साल 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले में गुजरात पुलिस के कुछ अधिकारियों द्वारा कथित रूप से फंसाएं गए 45 साल के मोहम्मद सलीम को अपनी जिंदगी के पिछले 11 साल एक 'आंतकी' के तमगे के साथ गुजारने पड़े।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की 16 मई को इस मामले में उम्रकैद की सजा पाए तीन आरोपियों सहित सभी छह आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया और गुजरात पुलिस को उसकी लचर जांच के लिए कड़ी फटकार भी लगाई।
इन्हीं में एक सलीम भी हैं, जो अगस्त 2003 में सउदी अरब से लौटे ही थे कि तभी अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा ने उन्हें अपने पासपोर्ट आवेदन में गलत जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद कथित रूप से उससे किसी एक आतंकी हमले में अपनी भूमिका स्वीकार करने के लिए गया।
सलीम उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, 'मुझसे गोधरा (ट्रेन में आगजनी का मामला)', हरेन पंड्या (हत्या) मामला या फिर अक्षरधाम मामलों में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया। मैंने उनसे गुजारिश करते हुए कहा कि मैं पिछले 13 साल से भारत से बाहर था, तो फिर मैं ऐसी कोई बात कैसे मान लूं, जब मैं उसमें संलिप्त था ही नहीं।'
साल 2006 में सलीम को पोटा कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी। वहीं तीन अन्य आरोपियों- मुफ्ती अब्दुल कयूम, आदम अजमेरी और चांद खान को मौत की सजा सुनाई गई। इसके अलावा दो अन्य आरोपियों अब्दुल मियां कादरी को दस साल जेल और अल्ताफ कादरी को पांच साल जेल की सजा मिली।
सलीम की गिरफ्तारी के बाद उनकी मां बिमार पड़ गई, वहीं उनका 15 साल का बेटा जिस अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाई कर रहा था, उससे उसे हटा दिया गया। इसके बाद उसे सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। सलीम कहते हैं, 'मेरे बच्चों को बिना किसी दोष के सजा दी गई।'
इन सब तकलीफों के बाद आज सलीम और उसके परिवार की बस यही ख्वाहिश है कि इस मामले की वजह पटरी से उतरी उनकी जिंदगी वापस पटरी पर लौट आए।
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