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This Article is From May 03, 2015

सूखा-बाढ़ झेलने लायक नहीं हरित क्रांति के गेहूं-धान की प्रजातियां, पैदावार पर असर

सूखा-बाढ़ झेलने लायक नहीं हरित क्रांति के गेहूं-धान की प्रजातियां, पैदावार पर असर
नई दिल्ली: हरित क्रांति के दौर में पेश गेहूं और धान की प्रजातियां ज्यादा पानी और उर्वरक की स्थिति में ही अच्छी उपज दे पाती हैं और इनमें सूखा, बाढ़, नमक व गर्मी सहने की क्षमता नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी हासिल हुई है।

सूचना के अधिकार के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने बताया, 'जलवायु परिवर्तन से भूमंडलीय औसत तापमान बढ़ रहा है जिससे सूखा, बाढ़, जमीन का खारापन आदि की समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसके अतिरिक्त गेहूं के दाने भरते समय अधिक तापमान होने से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।'

आईसीएआर के अनुसार, 'हरित क्रांति वाली गेहूं और धान की प्रजातियां ज्यादा पानी और उर्वरक की स्थिति में ही अच्छी उपज दे पाती हैं और इनमें सूखा, बाढ़, नमक और गर्मी सहने की क्षमता नहीं है।' गेंहू में सूखा सहने वाले जीन की पहचान के लिए पुरानी सूखा अवरोधी प्रजाति सी 306 तथा नई हरित क्रांति की प्रजाति डब्ल्यूएल 711 का संकरण करके जीनोम के उन हिस्सों की पहचान कर ली गई है, जिससे जड़ों में वृद्धि अच्छी होती है और कम पानी में पैदावार हो सकती है।

इस परिदृश्य में विशेषज्ञों द्वारा दूसरी हरित क्रांति की जरूरत रेखांकित की गई है। आरटीआई के तहत आईसीएआर से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गेहूं का जीनोम बनाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए 35 करोड़ रुपये की राशि में 2011 से 2015 के बीच एनआरसीपीबी ने 8.71 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि 2011 से 2015 के दौरान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने 18.33 करोड़ रुपये खर्च किए और इसी अवधि में यूडीएससी ने 7.51 करोड़ रुपये इस उद्देश्य के लिए खर्च किया।

आरटीआई के तहत आईसीएआर से मिली जानकारी के अनुसार, जीनोम की जानकारी प्राप्त होने से गेहूं अंकुरण की गति लगभग दोगुनी हो जाएगी। उदाहरण के लिए पहले एक नई प्रजाति विकसित करने में 10 से 15 साल लग जाते थे, वह कार्य अब विभिन्न गुणों को नियमित करने वाले डीएनए की पहचान कर 5 से 7 साल में किए जा सकते हैं। आईसीएआर ने बताया कि इसके अलावा कुछ नए गुणों का समावेश जैसे सूखा सहने की क्षमता, गुणवत्ता और उत्पादकता पर तेजी से कार्य हो सकता है।

परिषद ने बताया कि गेहूं के अतिरिक्त धान, टमाटर और अरहर के जीनोम पर भी शोध किया गया है। इसमें सबसे पहले धान पर कार्य 2005 में पूरा किया गया जिनके फलस्वरूप अब धान में जीनोम शोध का प्रतिफल किसानों के लिए नई प्रजातियों में आना शुरू हो गया है।

आईसीएआर के अनुसार, भारत में गेहूं अंकुरण द्वारा प्रजातियों के विकास का इतिहास काफी पुराना है जिसमें संकरण और वरण विधियों से अनेक प्रजातियां विकसित की गई है। इसी के तहत हरित क्रांति के दौरान गेहूं की बौनी प्रजातियां और इसी विधि से जापानी बौना गेहूं नोरिन संकरण प्राप्त हुआ।

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