लोकसभा चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया द्वारा मुस्लिम राजनीतिक सभा का आयोजन किया गया. सभा में विभिन्न राज्यों और विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक मैदानों से जुड़े विद्वानों, बुद्धिजीवियों और सामुदायिक नेताओं ने भाग लिया और मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों का जायज़ा लेने और देश के सामने खड़ी समस्याओं पर चर्चा करने के बाद अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की परेशानियों को रोशनी में लाने का निर्णय लिया. सभा के अंत में मांगों का एक चार्टर भी पास किया गया जो मुस्लिम समुदाय के विकास, प्रतिनिधित्व, शिक्षा, संस्कृति, सुरक्षा व अन्य समस्याओं पर आधारित है.
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चार्टर में बाबरी मस्जिद, प्रतिनिधित्व, जनविरोधी कानून आदि जैसे अनेक ऐसी समस्याएं उठाई गईं, जिनमें विपक्षी दल या तो बीजेपी के साम्प्रदायिक व जातिवादी विचारधारा का समर्थन करती नज़र आती हैं या वे इस पर जान-बूझकर ख़ामोशी बरतती हैं. सभा में पारित चार्टर में इस ओर इशारा किया गया कि आरएसएस की मातहत बीजेपी के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार में धार्मिक अल्पसंख्यकों को बहुत ज़्यादा निशाना बनाया गया है और उनके साथ भेदभाव से काम लिया गया है. सबके साथ न्याय की राजनीति के बजाए, नफरत की राजनीति मौजूदा सरकार की पाॅलिसी रही है. इसलिए आने वाले चुनाव में इस सरकार को बदलना धार्मिक अल्पसंख्यकों के हक़ में होगा. लेकिन साथ ही यह बात भी सामने रहनी चाहिए कि अल्पसंख्यकों के अस्तित्व और विकास की समस्याओं को गैर-बीजेपी पार्टियों ने भी बहुत ज़्यादा नज़रअंदाज़ कर रखा है, जो कि परंपरागत मुसलमानों के वोट पर निर्भर रही हैं. इसलिए केवल शासक दल या गठबंधन को हटाकर उसकी जगह दूसरों को बिठाना और सरकारी पाॅलिसियों में कोई बदलाव न करना सही विकल्प नहीं है.
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बीजेपी का बेहतर विकल्प बनने के लिए गैर-बीजेपी पार्टियों को अपनी अब तक की पाॅलिसी को अवामी पाॅलिसी से बदलना होगा और विभिन्न समस्याओं के प्रति सेक्युलर नज़रिया अपनाना होगा. सभा कि अध्यक्षता कर रहे चेयरमैन ई. अबूबकर ने इस बात पर बल दिया कि अब समय है कि पीड़ित वर्ग विभिन्न पार्टियों के वोटर बने रहने के बजाए, सत्ता में अपनी मुनासिब हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने की फिक्र करें. उन्होंने कहा कि जनता विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय की सुलगती समस्याओं पर 25 खंडों के तहत कुल 73 मांगों को शामिल किया गया है, जो बुनियादी रूप से सच्चर कमेटी और मिश्रा कमीशन की सिफारिशों, अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं, कुशल मज़दूर और कारीगर, दमनकारी कानून, एनआरसी और नागरिकता संशोधन कार्यवाहियों, फर्जी एंकाउंटर, विचाराधीन कैदी, आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व, धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण, अल्पसंख्यक संस्थानों, मुस्लिम पर्सनल लाॅ, इबादतगाहों, वक़्फ, महिला सशक्तिकरण आदि पर आधारित हैं.
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राष्ट्रीय सचिव डाॅ॰ तस्लीम रहमानी ने एनडीटीवी को बताया कि चुनाव में मुसलमानों का रोल बस यह रह गया है कि हर आने वाले चुनाव में उन्हें एक पार्टी को कुर्सी पर बिठाना और दूसरी को कुर्सी से हटाना है. लेकिन कोई भी पार्टी उनकी समस्याओं के हल से मतलब नहीं रखती. अब सेक्युलर पार्टियों के बिखरे घराने के निवासियों की ओर से बीजेपी को हराने की ज़िम्मेदारी भी सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के कंधों पर डाल दी गई है.
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