
जीत की खुशी मनाते पीएम मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह आदि.
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
गुजरात में बीजेपी ने हार से अपने आप को उबार लिया.
गुजरात की जीत पीएम मोदी की जीत है.
बीजेपी को टक्कर देने के लिए अभी और मेहनत करने की जरूरत है कांग्रेस को.
बीजेपी की जीत नहीं, कांग्रेस की हार है
गुजरात चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो गुजरात में बीजेपी की जीत नहीं हुई है, बल्कि कांग्रेस की हार हुई है. अगर 22 साल के सरकार विरोधी लहर को भी कांग्रेस नहीं भुना पाई है, तो इसे उसकी हार ही मानी जानी चाहिए. हालांकि, बात सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं हो जाती. बीजेपी को इस जीत के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े हैं. अगर बीजेपी गुजरात में सत्ता बचाने में कामयाब हो पाई है तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी रैलियां हैं. बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में करीब 30-35 रैलियां करनी पड़ी. कई जगह उन्हें भव्य रोड शो करने पड़े और कैंपने के आखिरी दिन सी-प्लने की भी सवारी करनी पड़ी. तब जाकर किसी तरह बीजेपी 99 सीटें जीतने में कामयाब हो पाई.
विकास का 'गुजरात मॉडल' खोखला, चुनाव नतीजों से पीएम मोदी की क्रेडिबिलिटी पर सवाल : राहुल गांधी
ये सभी जानते हैं कि गुजरात चुनाव से पहले ही बीजेपी की सत्ता के खिलाफ में लोगों में रोष और आक्रोश था. इसकी कई वजहें हैं. बीजेपी का सत्ता में लगातार 22 साल होना, नोटबंदी से उपजी शुरुआती समस्या और जीएसटी से व्यापारियों की कमर टूटना आदि. हालांकि, बीजेपी भी इस गुस्से को भांप गई थी, यही वजह है कि इस गुस्से को कम करने के लिए गुजरात चुनाव के ठीक पहले ऐन मौके पर बीजेपी को जीएसटी की दरों में बदलाव करने पड़े. हाई स्पीड बुलेट ट्रेन की नींव रखनी पड़ी और डैम परियोजनाओं का उद्गघाटन करना पड़ा. तब जाकर बीजेपी बहुमत का आंकड़ा पार करने में किसी तरह कामयाब हो पाई. मगर बीजेपी जिस तरह से अपने प्रदर्शन के दावे कर रही थी, नतीजे वैसे नहीं दिखें. यही वजह है कि अमित शाह और पीएम मोदी बीजेपी की इस प्रदर्शन के लिए कांग्रेस के 'कास्ट पॉलिटिक्स' को जिम्मेवार ठहराते रहे. मगर सच्चाई तो यह है कि बीजेपी खुद धर्म और जाति की जाल में फंसी हुई है.
गुजरात और हिमाचल में कांग्रेस की हार पर राहुल गांधी ने दिया यह बयान
22 साल के सरकार विरोधी लहर नहीं भुना सकी कांग्रेस
कल के चुनाव परिणाम पर गौर करे तो बीजेपी को जो सफलता गुजरात के शहरी क्षेत्रों में मिली है, वैसी सफलता ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं मिली है. इससे साफ है कि अर्बन क्षेत्र में बीजेपी का अभी भी दबदबा बरकरार है, जहां राहुल गांधी सेंध लगाने में नाकामयाब दिखे. सभी बाधाओं के बावजूद बीजेपी ने न सिर्फ शहरी वोट हासिल किए, बल्कि कांग्रेस को कूचलते हुए अहमदाबाद की 21 में से 15 सीटें, सूरत की पूरी 12 सीटें, राजकोट के 8 में से 6 सीटें और वडोदरा की 10 में से 9 सीटें और भावनगर की सभी चार सीटें जीत ली. यानी एक तरह से देखा जाए तो शहरी क्षेत्र में बीजेपी ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ ही कर दिया. याद रहे कि चुनावी कैंपेन से पहले इन इलाकों में बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त लहर थी.
