को विश्वविद्यालय में नतीजों में हुए कथित गड़बड़ी का खुलासा किया था. चिकित्सा शिक्षा मंत्री भी इन अनियमितताओं से नाराज़ थे.दरअसल, जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी में मार्कशीट घोटाले के आरोप सामने आए हैं. आरोप है कि यूनिवर्सिटी में उन छात्रों को भी पास कर दिया गया, जिन्होंने कभी परीक्षा ही नहीं दी.

शिवराज सिंह चौहान की सरकार का कहना है कि उसने ही मामले को पकड़ा और जांच के आदेश दिए. एमपी सरकार ने ऐलान किया था कि जांच में दोषी पाए जाने पर किसी भी शख्स को बख्शा नहीं जाएगा. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. उम्मीद है कि उन्हें अदालत से न्याय मिलेगा.

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय से 300 कॉलेज संबद्ध हैं. इस यूनिवर्सिटी से संबंद्ध कॉलेजों में लगभग 80,000 छात्र शिक्षारत हैं. विश्वविद्यालय राज्य के सारे मेडिकल, डेंटल, नर्सिंग, पैरामेडिकल, आर्युवेद, होमियोपैथी, यूनानी, योगा कॉलेजों का प्रशासकीय संस्था है. जो अब फर्जी मार्कशीट घोटाले के आरोपों में घिर गई है. हाईकोर्ट में पेश जांच रिपोर्ट के मुताबिक प्रश्न पत्र बनाने से लेकर उत्तर पुस्तिका जांचने, दोबारा मूल्यांकन से लेकर मार्कशीट जारी करने में गंभीर अनियमितता हुई है. नंबरों में हेरफेर कर मार्कशीट जारी की गई, बल्कि कई ऐसे छात्रों को पास कर दिया गया जो परीक्षा में बैठे ही नहीं.

आरटीआई एक्टिविस्ट अखिलेश त्रिपाठी ने इस गड़बड़झाले का खुलासा किया है. अखिलेश के मुताबिक, जांच कमेटी ने पाया है कि छात्रों को पास फेल करके पैसा कमाया गया है. यहां के लोग भ्रष्ट तंत्र में डूबे हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मामला सामने आने के बाद भी रिजल्ट बनाने वाली कंपनी पर एफआईआर नहीं हुई, सिर्फ उसका कांट्रैक्ट निरस्त हुआ. कंपनी ने यूनिवर्सिटी को डेटा तक नहीं दिया. कंपनी ने कहा कि बेंगलुरू में उनका कार्यालय लॉकडाउन में बंद है, फिर टर्मिनेशन के खिलाफ कंपनी हाईकोर्ट चली गई, यूनिवर्सिटी अब जवाब पेश नहीं कर रही है.

यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉ प्रभात बुधौलिया ने कहा कि कंपनी कोर्ट में चली गई है. हमने वकील नियुक्त कर दिया है, अब  कोर्ट फैसला करेगा. जांच के लिये पूर्व कुलसचिव डॉक्टर जेके गुप्ता की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी. इसमें खुलासा हुआ कि यूनिवर्सिटी में परीक्षा कार्य इंटरफेस निर्धारित नहीं है. ईमेल से सारा काम होने से डेटाबेस में फेरबदल हुआ. सॉफ्टवेयर में आईपी एड्रेस के बजाए मेक एड्रेस है जो सुरक्षा के हिसाब से उचित नहीं है. मार्कशीट में उपकुलसचिव के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं, लेकिन टीआर शीट से मिलान वर्जित किया गया जो आपत्तिजनक है.

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यूनिवर्सिटी के गोपनीय कक्ष में कंपनी का सर्वर है, लेकिन डेटाबेस मांगने पर भी दिया नहीं गया. मार्कशीट का डेटा ईमेल के जरिये पीडीएफ और एक्सेल में कट-पेस्ट कर बनाया गया. इससे डेटा परिवर्तन और गलत होने की आशंका है. नतीजे घोषित होने से पहले इसे विश्वविद्यालय के कर्मचारी को मेल आईडी पर भेजा गया. परीक्षा नियंत्रक ने छुट्टी पर रहते अंक भेजे. इसे कंपनी ने मार्कशीट में दर्ज किया. डेटा की सॉफ्टकॉपी यूनिवर्सिटी में जमा करवाने की शर्त का भी उल्लंघन हुआ.