पति का विवाहेतर संबंध हमेशा क्रूरता नहीं होता, लेकिन यह तलाक का आधार हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

पति का विवाहेतर संबंध हमेशा क्रूरता नहीं होता, लेकिन यह तलाक का आधार हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

खास बातें

  • लेकिन यह तलाक का आधार हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट
  • शीर्ष अदालत ने एक व्यक्ति को यह कहते हुए सभी आरोपों से बरी किया.
  • विवाहेतर संबंध आईपीसी की धारा 498 ए के दायरे में नहीं आएगा- सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्‍ली:

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किसी व्यक्ति के विवाहेतर संबंध और उसकी पत्नी का संदेह हमेशा ऐसी मानसिक क्रूरता नहीं होती, जिसे आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रावधान माना जाए, लेकिन यह तलाक का आधार हो सकता है.

ये टिप्पणियां उस मामले में की गई थीं, जिसमें एक महिला ने अपने पति के कथित विवाहेतर संबंधों की वजह से आत्महत्या की थी और दूसरी महिला ने अपमान की वजह से अपनी जान दी.

यह विपत्ति यहीं समाप्त नहीं हुई. बाद में व्यक्ति की कथित प्रेमिका की मां और भाई ने भी आत्महत्या कर ली.

शीर्ष अदालत उस व्यक्ति द्वारा अपनी दोषसिद्धि और चार साल के कारावास की सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. उस व्यक्ति को अपनी पत्नी के उत्पीड़न और मानसिक क्रूरता के लिए दोषी ठहराया गया था. इसकी वजह से उसकी पत्नी ने आत्महत्या की.

शीर्ष अदालत ने उस व्यक्ति को यह कहते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया कि आईपीसी की धारा 306 समेत ये प्रावधान कर्नाटक उच्च न्यायालय ने जोड़े और आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मुकदमा गलत था.

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने कहा कि विवाहेतर संबंध आईपीसी की धारा 498 ए (पति या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा विवाहित महिला का उत्पीड़न) के दायरे में नहीं आएगा. यह अवैध या अनैतिक कृत्य हो सकता है, लेकिन अन्य घटक भी होने चाहिए ताकि यह अपराध के दायरे में आए.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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