वो हार को ही विजय मानते हैं तो उनको ऐसी विजय मुबारक : प्रकाश जावड़ेकर
व्यापारियों में नोटबंदी और जीएसटी को लेकर काफी गुस्सा था. मगर अर्बन इलाकों के नतीजों से ये साफ है कि बीजेपी ने किसी तरह उस गुस्से को गुजराती अस्मिता से जोड़कर भुना लिया. इतने गुस्से के बाद भी अगर शहरी अपर मिडल क्लास, शिक्षित वोटर्स और क्रोधित व्यापारियों ने बीजेपी के साथ जाना ही पसंद किया, तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी ही नजर आते हैं. यानी साफ है कि गुजरात के शहरी वोटर्स के पास पीएम मोदी पर विश्वास करने के अलावा कोई और विकप्ल नहीं था. राहुल गांधी ने कोशिश की मगर पीएम मोदी से ज्यादा विश्वासी अपने आप को नहीं जता पाए. इस तरह से राहुल गांधी अपने नेतृत्व के प्रति शहरी वोटर्स का विश्वास कायम करवाने के लिए अभी और मेहनत करने की जरूरत है.
बीजेपी की जीत पर खुले दिल से शत्रुघ्न सिन्हा ने की पीएम मोदी की तारीफ, राहुल को लेकर कही ये बड़ी बात
पाटीदार फैक्टर नहीं आया काम
इस चुनाव में पाटीदार सबसे अहम फैक्टर माने जाते रहे. ऐसा लग रहा था कि हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय के एकक्षत्र नेता हो चुके हैं और वो जिसे अपना समर्थन दे देंगे, बाजी उधर ही पलट जाएगी. मगर नतीजे पूरी तरह से वैसे नहीं दिखे. हालांकि, राहुल गांधी किसी तरह हार्दिक पटेल का समर्थन पाने में कामयाब हो गये, मगर पूरे पाटीदार समुदाय का समर्थन पाने में कामयाब नहीं हो पाए. यही वजह है कि पाटीदारों के दबदबे वाले इलाके में कांग्रेस सभी सीटें जीतने में सफल नहीं हो पाई. सौराष्ट्र और कच्छ में भी कांग्रेस उम्मीद के मुताहिक सीटें नहीं जीत पाई. कुछ ऐसा ही हाल सेंट्रल गुजरात और अन्य जगहों पर भी रहा. इस तरह से देखा जाए तो कांग्रेस को जिताने के लिए जितनी मेहनत राहुल गांधी ने की, बीजेपी को हराने के लिए उतनी ही मेहनत हार्दिक पटेल ने की. मगर उन मेहनतों को नतीजों में बदलने में वे दोनों सफल नहीं हो पाए.
गुजरात में बेशक जीती बीजेपी, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के गृहनगर में ही खा गई मात
चुनाव के दौरान पाटीदार समाज भी दो भागों में बंटा नजर आया. बीजेपी ने एक तबके को भुनाने की कोशिश कर ली, जिसकी झलक नतीजों में देखने को मिली. ग्रामीण इलाकों में मिले वोट प्रतिशत ने भाजपा को एक बार अपनी गलतियों पर विचार करने का मौका जरूर दे दिया है. किसानों के मुद्दे, सिचाई की समस्या और नोटबंदी की मार से ग्रामीण इलाके की जनता खासी नाराज नजर आई, यही वजह है कि वोटर्स ने बीजेपी को अपना पीठ दिखा दिया और कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा जताया. बावजूद इसके बीजेपी यूपी में ऐन वक्त पर किसानों के कर्ज माफ कर गुजरात में परोक्ष रूप से अपने संकेत दे दिये. इस तरह से देखा जाए तो अगर ग्रामीण इलाकों ने बीजेपी को डूबाया तो शहरी क्षेत्रों ने उसे बचा भी लिया.
गुजरात चुनाव परिणाम से पता चलता है कि लोग भाजपा से खुश नहीं हैं : शिवसेना
बाहर बनाम गुजरात की लड़ाई
गुजरात के चुनाव के जिस तरह से पीएम मोदी ने गुजरात बनाम बाहरी मोड़ दे दिया, उसी वक्त लगने लगा कि बीजेपी जीत की ओर बढ़ रही है. एक समय था जब गुजरात कांग्रेस पार्टी के भीतर स्ट्रॉन्ग लोकल लीडरशिप के लिए जाना जाता था. मगर इस चुनाव में गुजरात में राहुल गांधी के अलावा कोई भी नेता उतना ताकतवर नहीं दिखा. बीजेपी की इस जीत पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस के दिग्गज नेता शंकर सिंह बाघेला का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए कहीं ने कहीं कमजोर कड़ी साबित हुई. इस तरह से देखा जाए तो बीजेपी को हराने के लिए गुजरात में राहुल गांधी अकेले पड़ गये. जबकि गुजरात जीतने के लिए बीजेपी में अकेले पीएम मोदी तो काफी थे ही, मगर बीजेपी ने उनके अलावा स्टार प्रचारकों को की पूरी फौज खड़ी कर दी थी और लोकल लेवल पर भी खूब मेहनत की. लोकल नेताओं को भी काफी प्रमोट किया.
