नई दिल्ली:
यमन में जारी गोलाबारी के बीच हजारों लोगों की जान बचाकर नौसेना का युद्धपोत मुंबई और तरकश देश लौट आया। अब 20 अप्रैल को मुंबई में इनका धूमधाम से स्वागत होगा, जिसमें खुद नौसेना प्रमुख भी शामिल होंगें।
इस साल के शुरुआत में ही यमन में गृहयुद्ध जैसे हालात बन गए थे। सऊदी अरब की बमबारी ने हालात को और बिगाड़ दिया था, जिससे हजारों लोग बेघर और बरबाद हो गए।
यमन में करीब भारत के 4000 से ज्यादा लोग काम करते थे। इनमें से कई तो वहां दशकों से रह रहे थे। ज्यादातर भारतीय यमन की राजधानी सना में और उसके आसपास के इलाकों में रह रहे थे, जहां के हालात सबसे ज्यादा खराब थे। खराब हालात को देखते हुए सरकार ने 30 मार्च को भारतीयों को निकालने का आदेश जारी कर दिया था।
नौसेना का युद्धपोत आईएनएस सुमित्रा, जो कि उस वक्त अदन की खाड़ी में था, लोगों की मदद के लिए सबसे पहले पहुंचा। इस युद्धपोत ने अदन बंदरगाह से 31 मार्च को 349 भारतीयों के पहले जत्थे को निकाल कर उन्हें सुरक्षित जिबूती पंहुचाया।
जिबूती से भारतीयों को वायुसेना के विमान से कोच्चि और मुंबई पहुंचाया गया। इस बीच मुंबई से ही 30 मार्च को दो और युद्धपोत मुंबई और तरकश अपने साथ दो व्यापारिक जहाज को लेकर यमन के लिए रवाना हो गए। 4 अप्रैल को ये दोनों युद्धपोत यमन पहुच गए और लोगों को निकालने में लग गए।
31 मार्च से लेकर 15 अप्रैल तक 1782 भारतीयों और 30 देशों के 1291 लोगों को नौसेना के युद्धपोत ने यमन से बचाकर बाहर निकाला। बहुत कम ही ऐसे देश थे, जिन्होंने यमन में फंसे लोगों को बाहर निकालने में मदद की। अमेरिका और जर्मनी जैसे ताकतवर देशों ने भी अपने लोगों को बाहर निकालने के लिए भारत से मदद मांगी।
इस साल के शुरुआत में ही यमन में गृहयुद्ध जैसे हालात बन गए थे। सऊदी अरब की बमबारी ने हालात को और बिगाड़ दिया था, जिससे हजारों लोग बेघर और बरबाद हो गए।
यमन में करीब भारत के 4000 से ज्यादा लोग काम करते थे। इनमें से कई तो वहां दशकों से रह रहे थे। ज्यादातर भारतीय यमन की राजधानी सना में और उसके आसपास के इलाकों में रह रहे थे, जहां के हालात सबसे ज्यादा खराब थे। खराब हालात को देखते हुए सरकार ने 30 मार्च को भारतीयों को निकालने का आदेश जारी कर दिया था।
नौसेना का युद्धपोत आईएनएस सुमित्रा, जो कि उस वक्त अदन की खाड़ी में था, लोगों की मदद के लिए सबसे पहले पहुंचा। इस युद्धपोत ने अदन बंदरगाह से 31 मार्च को 349 भारतीयों के पहले जत्थे को निकाल कर उन्हें सुरक्षित जिबूती पंहुचाया।
जिबूती से भारतीयों को वायुसेना के विमान से कोच्चि और मुंबई पहुंचाया गया। इस बीच मुंबई से ही 30 मार्च को दो और युद्धपोत मुंबई और तरकश अपने साथ दो व्यापारिक जहाज को लेकर यमन के लिए रवाना हो गए। 4 अप्रैल को ये दोनों युद्धपोत यमन पहुच गए और लोगों को निकालने में लग गए।
31 मार्च से लेकर 15 अप्रैल तक 1782 भारतीयों और 30 देशों के 1291 लोगों को नौसेना के युद्धपोत ने यमन से बचाकर बाहर निकाला। बहुत कम ही ऐसे देश थे, जिन्होंने यमन में फंसे लोगों को बाहर निकालने में मदद की। अमेरिका और जर्मनी जैसे ताकतवर देशों ने भी अपने लोगों को बाहर निकालने के लिए भारत से मदद मांगी।
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