केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन (फाइल फोटो)
तिरवनंतपुरम:
केरल की वित्तीय स्थिति काफी खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है और इसमें सुधार के लिये अगले पांच साल तक कर संग्रह में हर साल 20 से 25 प्रतिशत वृद्धि सुनिश्चित करने की जरूरत है। राज्य विधानसभा में गुरुवार को पेश श्वेत पत्र में यह बात कही गई है।
केरल के वित्त मंत्री टी.एम. थॉमस इस्साक ने राज्य की वित्तीय स्थिति पर यह श्वेत पत्र पेश किया। इसमें कहा गया है कि ऐसा राज्य जहां वास्तविक तौर पर नकद शेष पहले से ही घाटे में चल रहा है, वहा 10,000 करोड़ रुपये की त्वरित और अल्पकालिक देनदारियों को अपने ऊपर लेना असंभव है। कुल मिलाकर स्थिति काफी खतरनाक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य वित्तीय तौर पर पूरी तरह से कंगाली में है। प्रशासनिक मशीनरी को चलाने के लिये दैनिक खर्चों को पूरा करना भी मुश्किल पड़ रहा है। इसके साथ ही राज्य को उसकी दूसरी योजनाओं और पूंजी व्यय को पूरा करने के लिये संसाधनों की भारी तंगी से गुजरना पड़ रहा है।
उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि पिछले तीन साल के दौरान बजट में पूरी तरह जालसाजी की गई। योजनाओं और परियोजनाओं को उनके लिये धन की व्यवस्था किये बिना ही घोषित किया गया। सालाना योजना आकार को काफी बढ़ाचढ़ाकर पेश किया गया।
कुल मिलाकर इस पूरी प्रक्रिया में दुर्भाग्य से बजट अपनी साख खो बैठा और बजट भाषण हासिल नहीं हो सकने वाली योजनाओं और परियोजनाओं के लिये मंत्र पढ़ने जैसा हो गया।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
केरल के वित्त मंत्री टी.एम. थॉमस इस्साक ने राज्य की वित्तीय स्थिति पर यह श्वेत पत्र पेश किया। इसमें कहा गया है कि ऐसा राज्य जहां वास्तविक तौर पर नकद शेष पहले से ही घाटे में चल रहा है, वहा 10,000 करोड़ रुपये की त्वरित और अल्पकालिक देनदारियों को अपने ऊपर लेना असंभव है। कुल मिलाकर स्थिति काफी खतरनाक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य वित्तीय तौर पर पूरी तरह से कंगाली में है। प्रशासनिक मशीनरी को चलाने के लिये दैनिक खर्चों को पूरा करना भी मुश्किल पड़ रहा है। इसके साथ ही राज्य को उसकी दूसरी योजनाओं और पूंजी व्यय को पूरा करने के लिये संसाधनों की भारी तंगी से गुजरना पड़ रहा है।
उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि पिछले तीन साल के दौरान बजट में पूरी तरह जालसाजी की गई। योजनाओं और परियोजनाओं को उनके लिये धन की व्यवस्था किये बिना ही घोषित किया गया। सालाना योजना आकार को काफी बढ़ाचढ़ाकर पेश किया गया।
कुल मिलाकर इस पूरी प्रक्रिया में दुर्भाग्य से बजट अपनी साख खो बैठा और बजट भाषण हासिल नहीं हो सकने वाली योजनाओं और परियोजनाओं के लिये मंत्र पढ़ने जैसा हो गया।
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