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This Article is From May 04, 2019

एनएफएयू को परिभाषित करने के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित

समिति सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर नॉनफंक्शनल अपग्रेडेशन के विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में व इसकी स्वीकार्यता आदि के बारे में परीक्षण करेगी

एनएफएयू को परिभाषित करने के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:

एनएफएयू की परिभाषा के लिए उच्च स्तरीय कमेटी नॉनफंक्शनल अपग्रेडेशन यानि एनएएफयू के विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में व इसकी स्वीकार्यता आदि  के बारे में तमाम सेवाओं की शिकायतों का समाधान तलाशने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले दिनों एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है. यह समिति सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर नॉनफंक्शनल अपग्रेडेशन यानि एनएएफयू के विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में व इसकी स्वीकार्यता आदि  के बारे में परीक्षण करेगी और यह बताएगी कि ऑर्गेनाइज्ड सर्विसेज (संगठित सेवाएं) या ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप-ए सर्विसेज यानी ओजीएएस किसको माना जाए.

इस समिति के विषय में जारी आदेश में कहा गया है कि यह समिति भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा आदि के विषय में एक व्यापक समाधान निकालने के लिए सुझाव देगी. यह समिति वेतन आयोग( पे कमीशन) की संस्तुतियों, विभिन्न न्यायिक आदेशों और प्रशासनिक और वित्तीय आवश्यकताओं आदि के विषय के साथ साथ अन्य प्रकार के संदर्भित तथ्यों के विषय में उनका अध्ययन करके व्यापक सुझाव देगी. समिति ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस के विषय में भी एक स्पष्ट परिभाषा तय करने के लिए भी सुझाव देगी. साथ ही, कैडर रिव्यू तथा ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस की प्रक्रिया को स्पष्टतया निर्धारित करने को दायित्व भी पूरा करेगी. सरकार ने इस समिति को अपनी सिफारिशें देने के लिए 30 दिनों का समय दिया है. समिति अपनी अनुशंसाएं कैबिनेट सेक्रेटरी को सौंपेगी.

गौरतलब है कि फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय से केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों को तथा इनके कैडर को ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस और एन एफ यू का लाभ देने संबंधित फैसले के बाद भी इसे लागू करवाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अवमानना याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार ने अदालत से 15 जुलाई, 2019 तक का समय मांगा था ताकि वह इन बलों के कैडरों को ऑर्गेनाइज्ड सर्विस का दर्जा और एनएफयू से संबंधित प्रशासनिक प्रक्रिया को तार्किक तरीके से पूरा कर सके.

सरकार ने इसके लिए वर्तमान में चल रहे चुनावों और अधिकारियों के व्यस्त रहने आदि के विषय को आधार बनाते हुए यह तर्क दिया था कि इस कारण इस फैसले को तत्काल लागू करना प्रशासनिक कारणों से संभव नहीं है.

अब, इस उच्च स्तरीय समिति के गठन से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि केंद्र सरकार के पास ना तो चुनावों के कारण अधिकारियों की ही कमी है और ना ही चुनाव से सरकार की इस प्रकार की किसी निर्णय आदि को लेने की क्षमता पर कोई प्रश्नचिन्ह ही लगता है.

उधर,केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के संबंधित अधिकारियों ने इस समय अचानक कमेटी के गठन के तौर तरीकों पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि जब मामला न्यायिक प्रक्रिया से पहले ही निर्धारित हो चुका है तो फिर इस प्रकार की कमेटी के गठन से सरकार कहीं ना कहीं मामले में देरी करने और इस पर कोई नया प्रस्ताव लाने की तैयारी में है जो सीधे-सीधे कोर्ट के आदेशों की अनुपालना में बाधक बन सकती है.

सरकार को तत्काल इस संदर्भ में स्थिति स्पष्ट करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट और माननीय हाईकोर्ट के फैसले को लागू करना चाहिए और केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों के अधिकारियों को ओ जी ए एस के दायरे में लाकर एन एफ़ यू देना चाहिए.

हालांकि कमेटी के गठन और इसकी अनुशंसा से संबंधित किसी भी प्रक्रिया में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों का कहीं जिक्र नहीं है. साथ ही यह भी यह ध्यान देने वाली बात है कि इस कमेटी में इन केंद्रीय बलों के किसी भी सेवारत या सेवानिवृत्त अधिकारी को जगह नहीं दी गई है.

डीओपीटी के इस आर्डर में कहीं भी आईएएस अधिकारियों के कैडर के विषय में किसी परिभाषा निर्धारण का जिक्र नहीं है जबकि वे भी ऑर्गेनाइज्ड सर्विसेज और एन एफ यू के दायरे में आते हैं और वे इससे सबसे ज्यादा लाभ अर्जित करते हैं. बाकी कैडरों को आईएएस की वरिष्ठता की तुलना में 2 वर्ष बाद से एन एफ़ यू मिलता है.

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों द्वारा विगत लगभग 7 वर्षों से ऑर्गनाईज्ड ग्रुप ए सर्विस और एनएफयू के लिए अदालत में संघर्ष किया जा रहा था जिसके बाद से यह मामला चर्चा में आया.  दिल्ली हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालयों ने  केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल, सशस्त्र सीमा बल और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के अधिकारियों के लिए ऑर्गेनाइज्ड सर्विस का लाभ देने संबंधित फैसला सुनाया था.

वर्तमान केंद्र सरकार और आईपीएस एसोसिएशन द्वारा इसका पुरजोर विरोध किया गया लेकिन न्यायालयों ने अपने फैसलों में कहा कि इन बलों को एन एफ यू के लाभों से वंचित नहीं रखा जा सकता और सरकार को इन्हें ओ जी ए एस और एन एफ़ यू का लाभ व दर्जा देना चाहिए.

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