कर्नाटक के बीदर के एक स्कूल टीचर, छात्रा की मां और स्कूल प्रबंधक के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने पर वहां की निचली अदालत ने आपत्ति जताई है. न्यायालय ने कहा है कि पहली नजर में यह मामला देशद्रोह का नहीं है. अगर पुलिस को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि इससे खराब हुई है तो मामला प्रधानमंत्री की तरफ से दर्ज होना चाहिए. जज ने स्कूल प्रबंधक को अग्रिम जमानत दे दी है.
बीदर की अदालत ने न सिर्फ स्कूल के प्रबंधक बल्कि इसके प्राचार्य और उस पत्रकार को भी अग्रिम जमानत दे दी जिनके खिलाफ देशद्रोह का मामला बीदर पुलिस ने दर्ज किया था. स्कूल में हुए एक नाटक में कथित रूप से एक छोटी बच्ची ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्द का इस्तेमाल किया था. अदालत ने अग्रिम जमानत देने के साथ-साथ देशद्रोह का मामला दर्ज करने पर भी सवाल उठाए. कोर्ट ने साफ कहा कि पहली नज़र में यह देशद्रोह का मामला नहीं लगता.
स्कूल प्रबंधन के वकील बीटी वेंकटेश ने कहा कि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि स्कूल के मैनेजमेंट के खिलाफ देशद्रोह का मामला नहीं बनता. यही कानून और सोच स्कूल की महिला शिक्षक और छात्रा की मां पर भी लागू होगा.
दरअसल 21 जनवरी को सीएए के खिलाफ स्कूल में हुए एक नाटक में एक बच्ची ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपशब्द का इस्तेमाल किया था. इसके बाद उस बच्ची की मां और नाटक की सुपरवाइज़र शिक्षिका को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. तकरीबन 15 दिनों के बाद उन्हें जमानत मिली.
इसके इलावा देशद्रोह का मामला हुबली में तीन कश्मीरी छात्रों के खिलाफ भी दर्ज किया गया है. तकरीबन 19 साल की अमूल्य लियोनी के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है, जिसने पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी की थी.
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वकील बीटी वेंकटेश ने कहा कि अमूल्य के केस में भी देशद्रोह का मामला नहीं बनता क्योंकि इस कानून के मुताबिक देशद्रोह का मामला तभी हो सकता है जब देश की एकता और अखंडता के खिलाफ कोई बात की जाए या फिर कुछ ऐसा कहा जाए या किया जाए जिससे देश के स्वरूप को खतरा हो. इन दोनों में से कुछ भी अमूल्य ने नहीं किया था.
कौन से मामले देशद्रोह के हैं और कौन से नहीं, इसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर करता रहा है. साथ ही भारतीय दंड संहिता में इसको अच्छी तरह परिभाषित किया गया है. लेकिन हाल में पुलिस ने देशद्रोह के मामले दर्ज करने में तेजी दिखाई है. इससे सवाल पुलिस की नियत पर उठाए जाने लगे हैं. क्या वह किसी दबाव में आकर देशद्रोह के मामले दर्ज कर रही है? या फिर पुलिस को सही ढंग से देशद्रोह की परिभाषा पता नहीं है? क्योंकि ज्यादातर मामले अदालत में टिक नहीं रहे.
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