नई दिल्ली:
नोटबंदी ने सिर्फ़ किसानों-मज़दूरों का संकट ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि कारखानों को भी परेशान कर रखा है. उन्हें छोटे-छोटे भुगतान के लिए ज़रूरी कैश नहीं मिल रहे हैं, जिससे उनके व्यापार पर असर पड़ रहा है.
रेडीमेड गारमेन्ट्स के एक्सपोर्टर विश्वनाथ जी का नोएडा में रेडीमेड कपड़ों का कारोबार है, जोकि दशकों से इस व्यापार से जुड़े रहे हैं. विश्वनाथ कहते हैं उनके कारोबार पर नोटबंदी का काफी असर पड़ रहा है. उन्होंने एनडीटीवी से कहा, 'जो सिलाई-कढ़ाई के मज़दूर हैं, वो कैश में पेमेंट मांगते हैं. वो सिर्फ 5-10 दिन ही एक फैक्टरी में काम करते हैं. उनके जैसे दिहाड़ी वर्करों को हमें कैश में पेमेंट देना पड़ता है. साथ ही, एक्सपोर्ट के लिए तैयार महंगे रेडीमेड गारमेन्ट्स के लिए बटन, धागा और चेन जैसी छोटी एक्ससेसरीज़ भी कैश में खरीदनी पड़ती हैं'.
विश्नाथ कहते हैं कि सरकार ने हर हफ्ते जो 50,000 रुपया कैश निकालने की सीमा तय की है, उसे बढ़ाना ज़रूरी है. विश्वनाथ कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि सरकार कैश निकालने की सीमा 50,000 से रुपये बढ़ाकर एक लाख करे. ये बेहद ज़रूरी है. इससे हमारे व्यापार में संकट कम होगा. कैश फ्लो में सुधार होगा'.
दरअसल, ये संकट सिर्फ रेडीमेड गारमेन्ट सेक्टर तक सीमित नहीं है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइज़ेशन के डीजी अजय सहाय कहते हैं कि उन क्षेत्रों में जहां मैन्यूफैक्चरिंग का बहुत सारा काम कारखाने से बाहर दूर-दराज़ इलाकों में होता है, वहां नोटबंदी का असर पड़ रहा है.
अजय सहाय ने एनडीटीवी से कहा, "ज़्यादा प्रभाव कार्पेट्स, हैंडीक्राफ्ट्स, कपड़ा और चमड़े के उद्योग पर पड़ा है, लेकिन एक्सपोर्टर्स इस परिस्थिति से निपटने के लिए नई पहल भी कर रहे हैं. कई क्षेत्रों में मज़दूरों के बैंक अकाउंट भी खोले गए हैं, जिससे उन्हें ऑनलाइन पेमेंट भी किया जा सके". सहाय मानते हैं कि एक्सपोर्ट सेक्टर पर नोटबंदी का असर धीरे-धीरे कम होगा, जैसे-जैसे कैश फ्लो की स्थिति सुधरेगी और दूर-दराज़ के इलाकों में मज़दूरों को बैंकिंग व्यवस्था से ज़्यादा से ज़्यादा जोड़ना संभव होगा.
रेडीमेड गारमेन्ट्स के एक्सपोर्टर विश्वनाथ जी का नोएडा में रेडीमेड कपड़ों का कारोबार है, जोकि दशकों से इस व्यापार से जुड़े रहे हैं. विश्वनाथ कहते हैं उनके कारोबार पर नोटबंदी का काफी असर पड़ रहा है. उन्होंने एनडीटीवी से कहा, 'जो सिलाई-कढ़ाई के मज़दूर हैं, वो कैश में पेमेंट मांगते हैं. वो सिर्फ 5-10 दिन ही एक फैक्टरी में काम करते हैं. उनके जैसे दिहाड़ी वर्करों को हमें कैश में पेमेंट देना पड़ता है. साथ ही, एक्सपोर्ट के लिए तैयार महंगे रेडीमेड गारमेन्ट्स के लिए बटन, धागा और चेन जैसी छोटी एक्ससेसरीज़ भी कैश में खरीदनी पड़ती हैं'.
विश्नाथ कहते हैं कि सरकार ने हर हफ्ते जो 50,000 रुपया कैश निकालने की सीमा तय की है, उसे बढ़ाना ज़रूरी है. विश्वनाथ कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि सरकार कैश निकालने की सीमा 50,000 से रुपये बढ़ाकर एक लाख करे. ये बेहद ज़रूरी है. इससे हमारे व्यापार में संकट कम होगा. कैश फ्लो में सुधार होगा'.
दरअसल, ये संकट सिर्फ रेडीमेड गारमेन्ट सेक्टर तक सीमित नहीं है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइज़ेशन के डीजी अजय सहाय कहते हैं कि उन क्षेत्रों में जहां मैन्यूफैक्चरिंग का बहुत सारा काम कारखाने से बाहर दूर-दराज़ इलाकों में होता है, वहां नोटबंदी का असर पड़ रहा है.
अजय सहाय ने एनडीटीवी से कहा, "ज़्यादा प्रभाव कार्पेट्स, हैंडीक्राफ्ट्स, कपड़ा और चमड़े के उद्योग पर पड़ा है, लेकिन एक्सपोर्टर्स इस परिस्थिति से निपटने के लिए नई पहल भी कर रहे हैं. कई क्षेत्रों में मज़दूरों के बैंक अकाउंट भी खोले गए हैं, जिससे उन्हें ऑनलाइन पेमेंट भी किया जा सके". सहाय मानते हैं कि एक्सपोर्ट सेक्टर पर नोटबंदी का असर धीरे-धीरे कम होगा, जैसे-जैसे कैश फ्लो की स्थिति सुधरेगी और दूर-दराज़ के इलाकों में मज़दूरों को बैंकिंग व्यवस्था से ज़्यादा से ज़्यादा जोड़ना संभव होगा.
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