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This Article is From Jun 17, 2018

ITBP के हिमवीरों ने पेश की मिसाल, 30Km तक कंधे पर उठा लाए ट्रैकर का पार्थिव शरीर

आईटीबीपी के हिमवीरों ने 30 किलोमीटर लम्बा रास्ता और 17500 फीट की उंचाई से हर्षद आप्टे के पार्थिव शरीर को काफी मशक्कत के बाद नीचे ले आए.

ITBP के हिमवीरों ने पेश की मिसाल, 30Km तक कंधे पर उठा लाए ट्रैकर का पार्थिव शरीर
ट्रैकर का शव कंधे पर उठाए आईटीबीपी के जवान
नई दिल्ली: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हर की दून से हिमाचल प्रदेश के चितकुल के ट्रेकिंग (पर्वतीय इलाके में पैदल सफर) के दौरान फंसे एक ट्रेकिंग दल को बचा लिया गया, लेकिन उसके सदस्य की मौत हो गयी. बाकी सदस्यों को कल्पा के आधार शिविर ले आया गया. आईटीबीपी के जवानों ने मिसाल पेश करते हुए एक ट्रैकर हर्षद आप्टे के शव को भी आज काफी मशक्कत के बाद शिविर पहुंचा दिया. अधिकारियों ने बताया कि ट्रेकिंग दल में मैक्सिको के दो नागरिक शामिल थे. पुरोला के उपसंभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) पुरन सिंह राणा ने कहा कि महाराष्ट्र के रहने वाले हर्षद आप्टे (33) हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के चितकुल जाने के दौरान बीमार पड़ गया, जिसके कारण पूरी टीम बुरोसू दर्रे के पास फंस गयी. 

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हर्षद आप्टे की मृत्यु होने के बाद ट्रेकरों का दल न सिर्फ हताश हो गया, बल्कि उन्हें यह भी लगने लगा कि उनमें से कुछ और लोगों की भी जान मुसीबत में पड़ चुकी है. मौसम इम्तिहान ले रहा था और 12 ट्रेकर और 10 पोर्टर उम्मीद खोने लगे थे. ये बरसु ला पास था, जहां से मदद उत्तराखंड और हिमाचल दोनों तरफ से लगभग 30 किलोमीटर से बराबर की दूरी पर थी.  मौसम बहुत ख़राब होने लगा था और ठंढ से स्थितियां और बिगड़ने लगी थीं 3 पोर्टरों ने किसी तरह हिमाचल में आईटीबीपी की एक चौकी पर आकर मदद मांगी. बिना देर किये 50वीं वाहिनी के लगभग 60 जवान बरसू ला की तरफ निकल पड़े और देर शाम तक वहां पहुंच गए. अगले दिन से बचाव कार्य प्रारंभ किया गया. लगभग 72 घंटों की जद्दोजहद के बाद बरसू ला पर लगभग 6 फीट बर्फ के बीच पड़े हर्षद के शव को ढूंढ निकला गया और कंधे पर लेकर हिमवीर नीचे की और चल पड़े. 

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इस बीच अन्य ट्रेकरों को अगली शाम तक आईटीबीपी के कैंप तक पहुंचा दिया गया. हर्षद को कंधे पर लेकर मुश्किल पहाड़ी ढलानों और चढ़ाइयों पर आईटीबीपी के जवान लगातार 30 किलोमीटर तक चलते रहे और अंततः सड़क मार्ग तक ला पाने में सफल हुए. उच्च हिमालयी परिस्थितियों में बर्फ़बारी के बीच इस प्रकार का अभियान न सिर्फ दुर्गम है, बल्कि दुर्लभ भी है जबकि कम से कम समय में किसी पार्थिव शरीर को इस दूरी तक इस प्रकार लाया गया हो.

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