बुंदेलखंड:
बुंदेलखंड के किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। एक ओर लगातार तीन सालों से सूखा पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर किसानों के परिवार विपरित हालातों में कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे हैं। पहले से ही क़र्ज़ में डूबे एक किसान ने भारी क़र्ज़ लेकर अपने बेटी की शादी की लेकिन उसे इस बात की चिंता सता रही है कि आख़िर क़र्ज़ चुकाएगा कैसे?
इस क्षेत्र के सूखा प्रभावित गांवों में भूखमरी भी एक बड़ी समस्या है लेकिन बेटी की शादी किसी दिक्कत के सुलझने का इंतज़ार नहीं करती। खुशीलाल भी इस सूखे के बीच अपनी बेटी की शादी कर रहा है, पंडाल सजा हुआ है जहां बड़े-बड़े बर्तनों में खाना पकाया जा रहा है तो दूसरी तरफ रसगुल्ला और बर्फी जैसी 7 मिठाइयां तैयार रखी हैं। हलवाई ने बताया कि वह 1200 से 2000 लोगों के लिए खाना पका रहे हैं और वह भी तब जब सूखे में सब्ज़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं।
भोज के लिए 2 लाख का कर्ज़ा
पहले से ही कर्ज़ में डूबे खुशीलाल अपने परिवार के सम्मान को कायम रखने के लिए और ज्यादा क़र्ज़ ले चुके हैं जिसे चुकाने में उन्हें न जाने कितना वक्त लगेगा। खुशीलाल बताते हैं कि उन्होंने इस भोज के लिए 2 लाख रुपए का कर्ज़ लिया है। इतनी बड़ी रकम किसी भी ऐसे शख्स के लिए बहुत बड़ी है जिसका जीवन यापन सिर्फ छोटी से ज़मीन के टुकड़े पर फसल की बाट जोहते ही बीत रहा है।
शादी में मौजूद कुछ लोगों ने बताया कि किस तरह उन्होंने कभी बैंक से तो कभी उनको मजदूरी का काम देने वाले ठेकेदारों से कर्ज़ लिया है। एक किसान ने बताया कि उसके सिर पर एक लाख से ज्यादा कर्ज़ है, तो दूसरे ने कहा 'मेरा तो उससे भी ज्यादा है, दो लाख से भी ज्यादा कर्ज़ा है।'
नरेगा का ट्रैक रिकॉर्ड
सूखे की मार के बावजूद सरकार द्वारा इन किसानों के लिए किसी भी तरह की कारगर योजना सामने नहीं आ पाई है। इस गांव के साथ साथ पूरे उत्तर प्रदेश में नरेगा का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। भैरों प्रसाद ने अपना पिछले साल का नरेगा कार्ड दिखाया जो पूरी तरह खाली पड़ा था, यानि पिछले साल उसे एक दिन का भी काम नहीं मिला है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से उत्तरप्रदेश ने 2014-15 में 24 दिन नरेगा का काम दिया है, यानि प्रति परिवार 100 दिन के काम की गारंटी देने वाली योजना में एक चौथाई दिन ही काम मिल पाया है।
ऐसे में परेशान किसान मध्यप्रेदश के भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में इमारत बनाने के काम में लग जाते हैं। वहीं कुछ पत्थर और ईंट ढोने का काम करने लग जाते हैं तो कुछ बिना सोचे समझे ट्रेन पकड़कर दिल्ली पहुंच जाते हैं और अपनी किस्मत के पलटने का इंतज़ार करते हैं। हालांकि ऐसी जगहों पर कर्ज में दबे किसानों के शोषण की खबरें बड़ी आम बात है लेकिन खुशीलाल को फिर भी उम्मीद ने बचा रखा है। वहीं भैरों प्रसाद का मानना है कि शादी के कर्ज़ से निपटने के लिए खुशीलाल को घर से दूर पांच साल की कड़ी मजदूरी करनी होगी, तब जाकर उसकी कर्ज़ से छुट्टी हो पाएगी।
इस क्षेत्र के सूखा प्रभावित गांवों में भूखमरी भी एक बड़ी समस्या है लेकिन बेटी की शादी किसी दिक्कत के सुलझने का इंतज़ार नहीं करती। खुशीलाल भी इस सूखे के बीच अपनी बेटी की शादी कर रहा है, पंडाल सजा हुआ है जहां बड़े-बड़े बर्तनों में खाना पकाया जा रहा है तो दूसरी तरफ रसगुल्ला और बर्फी जैसी 7 मिठाइयां तैयार रखी हैं। हलवाई ने बताया कि वह 1200 से 2000 लोगों के लिए खाना पका रहे हैं और वह भी तब जब सूखे में सब्ज़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं।
भोज के लिए 2 लाख का कर्ज़ा
पहले से ही कर्ज़ में डूबे खुशीलाल अपने परिवार के सम्मान को कायम रखने के लिए और ज्यादा क़र्ज़ ले चुके हैं जिसे चुकाने में उन्हें न जाने कितना वक्त लगेगा। खुशीलाल बताते हैं कि उन्होंने इस भोज के लिए 2 लाख रुपए का कर्ज़ लिया है। इतनी बड़ी रकम किसी भी ऐसे शख्स के लिए बहुत बड़ी है जिसका जीवन यापन सिर्फ छोटी से ज़मीन के टुकड़े पर फसल की बाट जोहते ही बीत रहा है।
शादी में मौजूद कुछ लोगों ने बताया कि किस तरह उन्होंने कभी बैंक से तो कभी उनको मजदूरी का काम देने वाले ठेकेदारों से कर्ज़ लिया है। एक किसान ने बताया कि उसके सिर पर एक लाख से ज्यादा कर्ज़ है, तो दूसरे ने कहा 'मेरा तो उससे भी ज्यादा है, दो लाख से भी ज्यादा कर्ज़ा है।'
नरेगा का ट्रैक रिकॉर्ड
सूखे की मार के बावजूद सरकार द्वारा इन किसानों के लिए किसी भी तरह की कारगर योजना सामने नहीं आ पाई है। इस गांव के साथ साथ पूरे उत्तर प्रदेश में नरेगा का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। भैरों प्रसाद ने अपना पिछले साल का नरेगा कार्ड दिखाया जो पूरी तरह खाली पड़ा था, यानि पिछले साल उसे एक दिन का भी काम नहीं मिला है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से उत्तरप्रदेश ने 2014-15 में 24 दिन नरेगा का काम दिया है, यानि प्रति परिवार 100 दिन के काम की गारंटी देने वाली योजना में एक चौथाई दिन ही काम मिल पाया है।
ऐसे में परेशान किसान मध्यप्रेदश के भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में इमारत बनाने के काम में लग जाते हैं। वहीं कुछ पत्थर और ईंट ढोने का काम करने लग जाते हैं तो कुछ बिना सोचे समझे ट्रेन पकड़कर दिल्ली पहुंच जाते हैं और अपनी किस्मत के पलटने का इंतज़ार करते हैं। हालांकि ऐसी जगहों पर कर्ज में दबे किसानों के शोषण की खबरें बड़ी आम बात है लेकिन खुशीलाल को फिर भी उम्मीद ने बचा रखा है। वहीं भैरों प्रसाद का मानना है कि शादी के कर्ज़ से निपटने के लिए खुशीलाल को घर से दूर पांच साल की कड़ी मजदूरी करनी होगी, तब जाकर उसकी कर्ज़ से छुट्टी हो पाएगी।
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