गुजरात सरकार ने उच्चतम न्यायालय की तरफ से नियुक्त विशेष जांच दल को गोधरा बाद दंगा मामले में पूर्व मंत्री माया कोडनानी की जमानत को चुनौती देने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने नरोदा पाटिया मामले में कोडनानी को जमानत दी थी, जिसमें 97 लोग मारे गए थे। निचली अदालत ने उन्हें 28 वर्ष जेल की सजा सुनाई थी।
कानून एवं न्याय सचिव वी. पी. पटेल ने आज कहा, 'हमने निर्णय किया है कि एसआईटी को उच्चतम न्यायालय में कोडनानी की जमानत को चुनौती देने की अनुमति नहीं देंगे।'
तत्कालीन नरेंद्र मोदी कैबिनेट में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं कोडनानी को स्वास्थ्य आधार पर 30 जुलाई को उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी।
नरसंहार के 'सरगना' के रूप में दोषी ठहराई गई कोडनानी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया में एक विशेष निचली अदालत ने 28 वर्ष जेल की सजा सुनाई थी और नरोदा पाटिया मामले में वह पहली सज़ायाफ्ता थीं, जिन्हें गुजरात उच्च न्यायालय से नियमित जमानत मिल गई।
तीन बार विधायक रहीं कोडनानी पहली महिला थीं जिन्हें गोधरा बाद दंगा मामले में सजा सुनाई गई थी। वर्ष 2002 के दंगे के समय कोडनानी नरोदा से भाजपा विधायक थीं जिन्हें 2007 में नरेंद्र मोदी नीत गुजरात कैबिनेट में महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया था। बहरहाल मामले में मार्च 2009 में गिरफ्तारी के बाद कोडनानी को इस्तीफा देना पड़ा था।
अगस्त 2012 में एसआईटी की विशेष अदालत ने भाजपा विधायक माया कोडनानी, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी और 29 अन्य को नरोदा पाटिया में 2002 के दंगे के समय उनकी भूमिकाओं के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में रेलगाड़ी में आग लगाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी।
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