मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह के एनजीओ 'लॉयर्स कलेक्टिव' के खिलाफ कार्रवाई के तहत विदेशी चंदा विनियमन कानून (एफसीआरए) का कथित उल्लंघन को लेकर उसका लाइसेंस छह माह के लिए निलंबित कर दिया गया। हालांकि एनजीओ ने आरोप को खारिज करते हुए इसे 'प्रतिशोध' के तहत की गई कार्रवाई बताया है।
एनजीओ ने सरकार की कदम की निंदा की
गृह मंत्रालय ने लाइसेंस निलंबित करते हुए इस एनजीओ से एफसीआरए के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के सिलसिले में 30 दिनों के अंदर अपना जवाब देने को कहा। उसके बाद उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है। वहीं सभी आरोपों को खारिज करते हुए एनजीओ ने सरकार के कदम की निंदा की और कहा कि सरकार इस एनजीओ एवं इसके पदाधिकारियों इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर को परेशान कर रही है।
उसने कहा, 'यह कुछ नहीं, बल्कि एफसीआरए कानून का घोर दुरुपयोग है। यह सर्वविदित है कि ग्रोवर और जयसिंह दोनों ने सरकार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सहित इसके कई पदाधिकारियों के खिलाफ मामलों में बतौर वकील कई लोगों की पैरवी की है।... लॉयर्स कलेक्टिव इस आदेश को चुनौती देता है और असंवैधानिक करार देता है तथा इसे रद्द करने की जरूरत है।'
गृह मंत्रालय ने एनजीओ के जवाब को खारिज किया
हालांकि मंत्रालय ने एनजीओ के जवाब को खारिज करते हुए कहा कि उसके द्वारा उपलब्ध कराए गए रिकॉर्ड का विस्तार से परीक्षण किया गया और 'यह पाया गया कि वह संतोषजनक नहीं है' एवं जिन उल्लंघनों को पाया गया है, उस पर उसमें पर्याप्त सफाई नहीं दी गई है।
एनजीओ को भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि निर्णय करते समय, जहां एनजीओ द्वारा पेश बचाव, सफाई और दस्तावेजों पर गौर किया गया, वहीं हम प्रथम दृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि एसोसिएशन ने एफसीआरए के विविध प्रावधानों का उल्लंघन किया।
एनजीओ के वार्षिक रिटर्न फाइलिंग में मंत्रालय को दिखी विसंगति
'लॉयर्स कलेक्टिव' को 2006-07 और 2013-14 के बीच विदेशी चंदा मिला था। गृह मंत्रालय को एनजीओ के वार्षिक रिटर्न फाइल करने में विसंगति नजर आई। इस एनजीओ में इंदिरा जयसिंह सचिव के रूप में काम कर रही थीं। वह यूपीए सरकार में अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल भी रही थीं।
इंदिरा जयसिंह ने जुलाई, 2009 से मई, 2014 तक बतौर एएसजी काम करते हुए 96.60 लाख रुपए प्राप्त किए थे। एसोसिएशन ने 30 मार्च, 2016 के अपने जवाब में यह बात स्वीकार की है। उन्हें (इंदिरा जयसिंह को) एनजीओ ने केंद्र सरकार की इजाजत से 59 महीनों (जुलाई, 2009 से मई, 2014) के लिए 81.41 लाख रुपये दिए थे।
गृह मंत्रालय ने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि कैसे अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल जैसी एक वरिष्ठ विधि अधिकारी एक साथ ही और यह भी कि लंबी अवधि तक एक निजी निकाय के रॉल पर रह सकती हैं और कैसे उन्हें भारत सरकार के विधि अधिकारियों पर लागू नियमों के विपरीत अज्ञात उद्देश्यों के लिए (विदेशी चंदे) भुगतान किया जा सकता है। इसके अलावा कैसे एसोसिएशन (इस आशय के बिना किसी प्रस्ताव के) ऐसी व्यवस्था पर राजी हो गया और वह क्यों (उपयुक्त अनापति हासिल किए बगैर, जिसे हासिल करना एफसीआर, 2010 के तहत जरूरी है) ऐसी व्यवस्था पर राजी हो गईं।
नोटिस में कहा गया है कि यह न केवल एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि प्रासंगिक सवाल खड़े करता है। एनजीओ के खाते की जांच पर गृह मंत्रालय ने कहा कि यह पाया गया कि विदेशी अनुदान में से 13.03 लाख रुपये धरनों, मसौदा विधोयक से जुड़ी बैठकों के लिए सांसदों या मीडिया को लाने-लेजान या रुकने की व्यवस्था करने पर खर्च किया गया, हालांकि विदेशी अनुदान के तहत जो रिटर्न फाइल किया गया उसमें इसका कोई उल्लेख नहीं था।
बहरहाल, अपने जवाब में एनजीओ ने कहा कि धरना इत्यादि 2009 में हुआ, जब एफसीआरए-2010 अमल में नहीं आया था। गृह मंत्रालय ने कहा, 'इसका उल्लेख किया जा सकता है कि एसोसिएशन ने न सिर्फ 2009, बल्कि 2011 और 2014 में धरनों का आयोजन किया। विदेशी अनुदान से राजनीतिक रंग वाली रैलियों या धरनों का आयोजन करने की इजाजत एफसीआरए-1976 के तहत भी नहीं थी।'
