विज्ञापन
This Article is From Sep 20, 2015

मराठवाड़ा : किसानों की दुर्दशा के बीच चीनी मिल मालिक को मर्सिडीज़ भी 'कम' पड़ रही है

मराठवाड़ा : किसानों की दुर्दशा के बीच चीनी मिल मालिक को मर्सिडीज़ भी 'कम' पड़ रही है
पाटिल की पार्किंग में खड़ी मर्सिडीज़ जिसे वह 'मंदी' की निशानी बता रहे हैं
उस्मानाबाद: महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के उस्मानाबाद में बापू राव पाटिल अपने भाई और कांग्रेस विधायक बसवाराज एक स्थानीय शुगर मिल श्री विट्ठल साई शुगर मिल के मालिक हैं। इनका मानना है कि यह वक्त उनके लिए ठीक नहीं है, शायद मराठवाड़ा में किसी के लिए नहीं है क्योंकि बताया जा रहा है कि इस इलाके में 50 प्रतिशत बारिश कम हुई है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां पिछले 100 साल में सबसे कम बारिश हुई है।

इन सबके बावजूद यहां गन्ने को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है जो विवाद का विषय बना हुआ है। दरअसल गन्ने की खेती में पानी बहुत लगता है, पारंपरिक फसल जैसे उड़द दाल, मूंग, ज्वार और बाजरा की तुलना में गन्ने के हर एक एकड़ में 10 गुना ज्यादा पानी लगता है।

लेकिन हैरानी की बात यह है कि पिछले चार साल से कम बारिश और सूखे से पेरशान मराठवाड़ा में बीते मौसम की तुलना में गन्ने की खेती में 40 हज़ार हेक्टर का इज़ाफा हुआ है।

कईयों का कहना है कि शक्कर के बाज़ार पर पाटिल और उनके भाई जैसों की राजनीतिक पकड़ होने की वजह से इस सूखाग्रस्त इलाके में गन्ने को बढ़ावा देना जारी है। ऐसे रसूख़दार जो शक्कर मिल, सहकारी बैंक और मंडी के हर पहलू को अपने काबू में रखने का माद्दा रखते हैं।

गन्ने की पेराई पर रोक

लेकिन ऐसा पहली दफे हो रहा है कि राज्य सरकार इस बार के मौसम में गन्ने की पिसाई पर प्रतिबंध लगाने के बारे में सोच रही है क्योंकि एक टन गन्ने की पिसाई में करीब 100 लीटर पानी का खर्चा आता है।

हालांकि सरकार के इस कदम से पहले ही कर्ज के दलदल में फंसे गन्ने के किसानों के लिए मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। उमर्गा तालुका में अपने गन्ने की फसल के पास खड़े अशोक पवार, वैजानाथ पाटिल और रमेश पवार ने बताया कि वह तीनों 3 लाख, 2 लाख 10 हज़ार और सवा 2 लाख के कर्ज में पहले से ही डूबे हुए हैं।
 
पाटिल की मर्सिडीज़ एसयूवी की कीमत 55 लाख है

वहीं शुगर फैक्ट्री के मालिक बापूराव पाटिल का कहना है कि सरकार को अपनी इस नीति के बारे में पुनर्विचार करना चाहिए।

'मर्सिडीज़ तो मुश्किल वक्त की निशानी है'

हालांकि राजनीतिक तौर पर अच्छे संपर्क रखने वाले पाटिल जैसे शक्कर उद्योगपतियों के लिए गन्ना किसानों की इस समस्या का कुछ ख़ास पड़ता दिखाई नहीं देता। पाटिल की कार पार्किंग में चमचमाती सफेद रंग की मर्सीडीज़ एसयूवी खड़ी हुई है जो गांव की पतली गलियों और मिट्टी के घरों के बीच इतराती हुई दिखाई देती है।

अपनी मितव्ययिता का ज़िक्र करते हुए पाटिल कहते हैं कि किसानों की देखरेख की वजह से उन्हें 'इम्पोर्टेड' कार की जगह मर्सिडीज़ से 'समझौता' करना पड़ा। जब पाटिल को समझाया गया कि मर्सिडीज़ तो एक जर्मन कार है तो उनका तर्क था कि इसे तो पुणे के पास ही ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री चाकन में एसेंबल किया जाता है, तो यह इम्पोर्टेड कैसे हुई?

पाटिल ने बताया कि उनकी इस कार का दाम 55 लाख है। जब उनसे पूछा गया कि मर्सिडीज़ जैसी कार उनकी मितव्ययिता कहां से दिखाती है, वैसे भी गांव में कितने लोग ऐसी मंहगी कार खरीदने का दम रखते हैं तो उनका जवाब था 'खरीदना नहीं खरीदना, यह उनके दिल की बात है।'

फंड वितरण में अनियमितता

शक्कर की अर्थव्यवस्था को करीब से जानने वाले पाटिल की इस बात को अच्छे से समझ सकते हैं। किसानों केलिए मौसम कैसा भी हो, दाम भले ही गिर रहे हो, उत्पादन ज़रूरत से ज्यादा हो या फिर प्रशासनिक स्तर पर गड़बड़ी हो - शक्कर उद्योग को मुसीबत से समय समय पर बाहर निकाला जाता रहा है मिसाल के तौर पर एक महीने पहले केंद्र द्वारा दिया गया 6000 करोड़ का पैकेज।

बता दें कि केंद्र के इस पैकेज की रकम को पूरी तरह मिल सुधार या किसानों को मुआवज़ा देने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। एक जांच समिति ने हाल ही में महाराष्ट्र सहकारी बैंक की तरफ से फंड वितरण में हुई अनियमितताओं को लेकर बैंक के निदेशक और राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ चार्जशीट दायर की है।

इस केस में यह बात सामने आई है कि फंड का काफी हिस्सा उन बिमार पड़ी शक्कर सहकारी समितियों को दिया गया है जो पवार की पार्टी के सदस्यों द्वारा चलाई जा रही है।

हालांकि पाटिल ने शक्कर उद्योग में मिली भगत के आरोप को दरकिनार करते हुए कहा है कि असल समस्या दरअसल ग्लोबल वॉर्मिंग की है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com