संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पर मुस्लिम महिलाओं के आंदोलन के जवाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अब तक की सबसे बड़ी मुहिम शुरू कर दी है. उनके कार्यकर्ता गांव-गांव जा कर बता रहे हैं कि पाकिस्तान में जिन हिंदुओं को सताया गया उनमें 75 फीसदी दलित और पिछड़े हैं. वे भाग कर भारत आए तो मुसलमान और विरोधी दल उन्हें नागरिकता नहीं देने दे रहे. इस तरह आरएसएस दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर लखनऊ के घंटाघर तक चल रहे आंदोलन का अपने पक्ष में पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ रहा है.
यूपी के बाराबंकी ज़िले के एक गांव में संघ की टीम हमें गांव वालों के साथ पंचायत करती मिली. टीम के नेता राम बाबू द्विवेदी गांव वालों से कह रहे थे कि जब भारत-पाकिस्तान हुआ तो पाकिस्तानियों ने दलितों,पिछड़ों आने दिया क्योंकि वे चाहते थे कि घरों की गंदगी कौन साफ़ करेगा और मज़दूरी कौन करेगा. बाद में उन्हें बहुत सताए जाने पर वे भाग कर भारत आ गए. अब मोदी जी उन्हें सम्मानजनक जीवन देने के लिए नागरिकता देना चाहते हैं, लेकिन मुसलमान अपनी महिलाओं से इसका विरोध करा रहे हैं. अब अगर सरकार सताए लोगों को नागरिकता दे रही है तो क्या दिक्कत है?
रामबाबू द्विवेदी की बातों का गांव वालों पर काफी असर दिखता है. रामबाबू द्विवेदी की टोली गांव के बाजार में इसके समर्थन में छपवाए गए पर्चे बांट रही है. इसमें नागरिकता संशोधन क़ानून के बारे में जानकारी है. साथ ही यह भी बताया गया है कि बंटवारे के बाद गांधी जी ने भी पाकिस्तान में सताए गए हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने का भरोसा दिलाया था. यही नहीं पर्चे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी बयान छपा है, जिसमें वह सताए हुए हिंदुओं को नागरिकता देने की बात कर रहे हैं.
सरकार ने इस मुद्दे पर पूर्व डीजीपी और मौजूदा अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल को इस मुद्दे पर आगे कर दिया है. बृजलाल लगातार बयान जारी कर कर रहे हैं कि पाकिस्तान से आने वाले दलितों की नागरिकता का विरोध करने वाले अखिलेश यादव, मायावती, प्रियंका और ममता बनर्जी दलितों की दुश्मन हैं.
यह सच है कि शाहीन बाग से लेकर घंटाघर तक प्रदर्शन में ज़्यादातर मुस्लिम महिलाएं हैं. जिनमें ज़्यादातर बुर्कापोश हैं और उसके बाद कुछ महिलाएं स्कार्फ पहनने वाली. यह मुस्लिम स्टीरियोटाइप बीजेपी और संघ को ध्रुवीकरण करने में मददगार साबित हो रहा है. इसलिए बीजेपी उसे दिल्ली में चुनावी मुद्दा बना रही है. पिछले रविवार को गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में बाबरपुर की एक चुनावी सभा में कहा "मित्रों बटन दबाओ तो इतने गुस्से के साथ दबाना कि बटन यहां बाबरपुर में दबे लेकिन करंट उसका शाहीनबाग में लगे."
यूपी के सी एम योगी आदित्यनाथ ने आगरा में एक रैली में कहा कि ,"पीएफआई और सिमी के इशारे पर जिन लोगों ने दंगा किया वे अपनी जायदाद ज़ब्त होने के भय से दुम दबा कर घरों में घुस गए हैं और अपनी महिलाओं को आगे कर रहे हैं."
ज़ाहिर सी बात है कि बीजेपी और संघ महिलाओं के इस आंदोलन का अपने हक में नैरेटिव गढ़ रहे हैं. हिंदू वोट की गोलबंदी में इससे बीजेपी को मदद मिलती नजर आ रही है.
आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता दीपक कबीर कहते हैं, ''हालांकि बुर्कापोश महिलाएं बड़े पैमाने पर तिरंगे लहरा रही हैं. उन्होंने शाहीन बाग से लेकर लखनऊ घंटाघर तक गणतंत्र दिवस भी बहुत जोर-शोर से मनाया. धरना स्थ पर हिंदू भाईयों ने हवन और सिख भाईयों ने अर्दास भी की लेकिन ये सच है कि चूंकि बुर्के ज्यादा नजर आते हैं तो उसकी कई बार प्रतिक्रिया होती है. अगर इनमें और ज्यादा हिंदू महिलाएं शामिल हों तो ये मुस्लिम स्टीरियोटाइप बदला जा सकता है. हम लोग उसके लिए कोशिश कर रहे हैं. ''
कमाल खान एनडीटीवी इंडिया के रेजिडेंट एडिटर हैं.
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