'जनेऊधारण' से लेकर 'नीच' वाले बयानों का कितना रहा असर, सूरत में क्या इसीलिए साफ हो गई कांग्रेस
पहले चरण में जिस तरह से वोटिंग की खबरें आई थीं, उससे साफ लग रहा था कि कांग्रेस का पलड़ा भारी है. इसकी भनक खुद बीजेपी को भी लग गई थी. यही वजह है कि दूसरे चरण में बीजेपी ने पीएम मोदी की कई धुआंधार रैलियां आयोजित करवाईं. दूसरे चरण में लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पीएम मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां हुईं. इतना ही नहीं, लोगों को रिझाने के लिए सी-प्लेन का भी सहारा लेना पड़ा. तब जाकर गुजरात की जनता का मूड बदल पाया. पीएम मोदी अपने पूरे चुनावी भाषण में गुजराती अस्मिता का राग अलापत रहें. ये कम पड़ा तो उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और गुजरात बनाम बाहरी की लड़ाई शुरू कर दी. पीएम मोदी इस बात को जानते थे कि अगर गुजरात के लोगों के गुस्से को शांत करना है तो उनकी भावनाओं के साथ ही कुछ खेल करना होगा और इस चाल में वो पास हो गये.
राहुल ने कहा- विकास खोखला, 'गुजरात मॉडल' प्रोपगंडा, BJP बोली- जनता ने 'वंशवाद' की जगह 'विकासवाद' चुना
हिंदू और हिंदुत्व में फंस गये राहुल
गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने की भरपूर कोशिश की. यही वजह है कि राहुल गांधी का मंदिर दौरा खूब सुर्खियों में बना रहा. बीजेपी इस बात से घबरा गई और उसे इस बात ने राहुल गांधी पर लगातार हमला करने पर मजबूर कर दिया. राहुल गांधी के मंदिर दौरों और हिंदूत्व एजेंडे को बीजेपी ने दुष्प्रचारित किया और इसे गुजरात में खूब फैलाया. यहां तक कि यूपी के सीएम ने भी राहुल गांधी के मंदिर दौरों पर हमला किया और तंज कसा. मगर इस बीच बीजेपी के हाथ एक ऐसा हथियार लगा, जिसे उसने भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सोमनाथ मंदिर में गैर-हिंदू वाले रजिस्टर में राहुल गांधी का नाम मिलना बीजेपी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं था. इस मुद्दे पर बीजेपी ने कांग्रेस को इस कदर घेरा कि कांग्रेस को राहुल गांधी के हिंदू होने के सबूत तक पेश करने पड़े और सोशल मीडिया पर इसकी खूब किरकिरी हुई.
गुजरात चुनाव : नतीजों के बाद कांग्रेस नेता अहमद पटेल का बयान- मैं कभी सीएम नहीं बनना चाहता था
दरअसल, बीजेपी तो गुजरात चुनाव हार ही गई थी. पहले चरण की वोटिंग और वहां से मिल रहे समाचारों से ऐसा लगने लगा था कि बीजेपी मैदान से बाहर होने वाली है, मगर कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के बयान ने बीजेपी को चुनावी रण में बने रहने की अनुमति दे दी. अय्यर ने पीएम मोदी पर हमला नहीं किया बल्कि कांग्रेस के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार दी. इस बात का फायदा बीजेपी और पीएम मोदी ने जमकर उठाया और सभी रैलियों में बयान को दोहराया. सरकार विरोधी लहर होने के बाद भी अगर बीजेपी सत्ता बचा पाने में सफल रही, तो उसका पूरा क्रेडिट पीएम मोदी को जाता है. हालांकि, चुनाव के रणनीतिकार अमित शाह भी इसके कम हकदार नहीं हैं.
तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गुजरात में बीजेपी की जीत नहीं हुई है, बल्कि कांग्रेस की हार हुई है और बीजेपी हारती बाजी जीत गई है.
VIDEO: गुजरात में BJP को जबरदस्त झटका: राहुल गांधी
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं