इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड की चीफ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ ने NDTV के साथ इंटरव्यू में गुरुवार को वैक्सीनेशन में असमानता दिखने पर दुख जताया. उन्होंने कहा कि कोविड के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के बढ़ते डर के बीच वैक्सीन असमानता या गरीब देशों के पास कोविड वैक्सीन की पहुंच न होना त्रासदपूर्ण है. गीता गोपीनाथ ने वैक्सीनेशन रेट में जमीन-आसमान का फर्क रहने और पूरी दुनिया पर इससे पड़ने वाले असर पर भी बात की.
उन्होंने कहा कि 'वैक्सीन असमानता त्रासदपूर्ण है. 2021 खत्म हो रहा है और अधिक आय वाले देशों ने अपनी 70 फीसदी जनसंख्या को वैक्सीन लगा लिया है, वहीं कम आय वाले देश अभी चार प्रतिशत से भी कम लोगों को वैक्सीन लगा पाए हैं. लक्ष्य ये था कि इस साल के अंत तक हर देश की 40 फीसदी जनसंख्या को वैक्सीन लग जाए. दुनिया में 80 ऐसे देश हैं, जो इस लक्ष्य को पार नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उनके पास पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन की डोज ही नहीं है.'
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उन्होंने NDTV से कहा कि 'उदाहरण के तौर पर COVAX का वैक्सीन निर्माताओं से कॉन्ट्रैक्ट है.... अभी तक बस 18 फीसदी डोज ही डिलीवर हो पाई हैं. वो डिलीवरी को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं. अधिक आय वाले देशों ने 1.5 बिलियन डोज डिलीवर करने का वादा किया था, अभी तक बस 300 मिलियन डोज ही डिलीवर किए गए हैं.'
चीफ इकोनॉमिस्ट ने इस बात पर जोर दिया कि विकसित देशों और मैन्युफैक्चरर्स को वैक्सीन की डिलीवरी को प्राथमिकता देनी चाहिए.
उन्होंने ओमिक्रॉन पर चिंता जताते हुए कहा कि इसके चलते अब बूस्टर डोज की मांग भी तेज हो रही है, जिससे हो सकता है कि कम आय वाले देशों को वैक्सीन की जो सप्लाई मिल रही है, वो भी प्रभावित हो. उन्होंने विकसित देशों से कहा कि वो वैक्सीन और मेडिकल उपकरणों के निर्यात पर रोक न लगाएं.
ओमिक्रॉन को लेकर उन्होंने कहा कि 'हम इतना जानते हैं कि इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं... ऐसा लगता है कि ये डेल्टा के मुकाबले ज्यादा संक्रामक है. ये कम खतरनाक हो सकता है लेकिन अगर संक्रमित लोगों के आंकड़े बढ़ने लगे तो हॉस्पिटल सिस्ट पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. हम पहले ही यात्राओं और लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध देख रहे हैं, जाहिर है इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी होगा.'
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