दिल्ली विश्वविद्यालय के सबसे प्रतिष्ठित हिन्दू कॉलेज में सात शिक्षकों को एक चिट्ठी लिखना भारी पड़ गया। ईश मिश्रा, पीके विजयन, राजेश कुमार, अतुल गुप्ता, सचिन वशिष्ठ, रतनलाल और पूनम सेठी ने पिछले साल मार्च में कॉलेज में बन रहे गर्ल्स हॉस्टल के शिलान्यास से ठीक कुछ दिन पहले उपराज्यपाल को एक पत्र लिखा।
चिट्ठी में लिखा गया था कि जिस गर्ल्स हॉस्टल का शिलान्यास करने वो हिन्दू कॉलेज आ रहे हैं उसका नक्शा निगम से पास नहीं है। साथ ही हॉस्टल का 18 करोड़ का बजट है लेकिन कॉलेज के पास महज 7 करोड़ का ही फंड है।
ऐसे में हॉस्टल का काम रुक सकता है। दरअसल पिछले साल उपराज्यपाल ने हॉस्टल का शिलान्यास किया था। लेकिन इन शिक्षकों ने आरटीआई के जरिए जो जानकारी ली उसमें उस वक्त तक हॉस्टल का नक्शा पास नहीं था। पिछले साल दिसंबर में निगम ने हॉस्टल का नक्शा पास किया है।
इसी पत्र का सहारा लेकर हिन्दू कॉलेज की गवर्निंग बॉडी ने पहले दो सदस्यीय जांच कमेटी बनाई।
फिर शुक्रवार को इन सातों शिक्षकों के सालाना इन्क्रीमेंट को रोकने और पांच साल तक कोई प्रशासनिक पद नहीं देने का हुक्म सुना दिया। विश्वविद्यालय के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब एक चिट्ठी की इतनी बड़ी सजा किसी शिक्षक ने भुगती हो।
हिन्दू कॉलेज के शिक्षक रतनलाल कहते हैं कि शिक्षकों की अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ वे तानाशाही रवैए का जी भरकर विरोध करेंगे। उनका कहना है कि इस कदम से गवर्निंग बॉडी की मंशा जाहिर होती है कि वो अपने विरोध की आवाज को सुनना तक पसंद नहीं करता है।
हालांकि हिन्दू कॉलेज की प्रिंसिपल कहती है कि ये फैसला गवर्निंग बॉडी की जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद हुआ है। लेकिन इसको लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ में खासा रोष है डूटा की अध्यक्ष नंदिता नारायन कहती हैं कि कॉलेज पब्लिक प्रापर्टी है किसी की निजी दुकान नहीं है।
शिक्षक हमेशा से अनियमितताओं की बात उठाते रहे हैं बजाए उन बातों की जांच करने के उलटा शिक्षकों को ही सजा सुनना ठीक नहीं है। डूटा ने इस मसले पर एक आपातकालीन बैठक भी बुलाई है।
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