क्या खर्च में बड़ी कटौती से देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक बीएसएफ के लिए बेहतर हथियार और यूएवी खरीदने के लिए पैसा नहीं है। इसी साल अर्द्धसैनिक बलों के आधुनिकीकरण के खर्च में करीब 90 फीसदी की कटौती की गई है।
भारत−पाकिस्तान सीमा पर बीएसएफ लगातार गोलियों की बौछार और मोर्टार फायरिंग का सामना कर रही है, फिर भी इनके लिए नए हथियारों के पैसे नहीं है। सीआरपीएफ घाटी में जेहादियों और छत्तीसगढ़ में माओवादियों से लड़ रही है, लेकिन ये ना तो एके 47 खरीद सकते हैं, न माइन्स प्रूफ गाड़ियां और ना ही बुलेटप्रूफ जैकेट। इन सबकी वजह बजट में हुई 2000 करोड़ से भी ज्यादा की कटौती है।
सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि छह अर्द्धसैनिक बलों के आधुनिकीकरण के लिए 2300 करोड़ खर्च किए जाने थे, लेकिन बीते दो सालों में सरकार ने सिर्फ 99 करोड़ खर्च किए हैं। यहां तक कि आतंकियों के खिलाफ लड़ने वाले एनएसजी को भी इस मद में सिर्फ 86 लाख रुपये मिले हैं। एयरपोर्ट और एटमी संस्थानों की सुरक्षा में लगे सीआईएसएफ को आधुनिकीकरण के लिए एक पैसा नहीं मिला, जबकि बीएसएफ और सीआरपीएफ को सिर्फ 20 करोड़ मिले।
इससे पहले कैबिनेट ने अर्द्धसैनिकों बलों के आधुनिकीकरण और पुराने हथियारों को हटाने के लिए अगले पांच सालों में 11 हजार करोड़ की मंजूरी दी थी, लेकिन सूत्रों के मुताबिक बजट कटौती से सीआरपीएफ और बीएसएफ के लिए हैंडगन, रडार और नाइट विज़न नहीं खरीदे जा सके और सीआईएसएफ को और मजबूत नहीं बनाया जा सका।
ये मसला जहां सरकार के लिए खाद्य सुरक्षा कानून को देखते हुए वित्तीय और चालू घाटे से जुड़ा है, वहीं सीमा पर जमें जवानों के लिए बेहतर हथियार और साजो सामान का सवाल है।
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