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This Article is From Jul 19, 2015

सुषमा स्वराज पर सॉफ्ट हुई कांग्रेस?

सुषमा स्वराज पर सॉफ्ट हुई कांग्रेस?
संसद भवन का फाइल फोटो
नई दिल्ली: मंगलवार से संसद का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है और इससे दो दिन पहले कांग्रेस ने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है। कांग्रेस महासचिव ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि संसद चलाना विपक्षी पार्टियों की ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि ये सरकार की ज़िम्मेदारी है।

सरकार अगर चाहती है कि सत्र सुचारू रूप से चले, तो सरकार के पास 24 से 48 घंटे हैं, लेकिन इस बीच कांग्रेस ने सुषमा स्वराज को लेकर नरमी के संकेत भी दिए हैं।

संसद में कांग्रेस भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को सीधे निशाने पर नहीं लेगी और न ही उनको बॉयकॉट करने जैसी किसी रणनीति पर चलेगी।

राज्य सभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस के महासचिव ग़ुलाम नबी आज़ाद ने सुषमा को संसद में घेरने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में बिना किसी का नाम लिए कहा कि ये किसी व्यक्ति विशेष का मामला नहीं है। पार्टी इस मामले में घिरे किसी एक केन्द्रीय मंत्री, सांसद, मुख्यमंत्री या विधायक को नहीं घेरेगी बल्कि इस पूरे मुद्दे को ज़ोरशोर से उठाएगी।

थोड़ी देर बाद पूछे गए एक दूसरे सवाल के जवाब में आज़ाद ने ललितगेट में घिरे वसुंधरा राजे और व्यापमं में घिरे शिवराज सिंह चौहान का नाम लेकर इस्तीफ़े की मांग की। इससे साफ है कि सुषमा स्वराज को लेकर कांग्रेस का रुख नरम हुआ है।

ललितगेट के खुलासे के शुरुआती दिनों में कांग्रेस सुषमा को लेकर बहुत हमलावर थी। हर प्रेस काफ्रेंस में वो वसुंधरा राजे के साथ-साथ सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग भी करती थी। बाद में वो पूरी तरह से वसुंधरा को घेरने में जुट गई।

अब जब कि संसद का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है, मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस के लिए एक तरीक़ा ये भी था कि विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज का बॉयकॉट किया जाए। जब भी वो बोलने को उठें या विदेश मंत्रालय से जुड़े किसी सवाल का जवाब देने को हों, कांग्रेस सदन से उठ कर चली जाए या उनको सुनने को तैयार न हो। लेकिन कांग्रेस की तरफ से मिल रहे संकेतों के मुताबिक़, वो ऐसा नहीं करने जा रही।

कांग्रेस के रुख में आए बदलाव के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि कांग्रेस के साथ खड़ी रही कई विपक्षी पार्टियों का रुख सुषमा को लेकर नरम है। इसमें आरजेडी-जेडीयू भी शामिल है, जिसके साथ वो बिहार में मिल कर चुनाव लड़ने जा रही है।

इसके अलावा समाजवादी पार्टी भी सीधे सुषमा पर इस्तीफ़े के लिए दबाव बनाने के पक्ष में नहीं है। सुषमा को बीजेपी के भीतर मोदी विरोधी खेमे का माना जाता है। ऐसे में आकलन ये है कि सुषमा अगर विपक्षी हमले की शिकार होती हैं, तो मोदी को और खुला मैदान मिलेगा। जबकि मोदी अपने ऊपर दबाव महसूस कर सुषमा से इस्तीफे के लिए कहते हैं या उन्हें विदेश मंत्रालय के पद से हटाते हैं तो इससे उनकी आपसी रंजिश को हवा मिलेगी। लेकिन रणनीति सुषमा को बनाए रख कर मोदी को घेरने की है।

मोदी की कप्तानी पर सवाल उठाने की है। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे मनमोहन सिंह को ईमानदारी का सर्टिफिकेट देने के बावजूद विपक्षी पार्टी के तौर पर बीजेपी 2जी जैसे मुद्दों पर इसलिए घेरती रही कि वे सरकार के मुखिया हैं और अंतिम ज़िम्मेदारी उनकी बनती है।

सोमवार को सर्वदलीय बैठक होने वाली है। कांग्रेस इस बैठक में तमाम छोटी बड़ी विपक्षी पार्टियों के रवयै को पढ़ने की कोशिश करेगी। उसके बाद उसी हिसाब से संसद में अपनी रणनीति तय करेगी।

शुरुआती दिनों में तो ज़ोरदार हंगामा होने की पूरी संभावना है, लेकिन किस मुद्दे को कितना तूल दें और किस हद तक जाएं कांग्रेस इस मामले में अफलातून बन कर एकला चलो की नीति नहीं अपनाना चाहती। ये ज़रूर है कि मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर मोदी सरकार और बीजेपी से सबसे मज़बूती से लोहा लेते हुए दिखना चाहेगी।

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