हाजी अली की दरगाह (फाइल फोटो)
मुंबई:
मुम्बई के प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह पर सजदा करने जाने वाली महिलाओं को लेकर ट्रस्ट अपनी भूमिका पर अडिग है। ट्रस्ट ने महिला जायरीन और मजार-ए-शरीफ के बीच की दूरी बढ़ा दी है। जिससे उठा विवाद बॉम्बे हाई कोर्ट जा पहुंचा है।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने दरगाह पर महिला जायरीन के साथ होते सलूक के खिलाफ़ कोर्ट से दखल की गुहार लगाई हुई है। कोर्ट में चल रही इस मामले की सुनवाई के दौरान ट्रस्ट की तरफ़ से दलील दी गयी कि कोई बाहरी ताकत ट्रस्ट के काम में दखलंदाजी नहीं कर सकती। मामले में ट्रस्ट की पैरवी करनेवाले वकील उस्मान बंजारा ने संवाददाताओं को बताया, 'दरगाह में आनेवाली महिलाओं को इसलिए मजार के करीब जाने नहीं दिया जाता क्योंकि पता नहीं कि वो किस अवस्था में हैं। इसलिए मजार से महिलाओं की बनायी हुई दूरी कम करने का कोई सवाल ही नहीं।
हाजी अली शाह, इस सूफी संत की मजार मुम्बई के पश्चिमी किनारे के अरब सागर में बने एक टापू पर है। यहां सभी धर्मों के भक्त अपनी इबादत करने जाते हैं। इस दरगाह में 2012 से महिला जायरीनों की इबादत के लिए अलग जगह दी गयी है।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की महाराष्ट्र समन्वयक खातून शेख़ ने NDTV इंडिया से बात करते हुए ट्रस्ट की कोर्ट में दी गई दलील पर सवाल उठाया। उनका कहना था कि अगर क़ुरान औरतों को इस मामले में अलग नहीं मानता। अगर काबा में इबादत के लिए औरत और मर्द में भेदभाव नहीं। तो यहां क्यों?
अपनी बात को आगे ले जाने और दरगाह पर महिलाओं को बे रोकटोक इबादत की अनुमति दिलाने के लिए भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुम्बई के तमाम दर्गाहों का सर्वे किया। जिसमें उन्होंने पाया है कि मुम्बई के 20 में से 17 दरगाह पर महिला जायरीनों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। जबकि हाजी अली, डोंगरी की बाबा अब्दुल रहमान दरगाह और बॉम्बे हॉस्पिटल के करीब बने बाबा बउद्दीन दरगाह पर नियम अलग हैं।
हाजी अली दरगाह पर महिलाओं के साथ होनेवाले बर्ताव को लेकर अब आंदोलन की नजरें हाईकोर्ट पर टिकी हैं, जो इस मामले में जल्द अंतिम सुनवाई कर सकता है।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने दरगाह पर महिला जायरीन के साथ होते सलूक के खिलाफ़ कोर्ट से दखल की गुहार लगाई हुई है। कोर्ट में चल रही इस मामले की सुनवाई के दौरान ट्रस्ट की तरफ़ से दलील दी गयी कि कोई बाहरी ताकत ट्रस्ट के काम में दखलंदाजी नहीं कर सकती। मामले में ट्रस्ट की पैरवी करनेवाले वकील उस्मान बंजारा ने संवाददाताओं को बताया, 'दरगाह में आनेवाली महिलाओं को इसलिए मजार के करीब जाने नहीं दिया जाता क्योंकि पता नहीं कि वो किस अवस्था में हैं। इसलिए मजार से महिलाओं की बनायी हुई दूरी कम करने का कोई सवाल ही नहीं।
हाजी अली शाह, इस सूफी संत की मजार मुम्बई के पश्चिमी किनारे के अरब सागर में बने एक टापू पर है। यहां सभी धर्मों के भक्त अपनी इबादत करने जाते हैं। इस दरगाह में 2012 से महिला जायरीनों की इबादत के लिए अलग जगह दी गयी है।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की महाराष्ट्र समन्वयक खातून शेख़ ने NDTV इंडिया से बात करते हुए ट्रस्ट की कोर्ट में दी गई दलील पर सवाल उठाया। उनका कहना था कि अगर क़ुरान औरतों को इस मामले में अलग नहीं मानता। अगर काबा में इबादत के लिए औरत और मर्द में भेदभाव नहीं। तो यहां क्यों?
अपनी बात को आगे ले जाने और दरगाह पर महिलाओं को बे रोकटोक इबादत की अनुमति दिलाने के लिए भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने मुम्बई के तमाम दर्गाहों का सर्वे किया। जिसमें उन्होंने पाया है कि मुम्बई के 20 में से 17 दरगाह पर महिला जायरीनों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। जबकि हाजी अली, डोंगरी की बाबा अब्दुल रहमान दरगाह और बॉम्बे हॉस्पिटल के करीब बने बाबा बउद्दीन दरगाह पर नियम अलग हैं।
हाजी अली दरगाह पर महिलाओं के साथ होनेवाले बर्ताव को लेकर अब आंदोलन की नजरें हाईकोर्ट पर टिकी हैं, जो इस मामले में जल्द अंतिम सुनवाई कर सकता है।
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