दिल्ली के सरकारी बाल सुधार गृहों में जो हालात हैं वो किसी इमरजेंसी जैसे ही हैं। इन पर काबू पाने के लिए फौरन कदम उठाने की जरूरत है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह कहते हुए दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग को कड़ी फटकार लगाई और 24 घंटे के भीतर रणनीति बनाने के आदेश दिए।
हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को भी इसके लिए डीसीपी स्तर के अफसर की तैनाती के निर्देश दिए हैं। बाल-सुधार गृहों में हो रही हिंसा और नाबालिगों के फरार होने की घटनाओं पर संज्ञान लेने के मामले में हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की।
चीफ जस्टिस एनवी रमन और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने पिछले चार महीनों में हिंसा की चार घटनाओं पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि इस दौरान 60 नाबालिग भी सुधारगृहों से फरार हुए। दो दिन पहले भी हिंसा की घटना हुई।
ऐसे में साफ है कि यह सरकारी तंत्र की विफलता है। हाईकोर्ट इस मामले में एक सरकारी अफसर और एक पुलिस अधिकारी पर जवाबदेही तय करेगा।
हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार की तरफ से कहा गया कि सुधारगृहों में कई नाबालिग ऐसे हैं जो इस तरह की हिंसा करते हैं और वह सरकारी कर्मचारियों को भी निशाना बना लेते हैं। यहां तक कि सुधार गृहों में ड्रग्स भी पहुंच जाती है।
हिंसा के दौरान नाबालिगों को देखते हुए दिल्ली पुलिस भी भीतर जाने से मना कर देती है, जबकि सुधारगृहों की निगरानी के लिए ज्वुलाइन जस्टिस बोर्ड कमेटी और कई संगठन भी काम कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने इस मुददे पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार को 24 घंटे के भीतर रणनीति बनानी चाहिए। इसके लिए स्टेंडर्ड ऑपरेटिव प्रॉसिजर तय करना चाहिए। इसके अलावा दिल्ली पुलिस में भी डीसीपी स्तर के एक अधिकारी को लॉ एंड आर्डर के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए।
साथ ही इन सुधार गृहों में सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कर्मचारी तैनात हों।
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