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
एनजीओ ने सरकार की कदम की निंदा की
गृह मंत्रालय ने लाइसेंस निलंबित करते हुए इस एनजीओ से एफसीआरए के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के सिलसिले में 30 दिनों के अंदर अपना जवाब देने को कहा। उसके बाद उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है। वहीं सभी आरोपों को खारिज करते हुए एनजीओ ने सरकार के कदम की निंदा की और कहा कि सरकार इस एनजीओ एवं इसके पदाधिकारियों इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर को परेशान कर रही है।
उसने कहा, 'यह कुछ नहीं, बल्कि एफसीआरए कानून का घोर दुरुपयोग है। यह सर्वविदित है कि ग्रोवर और जयसिंह दोनों ने सरकार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सहित इसके कई पदाधिकारियों के खिलाफ मामलों में बतौर वकील कई लोगों की पैरवी की है।... लॉयर्स कलेक्टिव इस आदेश को चुनौती देता है और असंवैधानिक करार देता है तथा इसे रद्द करने की जरूरत है।'
गृह मंत्रालय ने एनजीओ के जवाब को खारिज किया
हालांकि मंत्रालय ने एनजीओ के जवाब को खारिज करते हुए कहा कि उसके द्वारा उपलब्ध कराए गए रिकॉर्ड का विस्तार से परीक्षण किया गया और 'यह पाया गया कि वह संतोषजनक नहीं है' एवं जिन उल्लंघनों को पाया गया है, उस पर उसमें पर्याप्त सफाई नहीं दी गई है।
एनजीओ को भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि निर्णय करते समय, जहां एनजीओ द्वारा पेश बचाव, सफाई और दस्तावेजों पर गौर किया गया, वहीं हम प्रथम दृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि एसोसिएशन ने एफसीआरए के विविध प्रावधानों का उल्लंघन किया।
एनजीओ के वार्षिक रिटर्न फाइलिंग में मंत्रालय को दिखी विसंगति
'लॉयर्स कलेक्टिव' को 2006-07 और 2013-14 के बीच विदेशी चंदा मिला था। गृह मंत्रालय को एनजीओ के वार्षिक रिटर्न फाइल करने में विसंगति नजर आई। इस एनजीओ में इंदिरा जयसिंह सचिव के रूप में काम कर रही थीं। वह यूपीए सरकार में अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल भी रही थीं।
इंदिरा जयसिंह ने जुलाई, 2009 से मई, 2014 तक बतौर एएसजी काम करते हुए 96.60 लाख रुपए प्राप्त किए थे। एसोसिएशन ने 30 मार्च, 2016 के अपने जवाब में यह बात स्वीकार की है। उन्हें (इंदिरा जयसिंह को) एनजीओ ने केंद्र सरकार की इजाजत से 59 महीनों (जुलाई, 2009 से मई, 2014) के लिए 81.41 लाख रुपये दिए थे।
गृह मंत्रालय ने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि कैसे अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल जैसी एक वरिष्ठ विधि अधिकारी एक साथ ही और यह भी कि लंबी अवधि तक एक निजी निकाय के रॉल पर रह सकती हैं और कैसे उन्हें भारत सरकार के विधि अधिकारियों पर लागू नियमों के विपरीत अज्ञात उद्देश्यों के लिए (विदेशी चंदे) भुगतान किया जा सकता है। इसके अलावा कैसे एसोसिएशन (इस आशय के बिना किसी प्रस्ताव के) ऐसी व्यवस्था पर राजी हो गया और वह क्यों (उपयुक्त अनापति हासिल किए बगैर, जिसे हासिल करना एफसीआर, 2010 के तहत जरूरी है) ऐसी व्यवस्था पर राजी हो गईं।
नोटिस में कहा गया है कि यह न केवल एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि प्रासंगिक सवाल खड़े करता है। एनजीओ के खाते की जांच पर गृह मंत्रालय ने कहा कि यह पाया गया कि विदेशी अनुदान में से 13.03 लाख रुपये धरनों, मसौदा विधोयक से जुड़ी बैठकों के लिए सांसदों या मीडिया को लाने-लेजान या रुकने की व्यवस्था करने पर खर्च किया गया, हालांकि विदेशी अनुदान के तहत जो रिटर्न फाइल किया गया उसमें इसका कोई उल्लेख नहीं था।
बहरहाल, अपने जवाब में एनजीओ ने कहा कि धरना इत्यादि 2009 में हुआ, जब एफसीआरए-2010 अमल में नहीं आया था। गृह मंत्रालय ने कहा, 'इसका उल्लेख किया जा सकता है कि एसोसिएशन ने न सिर्फ 2009, बल्कि 2011 और 2014 में धरनों का आयोजन किया। विदेशी अनुदान से राजनीतिक रंग वाली रैलियों या धरनों का आयोजन करने की इजाजत एफसीआरए-1976 के तहत भी नहीं थी।'
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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