प्रतीकात्मक तस्वीर
चंडीगढ़:
पंजाब में गरीबों के नाम पर अनाज ऐसे लोगों के खाते में दिखाया जा रहा है, जो या तो मर चुके हैं या फिर उनका वजूद ही नहीं है। एनडीटीवी ने संगरूर के गांव बीर कलां में पड़ताल की तो सार्वजानिक वितरण प्रणाली में चौंकाने वाली खामियां सामने आईं। विपक्षी दल गरीबों को सब्सिडी के नाम पर इस बन्दर बांट की सीबीआई जांच की मांग कर रहा हैं।
दिहाड़ी मजदूर चमकौर सिंह का परिवार जला हुआ गेहूं खाने पर मजबूर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राशन कार्ड होने के बावजूद पिछले 6 साल से इन्हें इनके हिस्से का अनाज नहीं मिला है। घर के बच्चों को ऐसे गेहूं की दलीया बिल्कुल पसंद नहीं आ रही है।
परिवार की सदस्य रानो कौर बताती हैं कि घर में छोटे छोटे बच्चे हैं। इनका पेट तो भरना है ना, मजबूरी में खाना पड़ता है। 6 लोगों पर एक कमाने वाला, डीपो वाला कहता है कि हमारा अनाज नहीं आया, कोई सुनवाई नहीं है।
संगरूर के बीर कलां गांव में सार्वजानिक वितरण प्रणाली में घोर अनियमितताएं दिखीं। खाद्य एवं नागरिक वितरण महकमे की वेबसाइट पर जिन लोगों को लाभार्थी दर्शाया गया है उनमें से कम से कम 75 फ़र्ज़ी हैं। 16 नाम तो ऐसे लोगों के हैं जो मर चुके हैं। छह साल पहले मर चुके भोला सिंह का परिवार भी ठगा गया है। भोला सिंह के पड़ोसी ने हमें बताया, 'इनके पति छह साल पहले मर चुके हैं। लिस्ट के मुताबिक इनके 5 लोगों के नाम पर राशन आ रहा है लेकिन इन्हें नहीं मिलता।'
बलदेव सिंह का दिमागी संतुलन ठीक नहीं, रोटी गांव के गुरुद्वारे से मिलती है। लेकिन इनके नाम पर पांच राशन कार्ड चल रहे हैं।
पीडीएस के तहत बादल सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार के हर सदस्य को एक महीने में 5 किलो अनाज देती है। इस सब्सिडी पर सरकार सालाना 400 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
आम आदमी पार्टी नेता अमन अरोड़ा कहते हैं, 'इस धांधली में डीपो होल्डर से लेकर ऊपर तक के लोग शामिल हैं। सरकार की शह के बिना ये काम नहीं हो सकता, हम इसकी सीबीआई जांच की मांग करते हैं।'
महकमे के मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों ने विपक्ष के आरोपों पर एनडीटीवी से कहा कि अभी हम सभी राशन कार्ड को आधार से जोड़ रहे हैं ताकि अनाज बांटने में किसी भी गड़बड़ी को रोका जा सके।
दिहाड़ी मजदूर चमकौर सिंह का परिवार जला हुआ गेहूं खाने पर मजबूर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राशन कार्ड होने के बावजूद पिछले 6 साल से इन्हें इनके हिस्से का अनाज नहीं मिला है। घर के बच्चों को ऐसे गेहूं की दलीया बिल्कुल पसंद नहीं आ रही है।
परिवार की सदस्य रानो कौर बताती हैं कि घर में छोटे छोटे बच्चे हैं। इनका पेट तो भरना है ना, मजबूरी में खाना पड़ता है। 6 लोगों पर एक कमाने वाला, डीपो वाला कहता है कि हमारा अनाज नहीं आया, कोई सुनवाई नहीं है।
संगरूर के बीर कलां गांव में सार्वजानिक वितरण प्रणाली में घोर अनियमितताएं दिखीं। खाद्य एवं नागरिक वितरण महकमे की वेबसाइट पर जिन लोगों को लाभार्थी दर्शाया गया है उनमें से कम से कम 75 फ़र्ज़ी हैं। 16 नाम तो ऐसे लोगों के हैं जो मर चुके हैं। छह साल पहले मर चुके भोला सिंह का परिवार भी ठगा गया है। भोला सिंह के पड़ोसी ने हमें बताया, 'इनके पति छह साल पहले मर चुके हैं। लिस्ट के मुताबिक इनके 5 लोगों के नाम पर राशन आ रहा है लेकिन इन्हें नहीं मिलता।'
बलदेव सिंह का दिमागी संतुलन ठीक नहीं, रोटी गांव के गुरुद्वारे से मिलती है। लेकिन इनके नाम पर पांच राशन कार्ड चल रहे हैं।
पीडीएस के तहत बादल सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार के हर सदस्य को एक महीने में 5 किलो अनाज देती है। इस सब्सिडी पर सरकार सालाना 400 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
आम आदमी पार्टी नेता अमन अरोड़ा कहते हैं, 'इस धांधली में डीपो होल्डर से लेकर ऊपर तक के लोग शामिल हैं। सरकार की शह के बिना ये काम नहीं हो सकता, हम इसकी सीबीआई जांच की मांग करते हैं।'
महकमे के मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों ने विपक्ष के आरोपों पर एनडीटीवी से कहा कि अभी हम सभी राशन कार्ड को आधार से जोड़ रहे हैं ताकि अनाज बांटने में किसी भी गड़बड़ी को रोका जा सके।
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