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सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट की बैठक से पहले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पीएम को संदेश पहुंचाया था कि इस फैसले से सरकार को खतरा हो सकता है यानी मुलायम ने एक तरह से सरकार गिराने की धमकी दी थी, जिसके बाद सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।
सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट की बैठक से पहले मुलायम ने पीएम को संदेश पहुंचाया था कि इस फैसले से सरकार को खतरा हो सकता है यानी मुलायम ने एक तरह से सरकार गिराने की धमकी दी थी, जिसके बाद सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।
कैबिनेट की बैठक के बाद सरकार ने कहा कि अध्यादेश लाने की जगह सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद के विशेष सत्र में पारित कराने की एक बार और कोशिश करेगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने संवाददाताओं से कहा, हम इसे एक विधेयक के रूप में पारित कराना चाहेंगे, लेकिन अध्यादेश संस्करण भी तैयार है। हम विपक्षी पार्टियों से एक बार और यह पूछने की कोशिश करेंगे कि क्या वे संसद के विशेष सत्र में विधेयक को पारित करना चाहते हैं या नहीं।
उन्होंने कहा, सदन (लोकसभा) के नेता, संसदीय मामलों के मंत्री और खाद्य मंत्री उनसे (विपक्ष से) संपर्क करेंगे और उनसे विधेयक को समर्थन देने के लिए अनुरोध करेंगे। मुख्य विपक्षी पार्टियों की प्रतिक्रिया के आधार पर विधेयक को संसद के विशेष सत्र में पारित किया जाएगा। प्रस्तावित अध्यादेश के बारे में सवाल पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा, हमारी इच्छा है कि इसे संसद के विशेष सत्र में पारित कराया जाए और इसके लिए एक और कोशिश की जाए।
अगर फूड सिक्युरिटी अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी मिल जाती, तो सरकार के सामने अगली चुनौती मॉनसून सत्र के दौरान फूड सिक्युरिटी बिल को संसद में पास कराने की होती। इस प्रस्तावित कानून के तहत तीन रुपये किलो चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये किलो मोटा अनाज जरूरतमंदों को देने का प्रावधान है।
खाद्यमंत्री केवी थॉमस ने एनडीटीवी से खास बातचीत में दावा किया था कि फूड सिक्युरिटी ऑर्डिनेंस लाने के मुद्दे पर यूपीए एकजुट है। थॉमस का कहना था कि सभी दल अध्यादेश लाकर बिल को जल्दी लागू करना चाहते हैं।
इस बीच, यूपीए की सबसे अहम सहयोगी समाजवादी पार्टी ने सरकार की मंशा पर सवाल उठा दिए थे। बीजेपी भी इस बिल के विरोध में खड़ी हो गई थी। उसने सरकार पर इस मामले में राजनीति करने का आरोप लगाया था। बीजेपी का कहना था कि सरकार इस पर संसद में बहस करे और मौजूदा बिल पर उसके संशोधन माने।
इस बिल का कुछ राज्य तो समर्थन कर रहे हैं, लेकिन बिहार, यूपी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल इस बिल के खिलाफ हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में खुद राज्य सरकार अपनी खाद्य सुरक्षा योजना चला रही है।
सरकार की यह योजना अगर लागू हो जाती है, तो देश की करीब 67 फीसदी आबादी को भोजन की गारंटी मिलेगी, जिसमें से 75 फीसदी आबादी ग्रामीण, जबकि 50 फीसदी लोग शहरी इलाके के होंगे। इस योजना के तहत हर व्यक्ति को पांच किलो अनाज एक से तीन रुपये किलो कीमत पर दिया जाएगा। योजना को लागू करने के लिए 6 करोड़ 20 लाख टन अनाज की जरूरत होगी, जिसका अनुमानित बजट तकरीबन एक लाख 25 हजार करोड़ होगा।
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